कामिनी बेटी, जोया की दुल्हन की साड़ी ले आईं, रूक्मिणी देवी ने
कमरे के अंदर से ही आवाज लगाई।
मांजी ले तो पहले ही आए थे , मैं और रोशनी पर आज तैयारी के लिए दुकान में दी थी, कामिनी ने कमरे की देहरी पर आते हुए कहा।
तो अब जा कर ले आओ, रुक्मणी देवी बोली।
ले आते हैं मांजी, रोशनी आफिस से आ जाए, उसे भी मार्केट का काम है, इकट्ठा हो जाएगा। कामिनी जाते हुए बोली।
शाम को रोशनी के आने पर दोनों देवरानी जेठानी मार्केट चली गई, और रूक्मिणी देवी को याद आ गया वो झगड़ा जो दोनों भाइयों व परिवार के बीच हुआ था, कितना परेशान हो गयी थी वह और कितना रोती थी दोनों को एक करने के लिए। एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि ये ना समाप्त होने वाली लड़ाई उनके समाप्त होने पर ही जाएगी। पुरानी कोठी वाली जमीन दोनों हक अपना जमा कर ले लेना चाहते थे, याद आया दोनों का
झगड़ना। उन्हें तो इस बात का भान ही नहीं होता, अगर दोनों के झगडे के बोल उनके कानों में नहीं पड़ते। कामिनी के चाचा लंदन से दो साल के लिए यहां आ रहे थे। वह चाहती थी कि उनके रहने का प्रबंध पुरानी कोठी में किया जाये पर रमेश तैयार नहीं था , वह कह रहा था कि इतने सालों के लिए कोठी देना उचित न होगा। पर एक दिन दोनों के बीच गरमा गर्मी इतनी बढ़ गई कि आवाजें रूक्मिणी देवी और उनके पति के कानों तक जा पहुंची। और कामिनी रोहित से कहने लगी कि वह कोठी में शिफ्ट कर जायें और दोनों के बीच बोल चाल बंद हो गई।
इस कहानी को भी पढ़ें:
रूक्मिणी देवी व उनके पति ने दोनों भाइयों को समझना चाहा पर नाकाम रहे। इसका असर परिवार पर पड़ रहा था । दोनों बहुओं के बीच भी तनातनी होने लगी। दोनों के बच्चे भी सहमें से रहते और आपस की लड़ाई से दूर रहने का प्रयत्न करते। रूक्मिणी देवी बड़ा चाहती कि दोनों के बीच के इस झगडे को सुलझाएं पर दोनों अपनी अपनी जिद पर अड़े थे। रुक्मणी देवी परेशान थीं कि अगले महीने जोया जो कि उनकी बेटी है, उसकी शादी है। इस बिखरे हुए माहौल में वो किस तरह अपने घर की साख बनाए रखें व घर
की इज्जत को सरेआम आने से बचाएं। वह चाहती थी कि सौ रिश्तेदारों के बीच उनके घर का तमाशा बनने से रह जाए। दोनों को अपने स्तर पर समझा कर देख लिया पर नाकामयाब ही रहीं और पिछले दिनों जो कुछ भी घर में घटित हो रहा था उसका असर उनके पति के ऊपर इस कदर पड़ रहा था , ये वो लोग तब जान पाए जब एक दिन सोकर उठने पर वह अपने पति के लिए चाय लेकर आई, और पति को जगाया पर वे सफल नहीं हो पाई। उनसे उठा नहीं जा रहा था। उन्होंने रोहित को आवाज लगाई कि देखो, आकर पिता को क्या हो गया है।
तक रमेश व रोशनी भी आ गये थे।सब मिलकर उन्हें अस्पताल लेकर गए , वहां डाक्टर ने कहा दिया किसी बात के ज्यादा दबाव पड़ने से इन्हें हल्का हार्ट पर अटैक पड़ा है। अगर जिंदगी चाहते हो तो ज्यादा दबाव न पड़ने दो। घर आकर रूक्मिणी देवी की रूलाई फूट पड़ी । वह दोनों को दोषी ठहराते हुए बोली किसी को भी
मां बाबूजी की चिंता नहीं है कल को अगर तुम लोग इसी तरह झगड़ते रहे , तो कोई अनर्थ न हो जाए। इस घटना का असर दोनों को झकझोर गया व दोनों ही बोले कि मां आप ठीक कह रही है, हम अपने झगडे में सब भुला बैठे थे।अब कोई बात ऐसी नहीं करेंगे और जब तक आप दोनों जीवित है हम उस कोठी को अपना नहीं मानेंगे व बाद में भी आप और पिताजी जो फैसला करेंगे, हमें मंजूर होगा। हम दोनों मिलकर जोया की शादी करेंगे। सुनकर उनके पति के चेहरे पर सुख की लहर दौड़ गई। झगड़ा समाप्त होते कुछ समय तो
लगा पर कुछ ही दिनों में घर का माहौल पहले जैसा हो गया। दोनों भाई जोया की शादी की तैयारी मिल बांट कर करने लगे। रूक्मिणी देवी को लगा कि उनका घर जो आपसी नासमझी से पीले पतों के समान सूख गया था उस घर पर समझदारी का साया पड़ने से पीले पत्ते हरे होने लगे हैं ।
* पूनम भटनागर।