इन दीवारों के कान नहीं हैं – रवीन्द्र कान्त त्यागी   : Moral stories in hindi

Post Views: 5 लाहौल विला कुव्वत. अरे बेगम, ये गुसलखाने में उबलता पानी क्यों रख दिया. मुझे नहलाना है या पकाना है. अरे सुनती हो, नलके से थोड़ा ठंडा पानी लाकर मिला दो. हमने कपडे उतार दिए हैं. बहार नहीं आ सकते. खलील मियां बाथरूम से चिल्लाये. “अरे कहाँ मर गईं नसीमन की खला. यहाँ … Continue reading इन दीवारों के कान नहीं हैं – रवीन्द्र कान्त त्यागी   : Moral stories in hindi