मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं,किसी की बेटी भी हूँ,जिनकी वजह से दुनियाँ में आई हूँ आप चाहते हैं उनकी परवाह छोड़ दूँ। छोड़ दूंँगी पर मेरी तरह आपको भी अपने माँबाप से सारे रिश्ते तोड़ने होंगे-चित्रा आवेश में थी।
देखो..मेरे माँ बाप को बीच में ना लाओ तो बेहतर है, इकलौता बेटा हूँ मैं उनका..मैं छोड़ दूँगा तो और उनका है कौन ??-सुदेश चिल्लाकर बोला
वाह…इकलौते हैं तो आपको माँ बाप की फिक्र है,उनसे प्यार है और मेरे दो भाई बहन और हैं तो मेरा प्यार उनके लिए कम हो जाएगा..ये कौन सा अजीब सा तर्क है आपका-चित्रा की आवाज भी तेज हो गई।
दोनों के बीच का विवाद बजाय थमने के बढता ही जा रहा था। रीत और शुभ अपनी अपनी पढाई छोड़ दुबक कर बैठे थे।
दीदी..क्या आज भी खाना नहीं बनेगा- छह वर्ष के शुभ ने बहन रीत से पूछा।
कोई बात नहीं शुभ..मैंने उस दिन मैगी बनाया था ना कितना टेस्टी था..फिर बना लूंगी और हमदोनों खा लेंगे–दस वर्ष की रीत ने भाई को समझाया।
दोनों बच्चों के लिए माँ बाप की ये लड़ाई कोई नई नहीं थी।हर दूसरे दिन अपने अपने माँ बाप को लेकर चित्रा और सुदेश में जमकर लड़ाई होती।सबसे छोटी औलाद होने के कारण चित्रा का माता पिता के प्रति अत्यधिक झुकाव था,जिसके कारण अपने परिवार के प्रति होने वाली चित्रा की अनदेखी सुदेश को पसंद नही आती..वहीं सुदेश के इकलौते होने के कारण अपने माता पिता को लेकर हद से ज्यादा सुरक्षात्मक रवैया और आसक्ति चित्रा को नागवार गुजरती।छोटी सी बात पर भी दोनों कुत्ते बिल्ली की तरह उलझ पड़ते और बात जरूरत से ज्यादा खींच जाती।
शुरू शुरू में तो बच्चों की थोड़ी बहुत परवाह भी थी दोनों में,पर अब तो लड़ाई होती तो चित्रा कमरा बंद कर सो जाती और सुदेश घर से निकल जाता और देर रात लौटता।छोटी सी रीत खुद को भी संभालती और छोटे भाई को भी।जो थोड़ा बहुत किचन में पड़ा होता दोनों भाई बहन खा लेते और सो जाते।
उस दिन भी वही हुआ..चित्रा ने खुद को कमरे मे बंद कर लिया और सुदेश बाहर निकल गया।रीत ने इंडक्शन पर अपने नन्हें हाथों से मैगी बनाया, खुद भी खाया,भाई को खिलाया…सुबह के लिए दोनों का बस्ता तैयार किया।पहले भाई को सुलाया..फिर मम्मी पापा के बारे मे सोचती सोचती सो गई।
अन्य दिनों की तरह फिर सुबह से चित्रा अपने कामों में जुट गई ।हर झगड़े के बाद एक आधा दिन पति पत्नी की बातचीत लड़ाई के बाद बंद रहती थी..फिर समझौता होता और फिर दूसरे तीसरे दिन उसी तरह की लड़ाई।
चित्रा ने बच्चों और सुदेश का लंच बाक्स पैक कर और उनका नाश्ता टेबल पर लगा दिया।सबके निकलने के बाद सारा काम निपटाकर अपना नाश्ता और फोन लेकर बैठी ही थी चित्रा,सोचकर की नाश्ता करते करते वीडियो काल पर पापा मम्मी से भी बात करेगी।
तभी रीत की क्लासटीचर का नंबर फोन की स्क्रीन पर फ्लैश हुआ।
मैम…क्या मेरी रीत की मम्मी से बात हो रही है?”
“यस मैम..”
“आपसे और रीत के फादर से प्रिंसिपल मिलना चाहतीं हैं आज ही”
कोई कंप्लेंट है क्या मैम
मैम..प्लीज आप लोग आकर बात कर लें-क्लासटीचर ने कहकर फोन काट दिया।
सुदेश आफिस से छुट्टी लेकर और चित्रा घर से ही स्कूल पहुंची।दोनों प्रिंसिपल चैंबर पहुंचे तो प्रिंसिपल फोन पर थी।प्रिंसिपल ने दोनों को बैठने का ईशारा किया।
“मैम..रीत के पैरेंट्स.. क्लास फोर सेक्शन सी..क्या गलती हो गई हमारे वार्ड से मैम,जो यूं अचानक से…।”
अच्छा अच्छा..आप हैं रीत के मम्मी पापा।देखिए आपकी बच्ची अपने क्लास की एक बहुत ब्राइट स्टूडेंट है ,बहुत अनुशासित है, हर विषय में अच्छा करती है.. पर कल उसकी हिंदी टीचर ने सारे बच्चों को अपने मम्मी पापा के बारे में लेख लिखने बोला।उसने कुछ ऐसा लिखा कि उसकी हिंदी टीचर ही नहीं मै भी चिंतित हो उठी..कि इतनी छोटी सी बच्ची के मन में ये क्या पल रहा है… ये देखिए आपलोग भी–कहकर प्रिंसिपल ने रीत की नोटबुक चित्रा और सुदेश की तरफ बढा दी।
“मम्मी पापा बहुत अच्छे होते हैं, बच्चों को प्यार करते हैं, उन्हें खिलौने,कपड़े और अच्छी अच्छी चीजें लाकर देते हैं, बच्चों को भी अपने मम्मी पापा को बहुत प्यार करना चाहिए।पर सबको बड़े होने के बाद,जब वो खुद बच्चों के मम्मी पापा बन जाते हैं तो उन्हें अपने मम्मी पापा को प्यार करना छोड़ देना चाहिए,क्योंकि इससे घर में हमेशा लड़ाईयां होती है, खाना भी नहीं बनता और घर में जो बच्चे होते हैं उन्हें डर भी लगता है। मम्मी-पापा प्यार से रहते हैं तभी बच्चे भी खुश रहते हैं।मेरे भी मम्मी पापा बहुत अच्छे हैं वो मुझसे और मेरे भाई से बहुत प्यार करते हैं और हमदोनों भी उन्हें बहुत प्यार करते हैं,और तबतक करेंगे जबतक हम बड़े नहीं हो जाते,क्योंकि लड़ना अच्छी बात नहीं और हर बच्चे को उसके मम्मी पापा तब सबसे अच्छे लगते हैं जब वो प्यार से रहते हैं।”—रीत
पढते पढते सुदेश और चित्रा भावुक हो गए। स्वयं का अपने घर का बेटा और बेटी बनने के प्रति न्याय करते करते अपने बच्चों के प्रति कब अन्याय शुरू हो गया ये कहां सोच पाए थे वो..
मैम..इसमें रीत की सोच नहीं हमारे परवरिश का दोष है-चित्रा ने खुद को संभालते हुए कहा।
और मैडम.. हमें अभी तक इसका एहसास ही नहीं था..कि हमारे बच्चे के मन में ऐसी ग्रंथि पल रही है-सुदेश के हर शब्द में पछतावा था।
“आपको यहांँ बुलवाने और ये अपने सामने पढवाने का हमारा मकसद ही यही था,आप जानें कि बच्चे कच्ची मिट्टी होते हैं, उनको और उनकी सोच को आकार,माँ बाप के विचार ,व्यवहार और रहन सहन से मिलता है.. अभी भी देरी नहीं हुई है, आपलोग आपस में विचार करें और घर के माहौल को अच्छा बनाएं ताकि बच्चा एक अच्छी परवरिश पाकर एक अच्छा इंसान एक अच्छी संतान बने।”
प्रिंसिपल चैंबर से बाहर निकलते निकलते सुदेश और चित्रा अपने अपने बेटे और बेटी के आवरण से निकलकर एक माता और पिता की भूमिका में आ चुके थे।दोनों को अपने बच्चे का ही नहीं अपना भी तो भविष्य सुधारना था क्योंकि ये भी सच है कि हर इंसान की इस धरती पर कई भूमिकाएं होती हैं..उसे हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं एक किरदार में जान डालते डालते,दूसरी भूमिका के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा…।
#अन्याय
मीनू झा