मेरा घर और मेरी जेठानी का घर दोनों थोड़ी ही दूरी पर थे आता है जब भी हम घर के कार्यों से फुर्सत में होते तो दो-चार दिन में कभी वह मेरे पास आ जाती और कभी मैं उनके घर चली जाती l हम दोनों बैठकर बातें करते l मैं तो सभी तरह की बातें करती घर की बच्चों की और समाज की भी लेकिन मेरी जेठानी की आदत थी कि वह अपने बच्चों की ही तारीफों के पुल बांधती रहती l
मेरी जेठानी पढ़ी-लिखी नहीं थी और जेठ जी भी खेती-ही करते थे l उनके दो बेटे और दो बेटियां थी बड़ा बेटा खेती में पिता के साथ रहता और छोटा कंपनी में इंजीनियर था जो गुड़गांव में रहता था l दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी l बेटियों की शादी वैसे तो गांव में हुई थी लेकिन दामाद पढ़े लिखे थे और दोनों ही पास के शहर में कंपनी में नौकरी करते थे l दोनों बेटियां जैसे तैसे कर हाई स्कूल ही पास कर पाई थी l
मैंने अर्थशास्त्र से एम ए किया था और मेरे पति बैंक में क्लर्क थे l मेरा एक बेटा और एक बेटी थी l बेटा दिल्ली रेलवे
में नौकरी करता था और बेटी की शादी हो चुकी थी वह एम ए कर चुकी थी l मेरी बेटी की भी ससुराल गांव में थी लेकिन वह सम्मिलित परिवार में थी दामाद कंपनी में नौकरी करते थे बेटी कानपुर में उनके साथ रहती थी घर में सबसे छोटी थी l घर में सबसे छोटे होने के कारण दामाद अपने बड़े भाइयों का कहना मानते थे इसलिए मेरी बेटी जेठ जी की बेटियों की तरह स्वतंत्र नहीं थी l
बच्चों की पढ़ाई की वजह से मैं गांव के पास कस्बे में मकान बना लिया था कुछ दिन बाद मेरी जेठानी ने भी मुझे थोड़ी दूरी पर मकान खरीद कर रहने लगी खेती किसानी होने की वजह से वह भैंस भी रखती थी l
1 दिन में घर के कार्यों में व्यस्त थी तभी जेठानी की बड़ी खुश होती हुई आई और मुझसे बोली की छोटा दामाद विदेश जा रहा है वही नौकरी करेगा l मुझे किसी से कोई जलन नहीं होती थी अतः मैं खुश होकर कहा की अच्छा है बेटी को भी विदेश घूमने को मिलेगा l वे थोड़ी देर मेरे पास बैठी लंबी चौड़ी बातें की और घर चली गई l वैसे वह मुझे प्यार करती थी और बच्चे भी चाचा चाचा कहते नहीं थकते l परंतु उन्हें अपने परिवार पर बहुत घमंड था और मेरे परिवार को हमेशा नीचा दिखाती थी यह उनमें बहुत बुरी आदत थी l बड़ी होने के कारण मैं उनसे कुछ नहीं कहती चुपचाप सुनती रहती थी l
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कुछ दिन बाद दीपावली का त्यौहार आने वाला था उनके बेटे बहू का फोन आ गया था कि वह आने वाले हैं l इसलिए वह मुझसे आकर बोली कि तेरे बेटे बहु दीपावली पर नहीं आ रहे हैं l
मैंने कहा बच्चे पढ़ रहे हैं शायद नहीं आएंगे l वह बोली कि बच्चे तो मेरे बेटे के भी पढ़ रहे हैं फिर भी वह त्योहार पर आएंगे l तेरे बेटे बहु तो तुझे कुछ समझते ही नहीं है तू उनसे कुछ कहती नहीं है l
मैंने कहा ठीक है जो उन्हें सही लगता है वह करते हैं l फिर बोली कि मैं तो दामाद को भी फोन कर दूं तो तुरंत बेटी को लेकर आ जाते हैं लेकिन तेरी बेटी रेखा तो कभी-कभार ही आती है वह भी दो दिन के लिए l
फिर बोली कि हमने तो छोटा परिवार देखा है जिससे हमारी दोनों लड़कियां सुखी हैं भले ही हम खेत वाले हैं और तू तो पढ़ी-लिखी और देवर की नौकरी वाले हैं फिर भी लड़की के लिए खेती-बाड़ी वाला घर और बड़ा परिवार देखा जिस लड़की को पूरे बंधन में रहना पड़ता है l
मैंने कहा ठीक है अपने घर परिवार में मिलकर रहती है इसमें क्या बुराई है l
जेठानी की बोली ठीक है कह कर काम का बहाना लगाकर अपने घर चली गई l
दीपावली से पहले काम करते-करते मैं थक गई और थोड़ा आराम करने के लिए और कुछ मन बहलाने के लिए अपनी जेठानी के घर चली गई l उन्होंने बड़े प्यार से मुझे बिठाकर चाय बनाने जाने लगीl मैंने कहा दीदी मैं बना लेती हूं चाय वह बोली कि तू थक गई है मैं ही बना देता हूं फिर उन्होंने चाय बनाई और हम दोनों चाय पीने लगे तभी वे बोली कि आज मेरे बेटे बहू आ रहे हैं मैंने पूछा ट्रेन से आ रहे हैं या बस से l
वह बोली बस से आ रहे हैं मैंने तो कहा है की गाड़ी खरीद लो कुछ सहायता हम कर देंगे बस में बच्चे परेशान हो जाते हैं l परंतु उन्होंने फ्लैट बुक किया है इसलिए गाड़ी कुछ दिन बाद खरीदेंगे l बहू की मां का फोन भी आया था कि आपके यहां दीपावली पर जो भी समान होता हो मुझे फोन पर बता देना मैं भेज दूंगी l हर वक्त कुछ ना कुछ भेजती रहती हैं बहुत अच्छे लोग हैं l
गांव से मेरी एक चाचा सास भी आई हुई थी वह भी मेरी जेठानी जी की बातें सुन रही थी और कभी-कभी मुस्कुरा देती l जेठानी जी ने कहा चाय बना लेते हैं मैं चाय बनाने के लिए किचन में चली गई l तभी जेठानी जी के फोन की घंटी बजी उन्होंने फोन उठाया फोन उनकी लड़की का था l वह रो रही थी और कह रही थी कि मम्मी घर में लड़ाई हो गई है जिससे आपके दामाद रूठ कर कहीं चले गए हैं दो दिन से उनका कोई पता नहीं है जेठानी की उसे सांत्वना दे रही थी और कह रही थी कि हम लोग भी ढूंढने की कोशिश करेंगे और दुखी होने लगी l
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मैं चाय बना कर ले आई मैं और मेरी चाची सास ने जेठानी जी को समझ कर चाय दे दी हम सब लोग चाय पीने लगे l
थोड़ी देर में जेठानी जी के बेटे का फोन आया फोन स्पीकर पर था तो हम सभी लोग सुन रहे थे l उनका बेटा कह रहा था की मम्मी हमने नया मकान खरीदा है इस साल की दीपावली हम नए मकान में ही मनाएंगे l हम लोग दीपावली पर नहीं आ रहे हैं l यह सुनकर जेठानी जी उदास हो गई और चुपचाप बैठी रह गई l
तभी मेरी चाची सास बोली की बहू इतना गुमान ठीक नहीं परिस्थितियों मौसम की तरह जाने कब रंग बदल ले l इसलिए घमंड नहीं करना चाहिए l वक्त बदलते ही घमंड चूर-चूर हो जाता है l
बिंदेश्वरी त्यागी
स्वरचित
अप्रकाशित