देखो अंकुर यह तो कोई बात नहीं हुई आप अस्पताल में चुपचाप बैठे रहे। औपचारिकता के तौर पर ठीक हो? पापा कहकर दोबारा कोई बात भी नहीं की। मम्मी भी मुझसे यही पूछ रही थी कि दामाद जी को क्या हुआ है उनका मूड कुछ सही नहीं लग रहा है।
वह तो मैंने मम्मी से ये कहकर बात टाल दी कि आज उनकी तबीयत ठीक नहीं है वो तो केवल पापा को देखने की वजह से यहां पर आए है। आखिर इस तरह कौन व्यवहार करता है एक बीमार आदमी से , अरे लोग तो किसी गैर से भी हाल-चाल पूछ लेते हैं और फिर वो तो मेरे पापा हैं।
सुहानी अपने पति से कहे जा रही थी जो चुपचाप आते ही बेड पर निढाल सा होकर लेट गया था। पिछले तीन दिनों से सुहानी के पापा की तबीयत खराब थी, शुगर अप डाउन हो रही थी और बीपी भी हाई था जिसकी वजह से डॉक्टर को उन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ा था।
पिछले एक महीने से काफी तनाव में चल रहे थे सुहानी के पापा, सुहानी के पापा और चाचा का कपड़े का संयुक्त व्यापार था लेकिन उनका छोटा भाई अब अपने बेटे के साथअपना अलग बिजनेस करना चाहता था। सुहानी के पापा को डर था कि वह अकेले बिजनेस नहीं कर पायेंगे। उनका बेटा भी विदेश में सेटल हो चुका है।
घर पर खाली वह बैठना नहीं चाहते थे। इसी वजह से वह बीमार चल रहे थे जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। इसीलिए सुहानी अपने पति पर गुस्सा हो रही थी और कह रही थी “हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नहीं होती।” उनका बेटा भी उनके पास नहीं है
आपको तो उन्हें संभालना चाहिए था । आपने तो दो बोल सहानुभूति के भी नहीं कहे उनसे। सुहानी चुप नहीं हो रही थी तब अंकुर उस पर फूट ही पड़ा। आज तो तुम्हें अपने मां-बाप के दर्द दिखाई दे रहे हैं।
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मेरे पापा की तो बाईपास सर्जरी हुई थी तब क्यों तुम्हें यह सब नहीं दिखाई दिया क्या उन्हें सहानुभूति की जरूरत नहीं थी? मुझे तो उनके इलाज के लिए पैसे भी कंपनी से मिले थे वह तो अच्छा हुआ कंपनी ने मुझे एक महीने के लिए वर्क फ्रॉम होम दे दिया था जिसकी वजह से मैं पापा का
थोड़ा ख्याल तो रख पाया था। अरे मैंने तो तुमसे सिर्फ यही चाहा था कि इस उम्र में तुम उनसे प्यार और सहानुभूति के साथ व्यवहार करो।बात बात में तुम उन्हें मत ताना दिया करो कि हम तुम्हारे ऊपर पैसे खर्च कर रहे हैं तुम्हारा छोटा बेटा तो बिल्कुल निठल्ला है।
उसकी छोटी सी नौकरी है आखिर मेरा भाई क्या खर्च कर सकता था । अभी-अभी तो उसकी नौकरी लगी है। तुम तो उनसे प्यार भरे दो शब्द भी नहीं बोली थी काम भी इस तरह करती थी जैसे उन पर एहसान कर रही हो, उस वक्त केवल खून का घूंट पीकर रह जाता था
मैं क्योंकि ज्यादा तनाव लेने पर उनकी तबीयत बिगड़ भी सकती थी।घर के हर काम के लिए तो मेड लगा दी थी फिर भी रात दिन मुझको सुनाती रहती थी कि तुम्हारे पापा की वजह से मैं दो घड़ी चैन से भी नहीं बैठ पाती हूं। अरे मेरी तो माँ भी नहीं थी और ना ही कोई बहन है मेरी, तुम भी तो बेटी बनकर उनका ध्यान रख सकती थी।मैं तो उनका बेटा था मुझे तो उनकी सेवा करनी ही थी।
ईश्वर की कृपा से आज मेरे पापा बिल्कुल ठीक है अगर उन्हें कुछ हो जाता मैं तुम्हारे साथ-साथ खुद को भी जिंदगी भर माफ नहीं कर पाता। क्या मुझे नहीं पता है कि इस उम्र में स्नेह और प्यार की सबसे ज्यादा जरूरत होती है अरे बीमारी तो किसी की भी हो अगर
हम मन से और प्यार से देखभाल करेंगे तो उसमें पॉजिटिव एनर्जी खुद ही आ जाएगी और वह चाहेगा ठीक होना खुद से क्योंकि उसे लगेगा हां उसकी भी किसी को जरूरत है? और फिर बच्चे और बूढ़े तो एक जैसे ही होते हैं। इतना सब कुछ
सुनकर सुहानी अपने पति से आंख मिलाने की हिम्मत भी नहीं कर पाई। क्योंकि वह जानती थी उसका पति हर बात सही बोल रहा है? मुझे माफ कर दो अंकुर अब और शर्मिंदा मत करो। मैं अब पापा का भी ध्यान अपने पापा जैसा ही रखूंगी। तुमको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी। देखो सुहानी मेरा इरादा।
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तुम्हें दुखी करने का बिल्कुल नहीं था लेकिन तुम्हें आईना दिखाना भी जरूरी था, तुम दो-चार दिन के लिए अपने माता-पिता के पास जा सकती हो यहां पर मैं सब मैनेज कर लूंगा। मैं भी एक दो बार चक्कर जरूर लगा दूंगा पापा के पास। तुम किसी बात की चिंता मत करो। यहां पर उनका भी हमारे सिवा दूसरा है कौन ?उनका ख्याल हम नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा मां बाप तुम्हारे हो या मेरे, हम दोनों की जिम्मेदारी हैं? आज सुहानी खुद को अपने पति के सामने बहुत छोटा महसूस कर रही थी।
सही ही कहा है एक बीमार आदमी को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी स्नेह और प्रेम की जरूरत होती है जिससे वो दुगनी तेजी से ठीक हो जाता है। स्नेह भरा व्यवहार जादू की झप्पी जैसा काम करता है किसी भी बीमारी में।
पूजा शर्मा
स्वरचित।