हक़ – संध्या सिन्हा : Moral Stories in Hindi

” नीतू  तुम  अब छोटी बच्ची नहीं एक बेटी की माँ हो, थोड़ा बड़प्पन दिखाओ। क्या हर समय अपनी  ही बड़ी बहन से तुलना करती रहती हो? “

“पापा मैं उसे अपनी बड़ी बहन नहीं मानती… आप और मम्मी भी उसे अधिक प्यार करते हो। इसीलिए उसकी शादी बैंक मैनेजर से की और मेरी एक फ़क़ीर से।”हीरे का हार फेंकते हुवे बोली।

“वो बड़ी है तो  हैं… ईश्वर ने उसे तुम्हारी बड़ी बहन बना कर भेजा हैं, तुम्हारे  मानने या मानने से कुछ नहीं होता।यूं ही तुलना करती रहोगी तो अपना ही घर बर्बाद कर लोगी,” सरला जी  अपनी छोटी बेटी  नीतू को समझाते हुए बोलीं। पर  नीतू तो समझना ही नहीं चाह रही थी।

“क्यों तुलना ना करूं, मम्मी -पापा???मुझे तो आप लोगों ने हमेशा कम ही माना, क्योंकि मेरे पति की कमाई कम है। अब जीजा जी ज्यादा कमा रहे हैं, तो उनको और दीदी को ज्यादा अपनापन मिल रहा है। अरे,  माँ-बाप के लिए  तो  सारे बच्चे एक जैसी होना चाहिए। पर मैं तो आपको कभी फूटी आंख नहीं सुहाती,” नीतू तुनकते हुए बोली।

“कैसी बात कर रही हो नीतू  तुम?? हमने और पापा ने

सदैव दोनों बेटियों को बराबर प्यार-दुलार दिया हैं। तुम्हारी दीदी(निशा ) भी नौकरी करती है तो … नवीन और निशा की लाइफ स्टाइल अलग हैं।”

“हां हां, सब समझ में आ रहा है मुझे। कहना क्या चाहती हैं आप कि अब मैं भी नौकरी करने लग जाऊं। अरे, आप लोगों ने मुझे इतना पढ़ाया होता तो मैं भी नौकरी कर रही होती। पर नहीं, उन्हें तो मेरी जिंदगी बर्बाद करनी थी, जो ऐसे घर में मेरी शादी कर दी, जहां बड़ी बहू को तो घर की नौकरानी समझा जाता है और छोटी बहू को सिर आंखों पर बिठाया जाता है। पैसा देखकर  बहूओं के साथ व्यवहार होता है।”

जब से  निशा ने नीतू से अपना हीरे का हार( जो नीतू अपने देवर की शादी में पहनने के लिए माँगा था , और चार महीने होने को आए , अभी तक वापस नहीं किया। ) कल निशा को   नवीन के एक मित्र की बहन की शादी में जाना है तो.. उसने आज माँग लिया।  बस नीतू को अपने मन की भड़ास निकालने का मौक़ा मिल गया। वैसे नीतू हर रोज किसी न किसी बात को लेकर सरला जी से लड़ जाती थी कि… दीदी को अधिक मानती हैं  और हमें कम।

करवाचौथ की साड़ी देखने के बाद  नीतू का मानना था कि  सरला जी ने  निशा  की साड़ी  महंगी  हैं, जबकि उसके लिए सस्ती सी साड़ियां  लायी थीं। ऊपर से आज दीदी निशा ने अपना हार माँग लिया, वो तो अपने ससुराल वालों से कह दी थी कि.. मेरी निशा दीदी ने ये हार हमें दे दिया हैं।

सरला जी के परिवार में उनकी दो बेटियाँ और पति ही हैं। बड़ी बेटी निशा  और उसके पति दोनों ही एक बैंक में  उच्च अधिकारी हैं।उनके  पाँच साल का एक बेटा हैं , जो स्कूल के बाद सरला जी के पास ही रहता हैं.. बैंक से जो पहले लौटता हैं..  वो उसे पिकअप कर लेता हैं। एक ही शहर में दोनों बेटियाँ और उनका मायका होने से दोनों ही परिवारों को आराम हैं।

क्रैश में नहीं छोड़ना पड़ता अपने पाँच वर्षीय बेटे को। निशा भी बैंक से लौटते हुवे अपने मम्मी-पापा की दैनिक चीज या कोई दवा वग़ैरह पूछ कर ले आती हैं। छोटी बेटी नीतू की जॉइंट-फ़ैमिली हैं, सास-ससुर और तीन देवर और  एक देवरानी।पास ही में उनका पुश्तैनी गाँव और खेती-वाडी थी।नीतू का पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हैं।

निशा और नवीन … दोनों पति-पत्नी मिलकर अच्छा कमाते थे और अपने अनुसार खर्च करते थे। नवीन पाँच भाई -बहन हैं। सब अलग-अलग शहरों में रहते है, पिता हैं नहीं, माँ छोटे बेटे के साथ रहती हैं। कभी-कभार दो-चार महीने के लिए आती हैं।

नीतू के पति ने भी कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन नीतू कुछ समझाना ही नहीं चाहती।

हर बात में अपने दीदी -जीजाजी को लेकर लड़ती और ताना मारती… जब खर्चा उठाने की औकात नहीं थी तो शादी ही क्यों की थी मुझसे। जिंदगी भर क्या फकीरों की तरह ही रहूंगी मैं अपनी इच्छाओं को मारकर,” उधर सरला जी ने जब इसके बारे में उसे समझाना चाहा तो वह उन्हीं  से भी लड़ पड़ी।

“सब जानती हूं मैं। यह सब आपका ही किया धरा है। आप ही चाहती हैं कि मैं अपने पति से झगड़ा करूं। इसीलिए आप दोनों  बेटियों में भेदभाव करती हैं। तभी तो दीदी कु शादी बैंक मैनेजर से और मेरी एक मामूली क्लर्क से।

इतनी जलन की भावना देखकर  सरला जी हैरान रह गईं। आए दिन कोई न कोई बात को लेकर वह लड़ झगड़  पड़ती उनसे। उसके बेटे को भी आप और पापा अधिक प्यार करते है मेरी दो वर्षीय बेटी को नहीं… मेरी बेटी है ना इसीलिए…

आख़िर आज सरला जी भी आपे से बाहर हो गई, समझा-समझा  कर थक गई थी वो, नीतू तो जैसे समझना ही नहीं चाहती थी।

“ऐसा क्या गलत हुआ है तेरे साथ? बताएगी मुझे। जरा मैं भी तो सुनूं,” सरला जी बोली।

आख़िर नीतू  ने दिल की बात कह ही दी … इतना पैसा है तब भी एक हार नहीं दे सकती अपनी छोटी बहन को…  अपने पैसे और नौकरी का घमंड हैं ।

“इतनी जलन की भावना? वह भी अपनी ही  बड़ी बहन से। ये दोनों जो कर रहे हैं अपनी मेहनत के दम पर कर रहे हैं। हमसे या तुमसे माँग नहीं ना रहे हैं.. तू तो हर समय कुछ भी नया देखती निशा से माँग लेती है और वो ख़ुशी-ख़ुशी दे देती हैं।रही बात इस  हीरे के हार की .. तो ये हार निशा के पति ने उसकी शादी की पहली वर्षगाँठ पर दिया था, तो वो तुम्हें क्यों दे देगी??? वापस तो माँगेगी ही ना..और यह हार  तुमने पहनने के लिए ही माँगा था।”

“और बेटा, किसी की बेहतर स्थिति को देखकर अपने आप को कमतर क्यों समझती हो? ये दोनों जॉब करते हैं, तो अपने अनुसार खर्च कर लेते हैं। अगर तुम्हें  रमेश की कमाई कम लगती है, तो तुम भी थोड़ी मेहनत करो। भला तुम्हें किसने रोका है,” नीतू के पापा ने कहा।

“वाह पापा! आपने मुझे इस लायक बनाया भी है?  बारहवीं के बाद में मुझे पढ़ने ही कहां दिया। घर के काम सिखाकर शादी करवा दी आपने अपने  दोस्त के निकम्मे बेटे से। मुझे मौका दिया होता तो मैं भी शायद कुछ होती,” नीतू अपने पापा से बहस करते हुए बोली।

“चुप कर। तुझे हमने रोका था क्या पढ़ने से? तुझे तो खुद पढ़ने का शौक नहीं था। जैसे-तैसे राम-राम करते तो तेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई थी। तुझे तो बस टीवी दिखवा लो या फिर अपनी सहेलियों के साथ घूमवा लो। जब तुमने खुद मेहनत नहीं की, तो अपने माता-पिता पर इल्जाम लगाने का भी  # “हक “नहीं है।

कुछ बेहतर पाने के लिए खुद को भी मेहनत करनी पड़ती है। माता-पिता बच्चों का भाग्य नहीं लिख सकते। उस वक्त तुझे कितना समझाते थे, पर तुझे समझ में नहीं आता था। तो फिर तेरी शादी करने के अलावा हम करते ही क्या?” नीतू की मम्मी ने उसे डांटते हुए कहा तो उसने अपनी नजरें नीचे कर लीं। पर उसकी मम्मी ने अपना बोलना बदस्तूर जारी रखा…

“और अभी भी क्या कर रही है? जलन में अपना ही घर बर्बाद कर रही है। जितना फ्री टाइम बैठकर दूसरों से जलन कर रही है ना, उसमें कुछ नया कर। अपनी जिंदगी को बेहतर बना। किसने मना किया है। और खबरदार! आइंदा कभी कहा तो कि फकीरों के घर में ब्याह दिया। खुद में कोई हुनर नहीं है और ख्वाब आसमानों के देख रही हो।”

और हाँ… यही हाल रहा तेरा तो… ससुराल में भी तू सबके चूल्हे अलग करवा देगी। हम तो वहाँ अपना मुँह भू बाँ खोल पायेंगे… कितने सज्जन है राजेश भाईसाहब… कि… अपने बेटे रमेश के लिए तुम्हारा हाथ माँगा।

अपनी मम्मी की लताड़ सुनकर नीतू  चुप हो गई। 

समय रहते कुछ बच्चे मेहनत करना नहीं चाहते और बाद में अपने ही पैरेंट्स को दोष देते हैं… ऐसे बच्चों को कोई # हक़ नहीं है अपने माता-पिता को कुछ भी कहने का.. क्योकि..”माता-पिता जन्म के साथी है ना कि… कर्म के।”

संध्या सिन्हा

2 thoughts on “हक़ – संध्या सिन्हा : Moral Stories in Hindi”

  1. आपने वर्तमान व्यवहार या परिवार के व्यक्ति मुख्य रूप से महिलाएँ जिनके पास केवल नकारात्मक विचार और अहंकार है, के बारे में लोगों को जागरूक करने की पूरी कोशिश की है, लिखते रहें और शेयर करें, thankyou!

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!