हां….. मेरी मां ने यही सिखाया है – हेमलता गुप्ता: Moral stories in hindi

  हे भगवान… देखो तो, संध्या बाती कासमय हो गया, घर में कैसा अंधेरा हो रहा है, संध्या बहू कहां है, क्या कर रही है? घर में अंधेरा कैसे कर रखा है? हे भगवान.. सब काम मुझे ही  देखने होते हैं, थोड़ी देर बाहर रिश्तेदारी में क्या चली गई घर में तो अंधेरा करके रख दिया, अभी  उसकी खबर लेती हूं! यह देखो कैसे आराम से यहां सो रही है, शर्म नहीं आती,  शाम के समय घर में अंधेरा कर रखा है, ना दीपक बाती का सुरूर है, ना कोई खाने की तैयारी करी है, अब मैं घर का करूं कि बाहर का देखूं..

पता नहीं कैसी बहू से पाला पड़ गया! शर्म हया बिल्कुल है ही नहीं? पता नहीं क्या सीख कर आई है, इसकी मां नेकुछ सिखाया भी है कि नहीं? एक काम मजाल है जो ढंग से कर ले! अरे मम्मी जी.. वह दिन में सर भारी हो गया था, दवाई लेकर सोई थी तो उसके नशे से पता नहीं चला कब शाम हो गई, आप  बैठिए में फटाफट से खाना बनाकर लाती हूं, एक भगवान 7:00 बज गए, आज  तो सच में लेट हो गई, पापा जी और यह भी ऑफिस से आते ही होंगे! मम्मी जी… आप कहो तो फटाफट दाल चावल रोटी बना दूं!

हां हां खिला दे मरीज वाला खाना! वैसे भी तुझे तो कोई ढंग की सब्जी या ढंग का खाना बनाने में जोर आता है, तरस गए अच्छे-अच्छे खाना खाने के लिए, सोचती थी बहू आएगी,  यह काम करेगी वह करेगी, हमारी सेवा करेगी, यहां तो पहले सास को कर करके दो, अब महारानी ऐसी आई है, इसे भी हमें खिलाना पड़ता है, तेरी मां ने कुछ सिखाया  भी है कि नहीं, ससुराल में कैसे रहा जाता है, सास ससुर के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है! मम्मी जी… मेरे मायके को या मेरी मां को बीच में क्यों ले आती है?

आप जैसा कहती है वैसा ही तो करती हूं! अच्छा.. अब जवान चलाने लग गई है, चल जा, फटाफट खाने  की तैयारी कर, बहस  मत कर! हां… अगर लेट हो गई तो सासु मां बेटे को भड़का देगी और बेटा श्रवण कुमार आते ही सिर्फ मां की सुनेगा, मेरे ऊपर बरस पड़ेगा, संध्या काम करती जा रही थी और  साथमें आंखें आंखेंबरस रही थी,  8 महीने पहले शादी होकर इस घर में आई थी, कैसे जब ससुराल वाले उसे  देखने गए थे तबससुराल बालों को मां ने बताया था..

कि संध्या  पढ़ाई लिखाई कर रही थी, घर के कामों में ज्यादा होशियार नहीं है, अगर सीखने की कोशिश करेगी तो सब सीख जाएगी! तब तो सासु मां ने कैसे-कैसे कहा था.. अरे अरे.. आप चिंता मत कीजिए, संध्या हमारे घर में बहू नहीं बेटी बनकर जाएगी और देखना मैं इसको एक मां की तरह हर काम में होशियार कर दूंगी, तो उसने यही सोचा था कि उसके साथ ससुर उसे बेटी जैसे ही मानते हैं! कितनी खुश थी ऐसे ससुराल के बारे में सोच कर! शादी की अगली सुबह  जैसे ही सास ससुर  के पैर छूने लगी तभी सास ने कहा… क्यों री..तेरे घर में बहुएं खुले सर  घूमती है क्या.. यह देख पीछे से पूरी पीठ दिख रही है, अरे कम से कम ससुर के  सामने ही सर पर साड़ी रख लेती!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

गैरों में अपनों की परख – मुकेश पटेल

बस उसी समय संध्या समझ गई बहु को सब बेटी बनाने की बात करते हैं मानता कोई नहीं है, यह सब केवल दिखावा मात्र है, कितना भी कर लो बहू , बेटी नहीं बन सकती? एक दिन सास ने बहु संध्या से पीने के लिए पानी मांगा जब संध्या बहू ने पानी  दिया तब सास बोली.. हे भगवान..  सर्दी में ठंडा पानी  पियूंगी क्या.? तू तो मुझे किसी दिन बीमार करके ही छोड़ेगी, चल जा गर्म पानी लेकर आ, जब संध्या गर्म पानी लेकर आई तब…. मेरा मुंह  जलाएगी क्या? किसी को पानी तक पिलाना नहीं आता.?

तेरी मां ने यही सिखाया है क्या? हर छोटी-छोटी बात पर सास ऐसे ही भड़क जाती! अगले दो-चार दिन बाद संध्या जब  नहाने गई तो उसने देखा.. बाल्टी भर के कपड़े धोने के लिए रखे हुए हैं, पर वह नहीं समझी और नहा धोकर बाथरूम से जैसे ही बाहर आई सास का फिर प्रवचन चालू हो गया, हे भगवान… तुझे बाल्टी भर के कपड़े नहीं दिखे, इनको कौन धोएगा… तेरी मां.!  पर मां मुझे नहीं पता था इतने सारे कपड़े मुझे धोने हैं और वैसे भी  मैंने इतने सारे कपड़े कभी नहीं धोए! देखो तो महारानी को…

क्यों इतने कपड़े धो लेगी तो तेरे हाथों में छाले पड़ जाएंगे, तेरी मां ने तुझे यह भी नहीं बताया की ससुराल में जाकर सब के कपड़े बहू को धोने होते हैं, तब संध्या सोचने लगी, क्यों… मेरे  मायके  में ऐसा नहीं होता, वहां तो सब अपने अपने कपड़े खुद धोते हैं ! खैर संध्या जो भी काम करती.. चाहे वह खाना बनाना हो चाहे कुछ भी हो उसकी सास हर बात में में …तेरी मां ने यही सिखाया है क्या, तेरी मां ने यही सिखाया है क्या… करती रहती! अगर किसी दिन संध्या की तबीयत खराब होती तो सास इतनी जोर-जोर से बर्तन करती की संध्या समझ जाती, सास का दिमाग आज बहुत खराब हो गया है,

कहीं और ज्यादा ना सुनना पड़ जाए इसलिए वह बेचारी बीमारी में भी जाकर काम करती रहती!  एक दिन संध्या काफी देर तक कमरे से बाहर नहीं निकली, उसे बहुत तेज  बुखार था, जब सास ने आवाज दी तो संध्या के पति ने कहा …मां आज संध्या को बहुत तेज बुखार है, मैंने उसे दवाई दे दि है, वह आराम कर रही है! ऐसा करते हैं.. हल्की सी खिचड़ी बना लेते हैं जो संध्या भी खा लेगी और हम भी खा लेंगे! बेटा… अब तू भी पत्नी के तीमारदारी में लगा रहता है, मां बाप से तो कोई मतलब ही नहीं है, अब हम खिचड़ी खाएंगे?

ऐसा कर तू तो तेरी बीवी के पास जाकर बैठ, उसी की सेवा  कर, हम है ना नौकर यहां पर… तुम्हारे लिए! पर मां …संध्या को सच में बहुत तेज बुखार है! अरे बहुत देख ऐसे नाटक ,जब तेरे जैसा जोरू का गुलाम पति होगा तो पत्नी नाटक नहीं करेगी तो क्या करेगी ! बस आजकल की बहू को तो हर चीज हाथों में ले जाकर दो, तब तो खुश हैं! संध्या की सास संध्या को बहुत बुरा भला कहने लगी, यह देखकर निखिल घर से बाहर चला गया और उसने कुछ भी कहना बंद कर दिया! वह बेचारा पत्नी और मां के बीच में फसता जा रहा था! एक दिन संध्या की कुछ सहेलियां शादी के बाद की पार्टी लेने संध्या के घर आ गई, फिर संध्या ने उनकी खूब खातिरदारी करी ,काफी सारा घर में बनाया और काफी सामान बाजार से मंगवा लिया!

शाम को  जब सहेलियां चली गई तो सास कमरे में से बाहर आई और चिल्लाने लगी… यह घर को क्या होटल समझ रखा है, जब देखो जब कोई ना कोई तेरे यहां से उठ कर चला आता है, आज के बाद मना कर देना तेरी सहेलियों को, इतना सारा तो  खर्चा  कर दिया और घर का काम भी बढ़ा दिया!  तेरी मां ने तुझे कुछ नहीं सिखाया की ससुराल में मायके वालों का ज्यादा आना-जाना अच्छा नहीं लगता, कभी भाई आ रहा है, कभी बहन आ रही है कभी भाभी आ रही है, कोई ना कोई लगे रहता है, यह मत भूल.. यह घर  मेरा है, यहां पर सिर्फ जो मैं कहूंगी वही होगा,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हम थे जिनके सहारे वो हुए ना हमारे – मुकेश पटेल

कैसी बेशर्म बहू मिली है, हद हो गई! इस बार संध्या के बर्दाश्त की भी हद हो गई, तब उसने कहा ! हां हां… मेरी मां ने मुझे यही सिखाया है कि बड़ों का सम्मान कैसे किया जाता है, घर आए गए कि कैसे आवभगत की जाती है,अपने सास ससुर को कैसे खुश रखा जाता है,  8 महीने तक अपने होंठ सिल् रखे थे ,मैं आपका जितना आदर् सम्मान करती थी अपने उतना ही उसका फायदा उठाया, आपने क्या समझ रखा है.. मैं पागल हूं, मेरी मां को बात-बात में बीच में लाना बंद कर दीजिए, आपकी वजह से जल्दी से किसी को आने के लिए भी नहीं कहती, आप तो मेरे साथ ऐसा सलूक करती है, जैसे मैं घर की बहू नहीं कोई जानवर हूं,

अरे बीमारी में तो दुश्मन भी साथ देते हैं, आप तो मेरी सास है, कभी आपने मुझे एक गिलास पानी तक के लिए नहीं पूछा, मैं अगर चाहती तो मैं भी दिन भर आराम कर सकती थी, दिन भर शॉपिंग के लिए, या किटी पार्टी में जा सकती थी, या अपने पति को आपके खिलाफ भड़का कर अलग हो जाती,  किंतु मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, क्योंकि मेरी मां ने मुझे यह सब नहीं सिखाया, मम्मी जी तो क्या आपको आपकी मां ने यह सब सिखाया था? क्यों प्यार से आप मुझे बहू बनाकर लाई थी, इसलिए कि आपके साथ जो भी हुआ उसकी कसर आप मुझ पर निकलेंगे!  

अब तो मुझे लगता है की दादी जी आपके बारे में जो कहती थी वह सही कहती थी, आपने उनके बेटे को उनसे दूर कर दिया, बेचारी दादी मां अपने अंत समय तक अकेली ही एक घर के कोने में पड़ी रही, आपने ना खुद उनकी सेवा की ना हमें करने दिया! आपने कभी हमें उनसे बात तक नहीं करने दि, लेकिन मम्मी जी एक बात आप मत भूलिए ..मैं आज के जमाने की लड़की हूं,  गलती करने वाले से ज्यादा, सहन करने वाला भी गलत होता है, और आज के बाद मैं आपकी कोई भी  गलत बात बर्दाश्त नहीं करूंगी, खास तौर से अगर आपने किसी भी बात में मेरी मां को बीच में लाया तो मैं भूल जाऊंगी आप मेरी सास है,

मैं आपकी बहू !अगर मैं चाहूं तो 1 मिनट में आपके बेटे को लेकर अपनी छोटी सी सुंदर सी दुनिया बसा लूं, जिसमें आपका कोई दखल ना हो, जहां सिर्फ मेरी चले! फिर आप अपने बेटे बहु से मिलने के लिए तरस जाओ और आपका अंत भी दादी जी जैसा ही हो,  मां  तो क्या आप लिए तैयार है ?और हां यह मत भूलिए जितना घर आपके पति का है उतना ही घर मेरे पति का भी है, हम दोनों ही इस घर की बहुएं हैं! इस हिसाब से तो यह घर हम दोनों का बराबर बराबर हुआ तो आप मालकिन और में नौकरानी कैसी हो गई?

दरअसल आपको बहुत चाहिए ही नहीं थी, आपको तो बहू के रूप में एक नौकरानी चाहिए थी! अब यह  आपके ऊपर  निर्भर करता है मम्मी जी.. आपको बहू चाहिए या नौकरानी! आज संध्या के मुंह से ऐसी बातें सुनकर  सास  अवाक रह गई, क्योंकि जिसने उसको बकरी समझा था वह तो शेरनी निकली और अब इस शेरनी से बच के रहने में ही भलाई है! किसी के भोलेपन का नाजायज फायदा भी इतना नहीं उठाना चाहिए!

   हेमलता गुप्ता स्वरचित

  बेटियां 6th जन्मोत्सव प्रतियोगिता (6)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!