मौली बहू चाय बन गई हो तो जरा लाकर दे दें, मनीषा जी ने बगीचे में कुर्सी पर बैठते हुए आवाज लगाई, और सुबह के खूबसूरत नजारे का जायजा लेने लगी और अपने पति राजेश जी से बोली, देखो ये चिड़िया चहकती हुई कितनी अच्छी लगती है, कभी इस डाल तो कभी उस डाल और ये फूल भी मुस्करा रहे हैं, यहां आकर बैठो, ये हरियाली और प्रकृति के नजारे देखकर मन खुश हो जाता है।
फिर थोड़ी देर बाद उनकी त्योरियां चढ़ गईं, ये मौली अभी तक भी चाय नहीं लाई, पीछे से ट्रे में चाय लाते हुए मौली दिखती है तो उनका मुंह बन जाता है, कितनी देर लगा दी??
वो मम्मी जी, रिंकी उठ गई थी और रोने लगी, उसे चुप कराके आई हूं।
ठीक है, अब जल्दी से खाने की तैयारी कर दो, फिर कहेगी ऑफिस के लिए देर हो गई। मौली उल्टे पांव दौड़ी, सब्जियां कल रात को नहीं काट पाई थी क्योंकि देर हो गई थी और मम्मी जी को कह नहीं सकती थी क्योंकि उन्होंने शादी होते ही रसोई मौली को सौंप दी, अब तुम जानों और तुम्हारी रसोई जानें, मुझे आराम करना है, और उस दिन से आज के दिन उन्होंने रसोई के एक काम को हाथ नहीं लगाया।
मौली ने घड़ी की ओर देखा जो बस निरंतर चले जा रही थी और भिंडी छोड़कर आलू की सब्जी बना दी, सबके टिफिन पैक करके वो बच्चों को जगाने चली गई।
रिंकी छोटी थी उसे उठते ही मौली की गोदी चाहिए थी वहीं राहुल रिंकी से पांच साल बढ़ा था, वो उठते ही अपने सारे काम खुद ही निपटा लेता था।
मौली ने रिंकी को तैयार किया, नाश्ता करवाया तब तक पति नमन तसल्ली से अखबार पढ़ रहे थे।
काश!! बच्चों को नमन छोड़ आते। ये सोचकर मन मसोस कर रह गई और दोनों बच्चों को छोड़ने बस स्टॉप तक गई।
ये मौली का अपना फैसला था कि वो नौकरी करेगी और सदैव आत्मनिर्भर बनकर रहेगी। नमन की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, जब सास-ससुर ने कहा था कि तुम नौकरी अपनी मर्जी से करोगी, हमारे लिए बेटे की ही कमाई काफी है, हमें घर संभालने वाली चाहिए पैसे कमाने वाली नहीं चाहिए।
नमन को मौली बहुत पसंद थी, इसलिए उसने शादी पर जोर दिया और मौली बहू बनकर आ गई।
मौली, मम्मी ने आज तक घर और रसोई संभाली है अब तुम्हें भी आगे यही सब करना है, और अपनी नौकरी छोड़ दो, वैसे भी ये छोटी सी नौकरी में क्या पड़ा है??
मौली का मन भी कशमकश में था, उसने अपनी दूर की चचेरी बहन से बात की, उसने यही समझाया कि, मौली शुरू के कुछ साल मुश्किल होंगे, नया घर, नया माहौल और समय की कमी।
तुझे दस -बारह साल तपस्या करनी होगी, जब बच्चे बड़े हो जायेंगे, उनके खर्चें भी बढ़ जायेंगे और वो घर से भी चले जायेंगे फिर अकेली तुम क्या करोगी?? घर का खालीपन और अकेलापन ये नौकरी भर देंगी, फिर समय का कुछ पता नहीं है, अच्छी भली नौकरी छोड़ने में कोई समझदारी नहीं है। अपने पैरों पर खड़ा होना गर्व की बात है, आप किसी पर निर्भर नहीं रहते।
बच्चे बड़े होकर बाहर निकल जायेंगे तब ये खाली समय तुझे बहुत परेशान करेगा।
अपनी दीदी की बात मौली को जंच गई थी और उसने सोच लिया था कि अब वो हर हाल में नौकरी करेगी।
अपने लिए करेगी, अपनी आत्मनिर्भरता के लिए करेगी।
उसने घरवालों को बता दिया, ठीक है तुम्हें जो करना है वो करो पर घर के काम और जिम्मेदारी भी पूरी करनी है, हर काम समय पर होना चाहिए, ये तुम्हारी मर्जी है रात को देर तक जागो या सुबह जल्दी उठकर हर काम निपटाओं, सासू मां ने भी फैसला सुना दिया। तब से मौली की जिंदगी में भागादौड़ी ही चल रही है।घर से ऑफिस और ऑफिस से घर।
मौली बस स्टॉप से घर आई तो सासू मां ने हल्ला मचा रखा था, मैंने तुझे भरवां भिंडी बनाने को कहा था और तूने आलू बना दिया।
हां, मम्मी जी ऑफिस के लिए देरी हो रही थी तो जल्दी में यही बना दिया। मौली ने घर के अंदर घुसते हुए कहा।
आग लगे तेरी नौकरी को?? ढंग का खाना भी नहीं बना सकती है, मेरे बेटे की कमाई ही काफी है, तू नौकरी करके हम पर कोई अहसान नहीं कर रही है, गृहस्थी संभाल वो बड़ी चीज है, तेरी नौकरी का क्या !!!
मौली ने सब सुना और कोई जवाब नहीं दिया, अपना काम निपटाकर वो ऑफिस चली गई, आज काम ज्यादा था, काफी थकान आ रही थी, घर पहुंचते ही देखा, टेबल पर सब्जियां रखी थी।
मौली, आज पालक-पनीर बना लेना, बड़ा मन कर रहा है। पालक भी साफ नहीं था, मौली ने पहले पालक साफ किया फिर खुद के और सास-ससुर के लिए चाय चढ़ा दी, फिर रात के खाने की तैयारी में लग गई।
नमन और सास-ससुर खाने की टेबल पर बात कर रहे थे, बुआ जी की बेटी की शादी है और मायरा लेकर जाना है, आखरी शादी है तो बुआ जी सोने के कंगन की जिद पकड़ी हुई है, कह रही है घर में तीन कमाने वाले हैं, भाईसाहब इतना तो कर सकते हैं, मेरे ससुराल में मेरी नाक मत कटवाना।
पापा आपकी तो पेंशन भी कम आती है और मेरी सैलेरी भी बहुत ज्यादा नहीं है, दो साल से प्रमोशन अटका हुआ है, एकदम से इतना कैसे कर पाएंगे? इस महीने से बच्चों की फीस भी बढ़ गई है, राशन, बिजली, घर की ईएमआई, मेडिकल खर्चे, सब कुछ होता है, अंगूठी होती तो कर ही देते पर सोने के कंगन तो बहुत महंगे पड़ेंगे। बुआ जी को समझना चाहिए, नमन ने कहा।
आखरी काम है कर देते हैं, फिर मौली भी तो कमाती है, घर-परिवार पर ही तो खर्च करना है, अब मुझे नाक नहीं कटवानी है, तू बहू से बात कर।
पापा, उसको तो जरा सी सैलेरी मिलती है वो क्या दे पायेगी।
बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है, उसने भी तो इकट्ठा किया
हुआ होगा, तू बोल दे देगी, मौली की सास ने जोर दिया।
मौली इधर आना नमन ने आवाज लगाई, बुआ के मायरा भरना है, तुम अपने अकाउंट से कुछ पैसा दे दो, सोने के कंगन देने है, नमन ने आदेश सुनाते हुए कहा।
मम्मी जी, नमन अपनी कमाई से सोने के कंगन भी नहीं ले सकते क्या?? आखिर घर तो आपके बेटे की कमाई से चल रहा है,बेटे की कमाई काफी नहीं है क्या??
ये शब्द सबके लिए अनपेक्षित थे, मौली ऐसे भी जवाब दे सकती है, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
आजतक मैंनै सब अपने लिए किया, ऐसा आप लोगों का मानना है जबकि इस घर परिवार की छोटी-छोटी जरूरतें मैं अपनी सैलेरी से पूरी करती रही हूं, छोटे खर्चे दिखते नहीं है पर रोज बहुत हो जाते हैं।
नमन तुम्हे याद है तुमने कभी मुझे सब्जी लाने के पैसे दिएं हो?? तुम्हें याद है कभी तुमने मेरी स्कूटी में पेट्रोल भरवाया हो, तुमने कभी मुझे शॉपिंग करवाई हो,कभी पार्लर के लिए पैसे दिएं हो, ये सब ख़र्च मेरी सैलेरी से ही निकलते हैं। उसके बावजूद भी मैं हर महीने पैसे बचा ही लेती हूं,
मेरे पास अभी पूरे कंगन के जितने तो नहीं होंगे पर हां मैं मम्मी जी और पापा जी की नाक बुआ जी के ससुराल में नहीं कटने दूंगी, मौली ने तुरंत एक चैक काटकर दे दिया, इतना पैसा देखकर नमन की आंखें फट गई और सास-ससुर अपने अब तक के लिए किये गये बर्ताव के लिए शर्मिन्दा हो रहे थे।
नमन ने उसमें अपनी ओर से पैसे मिलाएं और बुआ जी के लिए सोने के कंगन आ गये।
मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी इस नौकरी की वजह से मुझे बहुत सहारा मिला है, नमन ने कहा।
बहू, मैंने तुझे इतनी जली-कटी सुनाई, इतना परेशान किया, तूने फिर भी इस घर के मान और सम्मान के लिए अपनी सारी बचत दे दी।
मैं भी भुल गई थी, बहू के कोई दस हाथ थोड़ी होते हैं, जो वो रसोई का भी कर लें, नौकरी भी करलें, बच्चों और परिवार को भी संभाल लें। सासू मां ने भी कहा।
अगले दिन मौली सुबह उठी तो चाय तैयार थी और सब्जियां कटी हुई थी, उसने भी बाहर बगीचे में बैठकर सासू मां के साथ चाय पी।
मौली, जिस तरह ये चिड़िया फुदकती खुश अच्छी लगती है, उसी तरह ससुराल के आंगन में घर की बहू भी खुश-खुश ही अच्छी लगती है।
सासू मां के मुंह से ये सुनकर मौली को अच्छा लगा, तब तक नमन बस स्टॉप तक बच्चों को छोड़कर आ गये थे।
आज मौली के जीवन में भागादौड़ी नहीं थी, सबने मिलकर मदद की और वो समय पर ऑफिस पहुंच गई, अब सबको पता चल गया था कि वो नौकरी सिर्फ अपने लिए नहीं इस परिवार के लिए भी कर रही है।
पाठकों,आजकल पति और पत्नी दोनों ही मिलकर घर चलाते हैं । पत्नी ऑफिस के साथ पूरा घर संभालती है, ये इतना आसान भी नहीं है। पत्नी की कम सैलेरी को भी कम नहीं आंकना चाहिए।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल ✍️
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