हरा साग – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

आज पिताजी थोड़ी  देर से आए थे..

मां ने आते ही उनसे कहा..

सुनोजी ..

हाथ की पानी की रोटी बनाये  रही हूं ..

जल्दी से हाथ मुंह धो कर पटले पर बैठ जाओ…

लगा देती  हूं…

शायद मां ने भी पिता के चेहरे पर आई हुई शिकन और थकान नहीं देखी थी…

पिताजी कुछ ना बोले …

अपने खाने की थैली से उन्होंने खाने का डब्बा निकाल कर नल के पास ही रख दिया…

और थैली को खूंटी पर टांग दिया ..

कपड़े उतार कर झाड़ लगाकर खूटी पर   टांग दिए…

नल चलाकर पानी भरने लगे..

मुझ पर रहा ना  गया…

झट से अपनी कॉपी बंद कर पिताजी के पास चला गया ..

लाओ  पिताजी ,,मैं चला देता हूं नल…

तुम धो लो हाथ मुंह …

बहुत ठंडा ठंडा पानी आ रहा है..

तू तो सवाल बना रहा था ना ..

जा सवाल बना  जा करके …

पिताजी कड़क आवाज में बोले …

इधर-उधर ध्यान देता रहता है…

बस पढ़ाई पर ध्यान दिया कर…

समझा…

कितनी बार तुझसे  कहा है बाकी सब में देख लूंगा …

बस तू पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी पा…

मेरी तरह तंगी न झेलनी पड़े…

पिताजी एक बात पूछूं …??

क्या पूछ रहा है बता..

आप रोज 7:00 बजे तक आ जाते थे…

आज आपको आने में 7:30 कैसे बज गए…

तू  क्या मेरा बाप  हो रहा है…

जो मुझसे ऐसे पूछ रहा …

हो जाती है लेट अबेर …

जा जाकर पढ़ …

और बिट्टू का होमवर्क बनवा दिया…

पिताजी ,क्या बताऊँ….

उसका मन बिल्कुल ना लगता पढ़ने में …

इतनी देर से सवाल समझा रहा हूं…

एक भी सवाल उसकी बुद्धि में नहीं जाता …

ठीक है, खाना खाकर मैं ही समझाता हूं …

पिता राम प्रकाश  पटला ले तहमद पहनकर  मां के पास बैठ गए…

चूल्हे पर मां गरमा गरम रोटी बना रही थी …

टमाटर लहसुन की चटनी थी साथ में…

उन्होंने रख दी थाल में …

क्यों आज साग ना  बनाया …?

तुम्हे तो चटनी से ही पसंद है ना हाथ की रोटी …

बच्चे तो पढ़ते हैं ,उनको क्या चटनी खिलाकर चटनी सा बना देगी….

उनके लिए तो सब जरुरी है…

शरीर में ताकत कैसे आएगी…

अगर सब कुछ ना  खायेंगे  तो …

एक बात बताओ जी…

क्या तुमने आज साग लाकर दिया है …

पैसे देकर तो गया था तुझे …

लेकर ना आई  कुछ…

ना लायी …

आग बिट्टू और बंटू के लिए कापी  लानी थी …

उनके पेन खत्म हो गए थे …

पेन लेकर आए …

और भी उनके सकूल के कुछ सामान थे ..

उसी में पैसे खत्म हो गए…

साग  के पैसे ना बचे  तो सोचा चटनी ही बांट देती हूं..

और हाथ की रोटी बना दी…

बच्चों ने भी बड़े मन से खा ली है..

तुम्हें पसंद ना आई का…??

ऐसी बात ना है …

पर कल से साग बनाना…

भले ही बिट्टू और बंटू के लिए बना देना…

अच्छा यह सब छोड़ो..

ये  बताओ आज तुम अबेर से कैसे आये जी..??

बंटू के सामने मत कहना…

वह बंटू ने कहा था ना पापा साइकिल ला दो ,तो बिट्टू को बैठ कर ले जाया करूंगा…

दोनों पैदल जा – जाकर बहुत थक जाते हैं…

कैसे पसीने से भीग जाते हैं …

तो बस अब आधे घंटे बढ़कर काम करने लगा हूं…

जाने है, हर दिन 50 रूपये  ज्यादा मिलेगा…

अगले महीने तक  साइकिल आ जाएगी…

चेहरे पर आए पसीने और संतोष के भाव  देखकर पत्नी रमा पति राम प्रकाश को देखती  ही रह गई …

वह पास  आई…

अपने साड़ी  के  पल्लू से ही पसीना पोंछने लगी…

बीजने से बयार करने लग गई मां…

यह सब मैं देख रहा था…

समझ रहा था…

बीच-बीच में आंख चुरा लेता था, जब वह मेरी और निहारते  थे…

अब आज मेरे घर में दो -दो ऐसी हैं ..

चार पहिया गाड़ी है ..

दो ,दो पहिया वाहन है …

आलीशान घर है…

लेकिन मां पिताजी नहीं है…

जिन्हें मैं ये एशो  आराम दे सकूं…

आज अगर मां होती तो शायद उन्हें बीजना  ना करना पड़ता…

शायद पिताजी के चेहरे पर पसीना ना आता ..

और पिताजी को ओवरटाइम ना करना पड़ता…

इसलिए दिल खोलकर खर्च नहीं करता अभी भी..

क्योंकि मेरे पिताजी ने बहुत तंगी देखी हैं…

पूरे जीवन मन  में यही कशक रहेगी कि मां पिताजी को एक आरामदायक ज़िन्दगी ना दे पाया ….

जिनके मां पापा अभी उनके साथ हैं,

समय रहते उनकी कदर कर लीजिए…

जो समय वह ना देख पाए ,कोशिश कीजिए कि आप उन्हें दिखाएं …

कुछ नहीं रखा है जीवन में …

यहां का रखा यही रह जाना है …

क्या पैसों के लिए एक दूसरे को मार काट रहे हो ..

बस पैसा उतना ही चाहिए ..कि लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला सके ..और दो वक्त की रोटी खा सके ..

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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