Moral Stories in Hindi : उस समय के उत्तर प्रदेश के काशी नगर जो अब उत्तराखंड में है, से दो मित्रो अनिल और अनूप ने मेरठ कॉलेज में उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश लिया।घटना सन 1969 की है।रहने के लिये कमरा लेने के लिये अप्लाई किया तो उन्हें कॉलेज कैम्पस में ही स्थित मुस्लिम होस्टल में कमरा मिल गया।
होस्टल का नाम किसी मुस्लिम स्कॉलर के नाम पर है,पर पुकारा मुस्लिम होस्टल ही जाता है।होस्टल में सभी विद्यार्थी हिन्दू मुस्लिम आदि सभी रहते हैं।
अनिल और अनूप पहली बार घर से बाहर पढ़ने और रहने आये थे।दोनो ही व्यापारी परिवार से सम्बंधित थे,संपन्न थे।रहने का अंदाज भी शहरी था।अनिल और अनूप प्रातःकाल उठकर पढ़ाई करते फिर स्नान आदि से निवृत होकर होस्टल से बाहर स्थित कैंटीन में चाय नाश्ता करने जाते,इससे उनका थोड़ा घूमना भी हो जाता और हॉस्टल के कमरे में ही रहने की ऊब भी खत्म हो जाती।वहां से आकर फिर पढ़ते बाद में आपस मे गपशप करते।
बाद में उनके एक दो और मित्र बन गए तो वे भी गपशप में शामिल हो जाते। उनकी कक्षाएं शाम से प्रारंभ होती थी।दोपहर का खाना मेस में 12 बजे से प्रारम्भ हो जाता।एक दिन अनिल और अनूप मेस में खाना खाने गये,साथ मे प्रतिदिन की तरह अपने घर से लाये देशी घी को एक कटोरी में लेकर गये।
तभी एक लड़के ने जिसे वे जानते भी नही थे,उसने उनकी कटोरी उठा कर देशी घी अपनी थाली में डाल लिया।अनिल ने टोका अरे भाई साहब ये घी तो हमारा है, आपने क्यो उठाया?इतना बोलना था कि वह लड़का कड़क आवाज में बोला तुम्हारी इतनी हिम्मत जो मेरे सामने बोले,शायद नये हो।आज छोड़ रहा हूँ आगे बोले तो चीर के रख दूंगा।
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बात आगे बढ़ती इससे पहले ही अनिल अनूप के नये बने मित्र बीच मे आ गये और उस दादा टाइप लड़के से माफी मांग मामले को रफा दफा करा दिया।बाद में उन्हें पता चला कि वह दबंग लड़का जिसका नाम रवि है इस होस्टल का दादा है,उसके सामने कोई नहीं बोलता,कोई जरा भी चूं चपड़ करता भी है तो यह उसकी जबरदस्त पिटाई करता है।उसका यही काम है, होस्टल के लड़कों से ही अपने खर्च निकालता है।
अनिल अनूप को अजीब सा लगा पर किया ही जा सकता था,रवि का आतंक सब पर हावी था।एक दो बार और ऐसा ही उनके साथ हुआ,उनका घी या घर से लाये सामान को वह अपना ही समझ बेझिझक उठा लेता।मेस में ही नही उसकी अप्रोच लड़को के कमरों तक भी थी।
मेस में उन दिनों रोटियां चूल्हे में बनती थी,लकड़ियां पर सिकती गरम गरम रोटियां खाने का मजा ही कुछ और होता,सो खासकर छुटियों में तो सबकी कोशिश होती कि चूल्हे के करीब वाली सीट लेकर तब खाना खाया जाए।
उस दिन रविवार ही था,अनिल अनूप को आज चूल्हे के पास ही सीट मिल गयी थी,घर से आज ही अनिल की मां ने किसी के हाथ गाजर का हलवा भिजवाया था,वे गाजर का हलवा लेकर गये कि मेस में गरम करवा कर खायेंगे।हलवे को उन्होंने चखा भी नही था कि रवि दादा आ गया और हलवा देख जो उसका जी ललचाया तो उसने पूरा हलवा ही उठा लिया।
अनिल से आज रुका नही गया बोला रवि जी ये कोई तरीका है जो आप आये दिन ये नोंच खचोट करते रहते हो,आपको झिझक भी नही होती।अनिल का इतना बोलना था कि एक झन्नाटे दार थप्पड़ अनिल के गाल पर पड़ा, उसका शरीर झनझना उठा।अनूप ने भी जब यह देखा तो उसका भी खून खौल उठा।
दोनो ने सामने चूल्हे से जलती लकड़ी उठाई और उससे रवि को पीटना शुरू कर दिया।रवि को इस प्रतिरोध की जरा भी आशंका नही थी सो वह होस्टल की ओर भागा, पर अनिल अनूप दोनो पर आज खून सवार था, उन्होंने उसका पीछा नही छोड़ा और उसे पूरे होस्टल में पीटते हुए घुमाया।वह छूटने को गिड़गिड़ा रहा था।होस्टल में रवि की दादागिरी का आज सब छात्रो के सामने जनाजा निकल चुका था।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
सच्ची घटना, पात्रो के नाम बदले गये हैं, अप्रकाशित।