जहां से स्कूली शिक्षा समाप्त होती है बच्चे अपने कैरियर का चुनाव करते है वहां तक पहुंचने की ज़द्दो-ज़हद आज कई वर्षो से चल रही थी । हर बार कुछ न कुछ कमी रह ही जाती कभी रिटेन खराब हो जाता तो कभी डेमो और कभी इंटरव्यू पर रीमा ने हार नही मानी।
उसे अच्छे से याद है जब वो छोटी कक्षाओं में पढ़ाती थी तो हर बड़ी कक्षाओं के शिक्षक और छात्रो को देखकर उसके मन में हूक सी उठती थी और सोचती
जाने कब वो दिन आयेगा जब …………. और फिर अचानक से अपने ख्वाबों को खुद ही झटक देती कि अरे वो …….. सवाल ही नही उठता ।सोचती भी ऐसा क्यों ना जिस भी स्कूल में बड़ी कक्षाओं की अध्यापिका के पद के लिए परीक्षा देती वहां से उसे निराशा ही हाथ लगती। बात यही खत्म ना होती घर पहुंचते ही अपनों के ताने
उसे हताश और निराश कर देते ।कि जहां पढ़ा रही हो वही पढ़ाओं ज्यादा ऊंचे ख्वाब ना देखो तुम्हारे बस का नही है ये सब फिर क्या फिर तो ये और भी टूट जाती ।पर इसके दरमियान जाने कैसे उसके भीतर एक जुनून जागा कि कुछ भी हो वो प्रयास करना नही छोड़ेगी ।
और कहते है ना कि निरंतर प्रयास से तो बडे से बड़े काम हो जाते है तो फिर ये कौन सी बड़ी बात थी।
और हुआ भी वही आज वर्षो की तपस्या रंग लाई।
वो रिटेन,डेमो,और इंटरव्यू तीनों में अव्वल आई।जिस समय प्रधानाचार्य ने उसे बुला कर बताया कि तुम तीनों परीक्षाओं में पास हो गई हो ,अब तुम ऊपर की मन चाही कक्षाओं में पढ़ा सकती हो तो उसके खुशी का ठिकाना न रहा ।ऐसे में जब उसे विद्यालय की ऊंची कक्षाओं में पढ़ाने का मौका मिला। तो सबसे पहले उसने अपने आत्मविश्वास को धन्यवाद दिया जिसने उसका हर परिस्थिति में साथ दिया उसके बाद उनका जिन्होंने उसकी उपेक्षा की।
यदि वो ऐसा ना करते तो शायद आज वो मन मार कर वही पढ़ा रही होती जहा वर्षो से ऊंची कक्षाओं का सपना लिये पढ़ा रही थी।
सच धैर्य साहस और विश्वास का अदम्य परिचय देकर
आज उसने दिखा दिया कि अगर ये साथ है तो कुछ भी असंभव नही है।
लघुकथाकार
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू