आज की भारतीय न्याय प्रणाली में बेटा-बेटी दोनों को पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी है। इसमें किसी को भी डरने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन एक बात जरुर समझने की है कि जब तक पिता जीवित रहेंगे तब तक उनकी जायदाद में कोई भी हिस्सा नहीं ले सकता
किन्तु जैसे ही उनकी मौत हो जायेगी वैसे ही बेटे बेटियों का हक़ उनकी संपत्ति में हो जायेगा। परन्तु यह स्मरण रहे कि यदि पत्नी जीवित हैं तो एक हिस्सा अलग से उनके लिए भी होगा।
बेटियों के हक़ को लेकर बहुत दिनों तक विवाद चलता रहा है और उनकी उपेक्षा भी होती रही है लेकिन आज की तारीख में बहुत कुछ बदलाव आया है। आज बेटे-बेटियों में कोई लैंगिक भेद-भाव नहीं रह गया है। दोनों समान रूप से सब कुछ पाने के अधिकारी हैं। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है
और उनकी संपत्ति में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो गई तो उसे कोई भी व्यक्ति रोक नहीं सकता। अगर रोकने की कुचेष्टा भी करेगा तो न्याय उसके साथ खड़ा हो जायेगा और वह मुकदमा जीत जायगी चूंकि उसका भी अब हक़ वैधानिक रूप में हो गया है।
हां, कुछ विशेष परिस्थिति में बेटी या बहू को संपत्ति की अधिकारिणी नहीं घोषित किया गया है। इससे संबंधित मैं एक छोटी – सी कहानी आपको सुनाऊंगा।
रमेशचन्द्र ने अपनी बेटी प्रतिभा की शादी एक सुखी संपन्न परिवार में कर दी। लड़का अनुभव शिक्षा विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्यरत था। उसके पिता जी सरकारी अमीन के पद से अवकाश प्राप्त थे। अनुभव को एक बड़ी बहन सीमा थी जो बालबच्चेदार थी। कुल मिलाकर यह एक खुशहाल परिवार था। अनुभव की मां एक कुशल गृहिणी थी।
प्रतिभा के विवाह के चार साल हो गये थे। अब तक कोई संतान नहीं हुई थी। एक बार की घटना है कि अनुभव अपनी मोटर साइकिल से विद्यालयों के निरीक्षण के लिए गये हुए थे। लौटने में थोड़ा सा विलंब हुआ। अंधेरा हो गया था। बादमाशों ने उनको पकड़ लिया। मोटरसाइकिल और उनके पास जितने रुपये थे सब कुछ ले लिया।
जब तक ये अपना विरोध प्रकट करते तब तक उन्होंने इनकी जम कर पिटाई कर दी। बुरी तरह घायल हो गये। किसी तरह से आस पास के लोगों ने अस्पताल पहुंचाया जहां चिकित्सकों ने दिल्ली एम्स के लिए रेफर कर दिया। तब तक रमेशचन्द्र जी इस घटनाक्रम की जानकारी मिल चुकी थी। उनके साथ प्रतिभा तो थी ही उसके ससुर विनोद जी भी थे। ये तीनों दिल्ली एम्स में पहुंच गये।सब कुछ देखकर ये लोग अत्यंत ही चिंतित हुए।
डॉ ने कहा कि सिर पर गंभीर चोट लगी है। इसी से ये बेहोशी की हालत में हैं।
इनका अविलंब आपरेशन करना होगा। शरीर से खून बहुत निकल गया है।खून
चढ़ाना होगा। जांच में पता चला कि अनुभव का ब्लड ग्रुप ओ + है। इस ग्रुप का इनमें से कोई भी व्यक्ति नहीं था। खैर ब्लड बैंक से व्यवस्था बन गई। रक्त चढ़ाने के आठ घंटे बाद अनुभव को होश आया। सबको पहचानने लगा। अभी बहुत बातचीत करने की मनाही थी।
धीरे-धीरे कुछ सुधार होने लगा। सबको ऐसा महसूस हुआ कि अब दो दिनों में ये ठीक हो जायेंगे। सबसे बातें होने लगी। प्रतिभा से कहा ” मेरा दुर्भाग्य ही था कि उस दिन ऐसी घटना घट गई। अब मैं तुम्हारे लिए ठीक हो जाऊंगा। तुम चिंतित मत हो।”
ऐसा लगा कि अब दो तीन दिनों में ये बिलकुल सही हो जायेंगे। चिकित्सक ने भी बताया कि “अब परेशानी की कोई बात नहीं है। खतरा टल गया है और इनको परसों आप ले जा सकेंगे । “
भीतर से अनुभव भी अच्छा महसूस करने लगा था और प्रतिभा, रमेशचन्द्र और विनोद जी भी बार बार भगवान की शुक्रिया अदा कर रहे थे। विधना के विधान को कौन जाने केवल विधाता ही जानते हैं।
कल सुबह तक अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी डॉ साहब ने कहा था। संयोग की बात प्रतिभा से रात के नौ बजे के करीब मुस्कुराते हुए बातें करते करते यकायक उनकी जुबान लड़खड़ाने लगी और बिना किसी देरी के एक तरफ गर्दन लुढ़की तो फिर लुढ़की ही रह गयी। अब रोने धोने के सिवाय दूसरा कुछ भी तो नहीं।
उसी रात एम्बुलेंस सेवा का इंतजाम किया गया और गाजियाबाद घर पर लाया गया। श्राद्ध संस्कार संपन्न हुआ। प्रतिभा का जीवन कष्टमय हो गया। घर में अकेली।सास वृद्ध।पुत्र वियोग में दुःखी। इधर प्रतिभा का तो पूछना ही क्या? इस पर तो विपदा का पहाड़ ही टूट पड़ा था। दिन-रात आंखें बरसतीं रहती।
कोई बाल-बच्चा भी तो नहीं जिसे सहारा बनाती। अकेले उसका मन बिलकुल उचट गया था। रमेशचन्द्र ने विनोद जी कहा कि –” कुछ दिनों के लिए मैं इसको ले जाना चाहूंगा। शायद मां के साथ रहने से तकलीफ़ थोड़ी कम हो जाय। “
विनोद जी ने भी स्वीकृति प्रदान कर दी।
प्रतिभा मायके चली गई और बहुत दिनों तक वहीं रह गई।
अब प्रतिभा के हक़ का सवाल खड़ा हुआ। चूंकि ससुराल छोड़कर मायके में रहने लगी है। तो कानूनन ससुराल में यह कमजोर पड़ती जा रही है। वहां हिस्सा लेने के लिए रहना होगा।सास ससुर की सेवा करनी होगी। अन्यथा बेदखल हो जायेगी और कभी-कभी आने जाने से अधिकार जमाना आसान रहेगा।
इसी क्रम में यह भी उल्लेखनीय है कि रमेशचन्द्र जी को उनके मित्रों ने सलाह दी कि अभी प्रतिभा तो कम उम्र की है क्यों न इसकी दूसरी शादी कर ली जाय। रमेशचन्द्र जी को यह बात पसंद आई। ऐसा ही आने वाले दिनों में हुआ।
अब जब प्रतिभा की शादी अन्यत्र कहीं हो गई तो अपने आप उसका दावा पहली ससुराल से समाप्त हो जायेगा और जहां उसकी दूसरी शादी हुई है अब वहां की बहू हो जायेगी। इसलिए यहां की संपत्ति में इसका हक़ बनेगा।
आज भारतीय कानून बेटी बहुओं के पक्ष में खुलकर सामने आया है। इनकी सुरक्षा की भरपूर व्यवस्था की गयी है। कोई भी व्यक्ति इनको संपत्ति से किसी भी हालत में बेदखल नहीं कर सकता। पिता की संपत्ति में या फिर ससुर की संपत्ति में इनका हर तरह से हक़ बनता है।
अयोध्याप्रसाद उपाध्याय,
आरा
मौलिक एवं अप्रकाशित।