हमारी भाभी – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

दरवाजे की घंटी बजती है, कूरियर वाला आया है, मैंने दरवाजा खोला तो वो मुझे कार्ड दे गया, मैंने उत्सुकतावश कार्ड देखा, और खुशी से मां से कहा कि, ‘मोनू भैया की शादी का कार्ड आ गया है, मां झट से बोली इस की भी शादी हो रही है, विश्वास नहीं होता। इतनी तो उम्र हो चली है , चलो कोई तो अपनी बेटी दे रहा है?

सगाई तो दो महीने पहले हो गई थी, अब तो सबको शादी की तारीख का इंतजार था, शादी की तारीख मिल गई तो शादी का कार्ड का हम सब इंतजार कर ही रहे थे।

मोनू भैया हमारे मामा के बड़े लड़के हैं,  दसवीं पास है, बोली भी साफ नहीं है, कमाते भी खास नहीं है, छोटी सी परचूनी के सामान की दुकान चलाते हैं।

हम सब चचेरे ममेरे भाई बहन उत्साहित थे, आखिर कैसी भाभी आयेगी???उस जमाने में मोबाइल भी चलते नहीं थे, हमने भाभी को देखा भी नहीं था। भरी गर्मी में शादी थी, ये गनीमत था कि उन दिनों स्कूल की छुट्टी होती थी, सभी भाई बहन मजे से बारात में नाचे और भैया, भाभी को ब्याह कर लेकर आये।

भाभी का रंग सांवला,कद छोटा, थोड़ी मोटी थी। ऐसी भाभी आई है, रिश्तेदारों ने सबने बातें बनाई। फिर सबने ये सोचकर दिलासा दे दी कि चलो शादी तो हो गई। भैया का घर तो बस गया।

दूसरे दिन कुलदेवी के मंदिर जाना था, वहां सभी नाचने लगे,  ढ़ोल बजने लगे। सभी ने भाभी को भी नाचने को कहा, पहले भाभी सकुचाई पर बाद में ऐसी नाची कि उन्हें रोकना पड़ा। इतना वजन होने के बाद भी भाभी के डांसिंग स्टाइल के हम सभी फैन हो गये।

फिर हम सभी अपने अपने घर आ गये,एक बार फिर महीनों बाद ननिहाल जाना हुआ । भाभी ने अच्छे से बात की सभी को खाना बनाकर खिलाया उनकी कूकिंग के भी हम फैन हो गये। 

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तभी भाभी की एक ओर खासियत के बारे में हमें पता चला भाभी सिलाई, बुनाई में भी दक्ष है। भैया की परचूनी दूकान से इतनी कमाई नहीं थी।

भाभी को घर खर्च के लिए सास -ससुर के आगे हाथ ना फैलाना पड़े, इसलिए भाभी मौहल्ले की औरतों के ब्लाऊज़, पेटीकोट सिलने लगी। साड़ी के फॉल पिको करने लगी। मामा-मामी गुस्साये रहते कि अब बेटा क्या बहू की कमाई खायेगा?? पर इस मामले में भाभी की सोच स्पष्ट थी वो ये ही कहती, “दीदी एक की कमाई पूरी नहीं पड़ती तो दूसरे के कमाने में बुराई थोड़ी है, फिर मैं काम कर रही हूं, किसी के आगे हाथ तो नहीं फैला रही,

दो पैसा घर में आ रहा है । माता पिता ने ज्यादा पढ़ाया नहीं पर हुनर तो सीखाया है तो उसे काम में क्यों ना लूं”। भाभी के विचार भी काफी अच्छे लगे। ज़रूरी नहीं हर इंसान खूबसूरत,स्लिम हो, ज्यादा पढ़ा लिखा हो, उसमें उसके अलावा भी और गुण हो सकते हैं, वो इससे भी किसी का भी दिल जीत सकता है, अपना घर भी चला सकता है।

भाभी के दो बच्चे हुए, उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाया। भाभी ने अपने हुनर के साथ अपना दिमाग भी दौड़ाया, घर के पीछे कमरे में ही बुटिक खोल लिया , उसमें सिलाई के ऑर्डर लेने लगी, फिर दो टेलर रख लिये कमाई अच्छी खासी होने लगी।

अपना बिजनेस और आगे बढ़ाया, बाहर से साड़ियां ला लाकर बेचने लगी। वहीं पर मैचिंग के पेटीकोट,ब्लाऊज़ भी रखने लगी, एक टेलर भी बैठा दिया, एक बार जो महिला दूकान पर चढ़ गई फिर वो पूरा काम वही से करवाती। मौहल्ले की औरतें भी भाभी के हंसमुख व्यवहार की कायल हो गई।

अब तो मामा-मामी भी बहू की तारीफ करते नहीं रखते, दोनों बेरोजगार देवरों को भी दूकान पर लगा दिया, भैया को दूकान के गल्ले पर बिठा दिया। परचूनी की दूकान बंद करवा दी।

अभी थोड़े दिन पहले पता चला बैंक से लोन लेकर,साथ में थोड़ी जमा पूंजी लगाकर भाभी ने साड़ियों का शोरूम खोल लिया। हम उसी शोरूम के उदघाटन में जाकर आये हैं। 

भाभी ने अपनी मेहनत और दृढ़ विश्वास से सफलता को छुआ है।

भाभी आज भी वैसे ही हंसमुख हैं,और अपने काम के प्रति समर्पित है। गांव की उस सांवली, मोटी, छोटी लड़की ने पूरे परिवार को काम पर लगा दिया, जमीं से उठाकर आसमां पर बैठा दिया।

भाभी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं । अपनी शारीरिक बनावट को कोसने से ज्यादा अच्छा है, हमारे पास जो हुनर है, उसे तराश कर एक मुकाम हासिल किया जाए।

कोई भी काम छोटा नही होता, भाभी ने छोटे से शुरूआत की ओर आज शोरूम की मालकिन बन गई। उन्होंने लोगों की परवाह किये बगैर अपने काम पर ध्यान दिया । 

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भाभी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, पर सिर्फ अपनी दृढ़ सोच की वजह से उन्होंने कर दिखाया,जो लोग उनके रंग,रूप,  कद-काठी की बातें बनाते थे वो ही उनकी तारीफ करते हैं, कहते है बहू आयें घर में तो तेरी जैसी आयें। भाभी आज अपने हुनर की वजह से सबके दिलों पर राज कर रही है।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

# भाभी

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