ऑफिस जाते समय ट्रैफिक सिग्नल पर दो मिनट के लिए रुकना रोजमर्रा की बात थी| जब गाड़ी वहा़ँ पर रुकती तो कार का शीशा खटखटा कर अपने हाथ फैलाने वाले उन विशेष टोली के सदस्यों को देखना भी आम हो चुका था| उस समय नेहा कभी शीशा उतारने के लिए सोच नहीं पाती क्योंकि उन्हें देख उसका मन कैसा-कैसा हो जाता था|
स्त्री रूप में उनका शृंगार हुआ करता | सूर्ख लिपस्टिक, बड़ी बड़ी डिजाइनर बिन्दी, बालों में महकते गजरे, बेपरवाही से वेणी झुलाते उनके बालों वाले हाथ, चमकीली साड़ियाँ देखते हुए जब चेहरे पर नजर पड़ती तो दाढ़ी -ंमूँछ के निशान देखते ही वह वितृष्णा से मुँह फेर लेती| उसे यह भी पता था कि ऐसा किसी क्रोमोजोमल समस्या के कारण हुआ करता है| इसमें उनका या उनके माता-पिता का कोई कुसूर नहीं होता,
फिर भी उसका मन अजीब सा हो जाता था|
उस दिन भी ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी रुकी थी| उसे देखते ही नेहा ने गाड़ी का शीशा उतार दिया और उसकी ओर कुछ बढ़ाया| उसने हाथ बढ़ाकर ले लिया और डब्बे को खोल विशेष अंदाज में ताली बजाकर हँस पड़ी| तभी हवा का एक झोंका आया और और दुपट्टा हटते ही नेहा की नौवें महीने की गर्भावस्था दिख गई| उसने नेहा के पेट पर हाथ घुमाते हुए बलाएँ लीं और आशीर्वाद देते हुए बोली,
“भगवान आपको सभी अंगों से परिपूर्ण बच्चा दें कि उसे किसी का ग्रह उतारने के लिए हरी चूड़ियाँ न लेनी पडें|”
यह कहते हुए आँख की कोर पर छलक आई नमी को उसने चुपके से अँगुली पर समेट लिया|
नेहा का चेहरा भौंचक हो गया जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो| किसी ज्योतिषि के कहने पर ही उसने ग्रह-शांति के लिये किन्नर को हरी चूड़ियाँ दी थीं| आज पहली बार नेहा का दिल भर आया| उसने अपने बैग से एक कार्ड निकाला और उसकी ओर बढ़ाते हुए बोली,
“एक महीने बाद इस पते पर आ जाना|”
उसने कार्ड थाम लिया| तबतक हरी बत्ती जल चुकी थी और गाड़ी आगे बढ़ने लगी| नेहा मुड़कर उसे देखती रही |
वह हरी चूड़ियों को आकाश की ओर उठाए थी| नेहा को महसूस हुआ कि जैसे वह उसके बच्चे के लिए दुआएँ माँग रही थी|
समाज में उपेक्षित इस वर्ग के लिए नेहा का दिल भर आया| उसे स्वयं के संकीर्ण सोच पर बहुत ग्लानि हुई |अपनी कमियों को स्वीकारते हुए दूसरों के बच्चों के लिए दुआएँ माँगने का बड़ा दिल तो उनके पास था|
— ऋता शेखर ‘मधु’