शहर के बीचोबीच स्थित एक छोटे से मोहल्ले में शुक्ला परिवार रहता था। परिवार में चार लोग थे: माता-पिता, पवन और कुसुम, और उनके दो बच्चे, आरव और अनु। जाति से ब्राह्मण शुक्ला दंपति को अपने संस्कारों पर बहुत गर्व था। शुक्ला दंपति ने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए थे, हमेशा सिखाया था कि सच बोलना, दूसरों की मदद करना, और सम्मान देना ही असली सफलता है।
आरव और अनु पढ़ाई में भी अच्छे थे, लेकिन आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में कभी भी कोई भी गलत संगत में आ सकता है। आरव, जो अब कॉलेज में था, हाल ही में कुछ नए दोस्तों के साथ घुलने-मिलने लगा था, जो गलत कामों में लिप्त थे। धीरे-धीरे आरव को भी उनके नक्शे कदम पर चलने का शौक चढ़ने लगा।
एक दिन आरव ने अपने दोस्तों के कहने पर कॉलेज के रिसेप्शन डेस्क से कुछ पैसे चुराए। वो जानता था कि यह गलत है, लेकिन दोस्तों के दबाव में आकर उसने यह कदम उठा लिया। जब कॉलेज में चोरी का पता चला, तो सब हैरान रह गए। कॉलेज प्रशासन ने जब सीसीटीवी फुटेज की जांच की, तो आरव की हरकत साफ दिखाई दी।
जब यह खबर शुक्ला परिवार तक पहुंची, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि उनका बेटा, जिसने अच्छे संस्कारों की घुट्टी पी थी, ऐसा कर सकता है। उस रात घर में सन्नाटा पसरा हुआ था।
पवन ने गहरी सांस लेते हुए आरव से कहा, “बेटा, हमें तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। हमने हमेशा तुम्हें अच्छे संस्कार दिए, फिर भी तुमसे ये गलती कैसे हो गई? क्या हमारे दिए संस्कारों में ही कुछ कमी रह गई?
” पैसे चुराते हुए तुम्हें एक बार भी अपने मां-बाप का ख्याल नहीं आया और यह भी नहीं सोचा की छोटी बहन पर इसका क्या असर पड़ेगा हम सब मिडिल क्लास के फैमिली है बेटा तो दुनिया वाले हमारे बारे में क्या राय रखेंगे एक बार तो इस विषय पर तुम्हें जरूर सोचना चाहिए था।
कुसुम की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन्होंने संयम बनाए रखा। “आरव, गलतियां इंसान से ही होती हैं, लेकिन हमें उनसे सीखना चाहिए। आगे से तुमसे ऐसी गलती ना हो इस बात की मन में गांठ बांध लो बेटा और घबराओ मत कॉलेज में तुम्हें सच का सामना करना होगा। वैसे भी हम सब एक परिवार हैं तो इस परीक्षा की घड़ी में भी तुम्हारे मां-बाप और तुम्हारी बहन सब तुम्हारे साथ है
तो तुम चिंता मत करो बस अपनी गलती को स्वीकार करो और मन में अपने कसम खाओ कि आइंदा से ऐसी गलती तुमसे कभी नहीं होगी।”आरव ने सिर झुका लिया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, लेकिन यह सोचकर डर लग रहा था कि अब आगे क्या होगा। फिर भी कहीं ना कहीं मां और पापा की बातों ने ने उसके मन में ढांढस तो जरूर बांधा था।
अगले दिन, पवन और कुसुम ने आरव के साथ कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने का फैसला किया। प्रिंसिपल ने आरव की गलती की गंभीरता को समझाया और कहा कि इस गलती का अंजाम आरव के भविष्य पर भारी पड़ सकता है। यदि कॉलेज कमेटी को इस बारे में पता भी चल गया तो वह इसे रिस्ट्रिक्टेड भी कर सकते हैं।
पवन ने विनम्रता से कहा, “सर, हमारे बेटे से गलती हुई है, लेकिन हम उसे सुधारना चाहते हैं। कृपया एक मौका और दें।”
प्रिंसिपल ने कुछ सोचकर कहा, “अगर आरव अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और अपनी सजा के रूप में कॉलेज की सफाई में एक महीने तक मदद करता है, तो हम इसे अनदेखा कर सकते हैं। देखिए मिस्टर शुक्ला आप तो जानते ही हैं कि हमें सब को जवाब भी तो देना है और बच्चों पर भी तो इसका असर पड़ सकता है इसलिए एक महीने की सजा तो आरव को माननी ही चाहिए।”
पवन और कुसुम ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उन्होंने आरव को समझाया कि यह मौका उसे अपने आप को सुधारने का है।
आरव ने पूरी ईमानदारी से अपनी गलती को स्वीकार किया और एक महीने तक कॉलेज की सफाई में मदद की। यहां तक कि उसने सफाई कर्मचारियों के साथ बाथरुम और कॉलेज की कैंटीन तक की भी सफाई कराई। इस दौरान उसने महसूस किया कि सही रास्ता ही सबसे अच्छा रास्ता है। शॉर्टकट से पैसे कमाने का जरिया बिल्कुल सही नहीं होता है। धीरे-धीरे, उसके अंदर की बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो गई।
उसने अपने बिगड़े दोस्तों से दूरी बनानी शुरू कर दी और अपने माता-पिता की दी हुई सीखों पर चलना शुरू कर दिया। उसकी मेहनत और लगन देखकर न केवल उसके माता-पिता बल्कि पूरे कॉलेज को उस पर गर्व होने लगा।
जब आरव ने कॉलेज की सफाई का काम पूरा किया, तो प्रिंसिपल ने एक सभा में उसे सबके सामने सराहा। उन्होंने कहा, “आरव ने जो गलती की, उसे सुधारने का प्रयास करके उसने एक मिसाल कायम की है। यह दिखाता है कि अच्छे संस्कार कभी बेकार नहीं जाते।”
आरव के माता-पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे। उन्होंने महसूस किया कि उनके संस्कारों में कोई कमी नहीं थी, बस एक पल के लिए आरव बहक गया था। लेकिन सही मार्गदर्शन और प्यार ने उसे फिर से सही रास्ते पर ला दिया।
शुक्ला परिवार ने इस अनुभव से सीखा कि गलती इंसान से होती है, लेकिन उसे सुधारने की कोशिश ही असली संस्कार है। उन्होंने अपने बच्चों को सिखाया कि चाहे कुछ भी हो जाए, सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता कभी मत छोड़ो।
आरव की यह कहानी पूरे मोहल्ले में फैल गई। लोग शुक्ला परिवार की तारीफ करने लगे कि उन्होंने अपने बेटे को सही मार्ग दिखाया और एक प्रेरणा दी कि संस्कार कभी व्यर्थ नहीं जाते, बस उन्हें सही समय पर सही दिशा देने की जरूरत होती है।
इस तरह, “हमारे दिए संस्कार में कुछ कमी रह गई होगी” कहने की बजाय, माता-पिता और बच्चों ने मिलकर इस वाक्य को “हमारे दिए संस्कारों ने सही समय पर सही दिशा दिखाई” में बदल दिया।
स्वरचित एवं मौलिक
पूजा मिश्रा ‘धरा’
गोंडा, उत्तर प्रदेश