माँ कुछ परेशान हो कब से इधर उधर देख रही थीं, कभी न्यूज पेपर हाथों में लेती, थोड़ी देर उसे देखती फिर रख देती। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी पापा को देखा, वे भी कभी दीवार घड़ी को कभी दीवार पर लगे पेंटिग्स को गौर से देख रहे थे। आज दोनों का बर्ताव मुझे अजीब ही लग रहा था। मैं सबसे पहले पापा के ही पास गया
“क्या बात है पापा? थोड़े परेशान से लग रहे हैं?”
“न..न..वो कुछ नहीं, बस ऐसे ही.. वो पानी चाहिए था”
मैंने पानी दिया तो लगा वे मेरे हाथ को टटोलते हुए पानी ले रहे हैं। पानी देकर मैं माँ के पास गया।
“क्या बात है माँ?आपलोग मुझसे कुछ छुपा रहे हैं क्या?
“नहीं.. क्या छुपायेंगे? सब ठीक है”
“अजीब बात है! आपलोग मुझे परेशान लग रहे हैं, और आपलोग हैं कि कुछ बताते नहीं!..पापा आप बोलिये प्लीज, माँ तो कुछ बताएंगी नही”
तभी पापा धीरे धीरे उठकर आये और माँ के बगल में बैठ गए
“वो बात ये है बेटे..कि.. पिछले महीने ही तुमने हम दोनों को चश्मा दिलवाया था..आज फिर से धुंधला सा दिख रहा है..इतनी जल्दी जल्दी चश्मे का नम्बर बदल रहा है.. तेरा काम भी कुछ महीनों से ठीक नहीं चल रहा है.. तो बताते हुए.. थोड़ी झिझक सी..”
“वाह पापा! मतलब बेटे से बताते हुए आपको झिझक हो रही है.. हद है!..बचपन में मैं भी तो रोज खिलौने तोड़ता था और बेझिझक मांगता था..और ये तो कितना जरूरी है”
“पर तू तो हमारा इकलौता बेटा था ना..तेरी जिद कैसे ना पूरी करते?”
माँ ने इतराते हुए, मेरी तरफ देख कर कहा
“इकलौता हूँ..तभी तो आप दोनों की हर ख्वाहिश पूरी करना चाहता हूँ” मैंने ये बात बाहें फैलाकर थोड़ा फिल्मी अंदाज में कहा तो माँ बैठे बैठे मेरी बलैया लेने लगी। उन्हें देखकर हँसी आ गई
“वैसे मैं बता दूं..आप दोनों का चश्मे का नंबर नहीं बदला है”
“तो?”
“आपदोनों का चश्मा अदला बदली हो गया है”
इस बात पर दोनों में मीठी झड़प होने लगी..”तुमने मेरा चश्मा उठा लिया होगा..तो तुमने पहले लिया होगा”
और माँ-पापा का ये मीठी झड़प का आंनद लेने वाला, यहां मैं इकलौता ही हूँ..!
विनय कुमार मिश्रा