कांति अपनें माँ बाप की इकलौती पुत्री थी। दो पुत्र कांति से पहले खत्म हो गए ,चार कांति के बाद पैदा हुए यानि चार भाइयों की इकलौती बहन, घर भर की लाडली।
“कांति की माँ !ब्याह कर दे कांति का, मृतजाई है… जिनगी लंबी हो जाएगी इसकी । ” एक ग्रामीण महिला ने सलाह दी तो कांति के माँ- बाप ने नौ महीने गर्भ के लगा कर बारह वर्ष की उम्र में शादी ,अठारह की उम्र में गौना कर दिया।
कांति ने बड़ी बहू, तीन ननदों और एक देवर की भाभी बन कर ससुराल में कदम रख दिया।
सास -ससुर, पोते -पोती देखने को व्याकुल लेकिन कांति माँ ही नही बन पा रही अब गाँव का माहौल यानि दोष कांति में।
संतान न होने के कारण कान्ति के पति राम प्रकाश तो कांति को रखने के लिए बिल्कुल राजी न थे लेकिन ससुर के धनधान्य भरे जीवन और सालों की हेकड़पन की आदत के सामने झुक जाते।
कांति की माँ हर दूसरे -तीसरे महीने बुग्गी भर-भर कर खाने -पीने सामान व सास- ससुर ,तीनो ननदों व एक देवर के कपड़े भेजती सो सास का मुहँ बंद हो जाता।
इस बीच कांति के ननद,देवर का भी ब्याह हो गया।
खैर ईश्वर की कृपा से शादी के अठारह साल बाद कांति को एक पुत्र की प्राप्ति हो गयी ।उसके बाद भगवान को न जाने क्या सूझा कांति को फिर कोई संतान ही नही हुई।
कांति को इस बात का भी बहुत घमंड था कि जब तक उसके पुत्र नही हुआ तब तक देवरानी के भी दो पुत्रियां ही रही ।कांति के पुत्र पैदा होने के बाद ही देवरानी भी पुत्रवती हुई । यानी वंश बेल कांति के पुत्र ने ही बढ़ाई ऐसा कांति सोचती थी। कांति तो कभी -कभी यह भी कहती ‘शेरनी एक ही शेर पैदा करे है।’
इस बीच कांति का सास- ससुर भी चल बसे और कांति ने सास का स्थान ग्रहण कर लिया।
कांति को घर के काम से कोई सरोकार नही था क्योंकि देवरानी और उसकी बेटियाँ थी इन सबके लिए ।
कांति ने बेटे का नाम राजा रख कर लाड़प्यार में उसकी हर गलती पर पर्दा डाल दिया। राजा ने आठवीं पास करते ही सोलह वर्ष की उम्र ने मधुशाला में प्रवेश ले लिया।
कान्ति की इच्छा पोते -पोती देखने की हुई अतः राजा की भी गर्भ के नौ माह जोड़ कर अठारह वर्ष की उम्र में शादी कर डाली; सोलह वर्षीया बहु का नाम था राधा।
राजा भी शहर की एक फैक्टरी में चपरासी लग गया पर तनख्वाह शराब के लिए थी। हर दो साल में कान्ति दादी बन जाती।
मायके में भाभियाँ और भतीजियां हँसी उड़ाती सो कान्ति ने मायके जाना कम कर दिया था।
सारा गाँव कहता “कान्ति !अपनी कमी क्या बहु से पूरी करेगी ? अब तो बस कर।”
बाप- बेटे दोनों के शरीर स्वास्थ्य खो रहे थे ।बाप का पोते -पोती पालने की मेहनत में और बेटे का शराब में..मगर कान्ति के स्वास्थ्य में चौगुनी वृद्धि हो रही थी।
वैसे तो आठ बच्चे होते लेकिन दो गर्भ में समाप्त हो गये।तीन पोतियों के साथ तीन पोते भी थे लेकिन एक पोता जन्म से हाथ पैर से लाचार था सो कान्ति के लिए बेकार था l
जैसे ही एक और पोते की आस में नवें की आहट आई तो कान्ति की दसवीं कक्षा में पढ़ रही पोती मनीषा ,राधा की दोनों बाहें पकड़ कर झकझोर कर बोली।
“बाप तो शराब का नशा करे है ..तू बता कौन सा नशा करे है ? तुझे दिखे ना है बाबा और मैं कितनी मेहनत करे है,आठवीं से कपड़े सिल कर पैसा कमा रही हूँ ।”
फिर अपनी छोटी बहन अनीता की तरफ इशारा करते हुए कहने लगी “घर का काम ,स्कूल जाना , भैस का काम कितना थक जावे हम दोनों बहनें.. “
“अम्मा तो खाती है और चार औरतों में पंचायत लगा के बैठ जाती है; जब गर्मी में चूल्हे के आगे बैठ कर रोटी बनायेगी तो सारे स्वाद याद आ जायेंगे .. चल तू आज मेरे साथ डाक्टरनी के पास चल.. “कह कर मनीषा, राधा का हाथ खींचने लगी।
अनीता भैंस को चारा डालने जा रही थी अपनी माँ से ऐसे टकराई कि चारे के टोकरा एक तरफ गिरा तो माँ दूसरी तरफ ।
राधा अस्पताल पहुँच कर जो लौटी तो एक दुखभरी खबर के साथ कि कान्ति भविष्य में अब कभी दादी नही बन सकती लेकिन मनीषा तथा अनिता अत्यन्त प्रसन्न थी।
अब कान्ति ने अनीता की खिंचाई शुरू की “अंधी हो कर चले नालायक, देख कर कर न चला जाता है ।”
मनीषा ने अनीता का बचाव करते हुए कहा ” चाहे मेरी माँ के दस लड़के और हो जावें.. सारा गाँव तुझे शराबी की माँ और हमे शराबी की औलाद ही बोलेगा। तू ही जिम्मेवार है इसके लिए , होश में आजा अम्मा होश में ..जैसे तुझे अपना बेटा प्यारा लगे है वैसे ही हमें अपनी माँ ..रोटी बना रही हूँ खा ले आकर।”
कान्ति माथे पर हाथ रखे सोचने लगी ” यह क्या कह गयी छोरी ..मरी भूख के साथ होश भी उड़ा गयी।”
दीप्ति सिंह (मौलिक, स्वरचित)