moral stories in hindi : “बहुत सिर पर चढ़ाकर रखती है तू अपनी बेटी को! देखना बहू पछतायेगी किसी दिन, जब खानदान का नाम डुबोयेगी तेरी ये लाड़ली! अरे लड़की जात है, पराये घर जाना है, लड़की को यूँ सिर पे नचाना ठीक नहीं होता। हमारी भी बेटियाँ पढ़ने जाती थीं, मजाल है मोहल्ले भर में कभी कहीं से शिकायत आयी हो उनकी! इसे देखो जरा, जब देखो किसी लड़के को पीटकर आ जाती है। अब इतनी छोटी भी नहीं रही है ये कि हर बात को नजरअंदाज कर दिया जाये।”
सावित्री चिल्लाये जा रही थीं और जब बहू नीता बिना कुछ बोले मुस्कुराते हुये चाय के बर्तन समेटकर जाने लगी तो उनका पारा और भी चढ़ गया
“कहाँ चली? मैं कुछ कह रही हूँ न, कानों में तेल पड़ा है क्या या मुँह में दही जमी है? बस यही तो है इस घर में, जैसी माँ वैसी बेटियाँ! मैं कुछ भी बकती रहूँ, किसी के कानों पर जूँ हीं नहीं रेंगती। जयेश कुछ कहता नहीं है न तुम लोगों से।”
“लेकिन दादी, माँ अगर बोलती हैं तो आप कहती हो कि पलटकर जवाब देती है, नहीं बोलती तो कहती हो कानों में तेल पड़ा है, किसी एक बात पर कायम रहो न कि उन्हें करना क्या चाहिए।”
तेरह बरस की छवि हँसते हुये बोली तो सावित्री उसपर बरस पड़ी-
“तू तो चुप ही रह लड़की, सारे फसाद की जड़ तू ही तो है, वैसे ही मोहल्ले भर में सबसे झगड़ती रहती थी अब और तेरी माँ तुझे जूडो कराटे सिखाकर पहलवानी के अखाड़े में उतारना चाहती है। अरे लड़कियाँ मारपीट करती अच्छी लगती हैं क्या? पर नहीं मेरी तो सुननी ही नहीं है किसी को, चलाते रहो सब अपनी मनमर्जी।”
“अखाड़े में नहीं उतरना है दादी, लेकिन सेल्फ डिफेंस तो आनी ही चाहिए न? बस वही सिखाना चाहती हैं माँ मुझे।”
“तू अनोखी पैदा हुयी है न? हमारे खानदान में किसी ने नहीं सीखी ऐसी कोई बला। फिर भी कभी कोई मुसीबत तो आयी नहीं किसी पर।”
“माँजी जमाना बदल गया है अब। पहले लड़कियाँ घर से बाहर भी तो कम ही निकलती थीं, लेकिन अब उन्हें घर में बिठाकर काम चल जायेगा क्या? पहले पढ़ाई लिखाई फिर नौकरी के साथ घर बाहर के पचास काम। जब इंडिपेंडेंट बनाना है तो घर से बाहर भी निकलना ही पड़ेगा इन्हें, फिर आत्मरक्षा तो आनी ही चाहिए हर लड़की को।”
नीता ने समझाया तो सावित्री ने मुँह फुला लिया और बहुत देर तक उनका बड़बड़ाना जारी रहा।
वैसे वह जानती थीं कि उनके बेटा बहू दिल के बुरे नहीं थे और बात भी गलत नहीं करते थे लेकिन फिर भी उन्हें बेटाबहू से बहुत सी ऐसी शिकायतें थीं जिसपर वे कभी गौर न करके हँसी में उड़ा दिया करते थे। खासतौर पर ये सभी शिकायतें छवि और रावी की परवरिश को लेकर ही थीं। एक तो दो लड़कियों के बाद विराम लगा दिया जबकि सावित्री को पूरा विश्वास था कि तीसरी बार उन्हें पोता ही होगा। बेटा जयेश भी तो दो बहनों के बाद ही हुआ था।
लेकिन जयेश और नीता ने उनकी एक नहीं सुनी। चलो नहीं हुआ तो न सही पर अब लड़कियों की लड़कों की तरह परवरिश करने की भी क्या जरूरत थी फिर? रावी छोटी है पर ये छवि पूरे तेरह की हो गयी। न इसके कहीं आने जाने पर कोई रोकटोक लगायी है न कपड़े पहनने के ढंग पर। लड़कों की तरह जींस शर्ट पहनकर पूरी दुनिया में घूमती रहती है। ऊपर से जयेश को नीता की परवरिश पर इतना भरोसा है कि उसने सबकुछ उसीपर छोड़ रखा है
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हौसलों की उड़ान ( भाग 2) – अर्चना सक्सेना : Moral stories in hindi
अर्चना सक्सेना