Moral Stories in Hindi : परेश ने छह महिनों में एक बार भी अपने पिता राजेश जी के घर की ओर रूख नहीं किया। अपनी माँ रमा जी, के व्यवहार से वह बहुत आहत हो गया था। उसकी माँ ने चारू के साथ जो व्यवहार किया, उसे याद करके तो उसकी अपने घर जाने की इच्छा ही समाप्त हो गई थी। पिता से मिलना होता, तो उनकी दुकान पर जाकर मिल लेता।
उन्होंने कहा भी कि बेटा घर लौट आओ, मुझे तुम्हारे और चारू के बिना घर में अच्छा नहीं लगता है, मगर परेश नहीं माना। परेश एक विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत था। आज तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी इसलिए विद्यालय नहीं गया था,और घर पर ही नोट्स तैयार कर रहा था। सुबह चारू जब मंदिर दर्शन करने के लिए गई,तो उसने अपनी सास को देखा।
वे बहुत कमजोर लग रही थी, इच्छा हुई कि जाकर सासु को प्रणाम करे मगर हिम्मत नहीं हुई। मन्दिर में उनकी पड़ोसन राधा भाभी मिली उन्होंने बताया कि ‘रमा आंटी की हालत बहुत खराब हो गई है, सुबह घर के बाहर कचरा निकालते हुए दिख जाती है, कभी बाहर आंगन में बर्तन मांजते हुए दिखती है। तुम्हारे घर से हमेशा लड़ाई की आवाज आती है। अंकल जी तो अब ज्यादा समय अपनी दुकान पर ही रहते हैं।’
राधा भाभी की बात सुनकर चारू भारी मन से घर आ गई।
उसने सोचा अब वह घर मेरा कहाँ है, उस पर तो देवर- देवरानी का अधिकार है, पूनम बड़े बाप की बेटी है, अच्छा दहेज लेकर आई है, इसलिए सासूजी की लाड़की है। वह सोच रही थी कि क्या अच्छी और बुरी बहू को नापने का पैमाना उनके मायके से मिलने वाला धन है। मैं तो एक गरीब परिवार की लड़की हूँ, जिसके ऊपर से माँ का साया बचपन में ही उठ गया, मैंने तो अपनी सास को अपनी माँ माना था,
मेरी शादी के बाद मैं उन्हें कोई काम नहीं करने देती थी, भोजन उनसे पूछकर उनकी पसंद का बनाती थी, उनकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखती थी, मेरे पास दिल की दौलत थी, मगर सासु माँ के लिए उसकी कोई कीमत ही नहीं थी। चारू सोचती जा रही थी और उसके होटो से अनायास ही ये शब्द निकले ‘सासु जी तूने मेरी कदर नहीं जानी।’
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परेश ने कहा ‘जब से मन्दिर से आई हो गुमसुम हो, और यह क्या बड़बड़ा रही हो। ‘ चारू अचकचा गई बोली आज मंदिर में माँ मिली थी, बहुत कमजोर लग रही थी। मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।’ ‘कैसी बातें कर रही हो चारू? कैसी माँ? क्या तुम भूल गई उन्होंने कितनी गाली बकी थी तुम्हें, और दुत्कार कर घर से निकाल दिया था।’ पर परेश वो हमारी मॉं है,
मैं उन्हें दुखी नहीं देख सकती, मेरे खातिर एक बार घर चलो,अगर माँ आना चाहे तो हम माँ पापा को यहाँ ले आऐंगे,मैं उन्हें जरा भी तकलीफ नहीं होने दूंगी।’ परेश ने कहा ‘ठीक है तुम्हारे कहने से चल रहा हूँ, पर मैं कुछ बोलूँगा नहीं, बात तुम्हें करनी होगी।’ ‘ठीक है, मैं बात करूँगी। ‘
परेश और चारू को आया देखकर राजेश जी बहुत खुश हुए।चारू ने दोनों के पैर छूए राजेश जी ने आशीर्वाद दिया, रमा जी ने सिर पर हाथ रखा, वे कुछ बोल नहीं पाई , वे जमीन की तरफ देख रही थी। चारू ने कहा -‘माँ -पापा आपके बिना हमें वहाँ अच्छा नहीं लगता है, हम आपको लेने आए हैं। आपको जितने दिन अच्छा लगे वहाँ रहना अच्छा न लगे तो फिर यहाँ आ जाना, दोनों घर आपके हैं।’ रमा जी ने सिर ऊपर किया, उनकी ऑंखों में नमी तैर गई थी।
राजेश बाबू की ओर देखा, तो उन्होंने कहा- ‘अपना सामान जमा लो, बेटा बहू लेने आए हैं, हम शाम को चल रहे हैं।’ रास्ते भर रमा जी कुछ नहीं बोली, घर पहुँच कर चारू को अपने सीने से लगा लिया, उनकी ऑंखों से अविरल ऑंसू बह रहै थे। चारू ने पौधे की कोशिश की तो राजेश बाबू ने कहा बह जाने दे बेटा, इसका मन हल्का हो जाएगा। रमा जी के ऑंसू ने उनकी सारी कहानी कह दी थी। इसमें उनके दु:ख, पश्चाताप, ग्लानि के साथ हर्ष भी शामिल था जो उन्हें चारू के व्यवहार से मिला। वे पूरी तरह बदल गई थी,उनका हृदय परिवर्तन हो गया था। चारू को मॉं मिल गई थी और माँ चारू को छोड़कर फिर अपने पुराने घर में कभी नहीं गई।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#सासु जी तूने मेरी कदर न जानी’