सौंदर्या सकुचाई सी आईने के सामने बैठी थी । बगल में रखी लाल रंग की बनारसी साड़ी जैसे उसे मुंह चिढ़ा रही थी ।
“ये अचानक क्या सूझी सुदीप को । शादी के तीन साल बाद रिसेप्शन ? आखिर इसकी जरूरत क्या थी?” वो परेशान सी बोले जा रही थी।
तभी दरवाजा खुला और सुदीप अंदर आए ।
“अरे अभी तुम तैयार नहीं हुई। नीचे मेहमान भी आने शुरू हो गए ।” सुदीप ने कहा ।
“क्या जरूरत थी इस पार्टी की । आखिर इतना टाइम बीत चुका है हमारी शादी को । “
“तो क्या तुम्हे अब भी लोगो से डर लगता है ..?”
“नही..”
“तो फिर बीस मिनट में मुझे मेरी बीवी इस साड़ी में तैयार होकर नीचे मिलनी चाहिए । तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ है।” सुदीप ने प्यार से कहा और वहां से चला गया ।
वो उस साड़ी को देखती अतीत के गलियारों में चली गई।
सौंदर्या नाम के अनुरूप ईश्वर ने सौंदर्य भी दिया था । उसे साहित्य में विशेष रुचि थी । उसकी लिखी अनेक कविताएं , कहानियां प्रकाशित हो चुकी थी। शहर के सबसे प्रसिद्ध वकील सुदीप से उसका विवाह उसके पिता ने बहुत पहले ही तय कर दिया था । जल्द ही उसकी सगाई होने वाली थी । सौंदर्या भी अपनी सगाई की तैयारियों में लगी हुई थी । जिस दिन उसकी सगाई होनी थी उस दिन वो कुछ सामान लाने मार्केट जा रही थी और रास्ते में कुछ लडको ने उसके साथ बदतमीजी शुरू कर दिया । सौंदर्या ने गुस्से में उनमें
इस कहानी को भी पढ़ें:
दोनों घरों का दायित्व निभाती हैं बेटियाँ – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi
से एक लड़के को थप्पड़ लगा दिया । आस पास बढ़ती भीड़ देखकर उस वक्त तो वो लड़के भाग गए पर जब वो समान खरीद कर वापस लौट रही थी तो उन लडको ने उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया ।तीन दिन बाद हॉस्पिटल में उसकी आंख खुली थी । उसके चेहरे और हाथो पर पट्टियां बंधी थी।उसके पास उसका परिवार और सुदीप खड़े थे । सब इस हादसे से बहुत दुखी थे। सौंदर्या के माता पिता के मना करने के बावजूद सुदीप ने कुछ ही दिनों में उससे शादी कर लिया।
पर वो इस हादसे से बिलकुल शांत सी हो गई थी । उसे अपने चेहरे से ही डर लगता था। लोगो के सामने तो उसने जाना ही छोड़ दिया था । सुदीप के बहुत बोलने पर वो बोलती । सुदीप ने उसे एक डायरी लाकर दिया था ।जिसमे वो जो कुछ भी महसूस करती वो लिखती थी। सुदीप की मेहनत का नतीजा था कि उसके घाव भरने के साथ साथ उसका खोया हुआ आत्म –विश्वास भी लौट आया । इस बीच सुदीप ने अपने और सौंदर्या के माता पिता को भी संभाला था । उन लडको को कड़ी सजा भी दिलाई ।
वर्तमान में सुदीप के संघर्षों को याद करती वो मुस्कुराई ।
“तुम्हारे लिए मैं इतना तो कर ही सकती हूं।”
थोड़ी देर बाद जब वो तैयार हो कर नीचे आई तो सबकी नजरें उस पर ही टिकी थी। उसे फिर घबराहट होनी शुरू हो गई तब तक उसे तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी । उसने देखा सुदीप हाथो में माइक लिए कुछ कह रहे थे ।
उसने अपने आस पास नज़र डाली उसे किसी की आंखों में अपने लिए न तो उपेक्षा नजर आई न ही घृणा ,जिसकी उसने उम्मीद की थी। बल्कि सब उसे सम्मान की दृष्टि से देख रहे थे ।जिसके कारण वो सहज महसूस करने लगी।
थोड़ी देर में सुदीप उसके पास आए ।
“सुदीप मुझे सच में बहुत अच्छा लगा की लोग मुझे उपेक्षित नही कर रहे । सब मुझे सम्मान की दृष्टि से देख रहे हैं। “
“देखेंगे क्यों नहीं, आखिर सब अपनी प्रिय लेखिका को देख रहे हैं।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
“क्या सच में , मैं इन्हे याद भी हूं अब तक।” सौंदर्या ने आश्चर्य से सुदीप को देखा । उसके इतना कहते ही सुदीप ने उसके हाथ में एक किताब रख दी , जिसका शीर्षक था , “सौंदर्य अमिट है”।
“ये तो मेरी डायरी ….”
“हां ये तुम्हारे संघर्ष की कहानी है । जिसे आज ही प्रकाशित किया गया है ताकि दूसरे लोग भी इस कहानी से सीख ले सकें। समझी मेरी बुद्धू बीवी ।”सौंदर्या अवाक थी। उसे गर्व हो रहा था सुदीप जैसे हमसफर पर ।।
साक्षी तिवारी
#हमसफर
Nice story
Absolutely