देखो उमेश..मुझसे नहीं होगा, मैंने बहुत बर्दाश्त किया है आज तक किंतु अब भी तुम चाहते हो मैं तुम्हारी मां की सेवा करने के लिए उनके पास चली जाऊं या उन्हें यहां बुला लूं तो यह मुझसे नहीं होगा, तुम उनके बेटे हो इसलिए तुम मेरे साथ हुए सारे अत्याचार भूल सकते हो किंतु मैं कैसे भूल जाऊं
जब उन्होंने 10 वर्ष पूर्व मेरे गृह प्रवेश के समय ही मुझे अपशकुनी कह दिया था, मुझे नहीं पता था चावल के कलश का सही से नहीं गिरना भी अपशकुन कहलाता है, क्या-क्या याद दिलाऊं तुम्हें मैं.. क्योंकि तुमने तो कभी मेरा साथ दिया ही नहीं, हर बात में तुम्हें सिर्फ तुम्हारी मां सही नजर आती थी
और मैं हमेशा गलत, बात-बात पर ताने देना मेरे परिवार वालों को उल्टा सीधा कहना, मुझे कभी अच्छी बहु ना मानना वह तो बड़े दूर की बात है लेकिन जब मैं पहली बार मां बनने वाली थी तब भी उन्होंने मुझे डॉक्टर के मना करने के बावजूद पूरे 9 महीने तक कितना काम करवाया थाजिसकी वजह से मैं हमेशा मानसिक तनाव में रही
और मेरा बच्चा जन्म के तुरंत बाद ही चला गया, दूसरे बच्चे के समय भी जब हम अलग मकान लेकर रहने लग गए और उन्हें लाख बुलाने पर भी डिलीवरी के समय नहीं आई तब मेरी मां ने मेरा साथ दिया था, फिर भी दो साल पहले जब तुम्हारी बहन की शादी हुई हमने पूरे तन मन से शादी में सहयोग किया था
किंतु जब उन्होंने मुझ पर अपनी ही नंद की अंगूठी की चोरी का आरोप लगाया मैं कैसे बर्दाश्त करती? किंतु तुम्हारे कहने पर मैं शादी तक रुकी रही अपने अंदर आंसूओ के सैलाब को रोक कर और जब मेरी बेटी छत से गिर गई उसके 10 टांके आए थे सर में लेकिन तुम्हारे घर से कोई भी उससे मिलने तक नहीं आया,
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क्या वह सिर्फ मेरी बेटी है उनकी पोती नहीं..? तो फिर मैं उनकी सेवा करने कैसे जा सकती हूं, हां तुम उनके बेटे हो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी! लेकिन चारु… मां को अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है उन्होंने मुझसे यही कहा था कि बेटा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी कि मैं अपनी बहू को नहीं समझ पाई
किंतु अब तू मेरी बहू और पोती को लेकर इस घर में वापस आजा, उनके पछतावे के आंसू देखकर मैंने तुम्हारे लिए हां कर दी, देखो चारु.. पुरानी सारी बातें भूल जाओ और नई जिंदगी की शुरुआत करो, जब मां को अपनी गलती का एहसास हो गया हैतो तुम्हें भी सब कुछ भूल कर आगे बढ़ना चाहिए!
वाह.. पतिदेव यह अच्छा है.. अगर मेरी जरूरत के समय तुम अपनी मां से भी यही सब कहते तो मुझे बहुत खुशी होती किंतु जब तुम्हारी मां की तबीयत इतनी खराब है तब उन्हें मेरी याद आई और तुम मुझे चाहे कुछ भी समझ लो पर मुझे तो यह सब किसी भी स्थिति में नहीं हो पाएगा, वैसे भी मुझे उन्होंने अपने घर की नौकरानी जैसा ही माना था
तो अब भी किसी नौकरानी का ही इंतजाम कर लो, याद है तुम्हें उन्होंने मुझसे क्या कहा था…. कि अगर मैं मर भी जाऊं तो भी मेरी देहरी पर कदम मत रखना मुझे तेरी शक्ल से नफरत है, फिर कैसे अब् मेरा चेहरा देख पाएंगी, यह बड़े-बूढ़े क्यों यह भूल जाते हैं की जरूरत के समय सभी को एक दूसरे का सहयोग करना पड़ता है
जब मैं नई-नई बहू बनकर आई थी तब इन्होंने मुझे कुछ नहीं समझा और आज जब यह कुछ भी करने में असमर्थ हैं तब इन्हें मेरी याद आने लगी? मेरे मन में उनके लिए जो नफरत का लावा फूट रहा है वह किसी भी हालत में कम नहीं होगा उनके वह पछतावे के आंसू नहीं है वह मात्र दिखावा है,
देखना जब उनका काम निकल जाएगा तब वह दूध में से मक्खी की तरह मुझे निकाल फेंकेंगे! चारु कैसी बेवकूफो वाली बातें कर रही हो तुम्हें पता है ना पापा की भी उम्र हो गई है और मम्मी से भी घर का काम नहीं होता, अदिति अपने ससुराल में है तो क्या बेटे का कर्तव्य हम नहीं निभाएंगे? अवश्य पतिदेव… आप निभाइए ना बेटे का कर्तव्य,
मैंने कब मना किया पर मुझे इन बंधनों से मुक्त कीजिए, अगर मैं उनकी सेवा करने चली भी जाऊं तो मेरे मन में हमेशा उनके दिए हुए ताने उलाहना गलियां और सबसे बड़ा मेरे बच्चों की तकलीफ में भी उनका साथ ना देना मुझे सब दिखाई देंगे! किंतु चारु…….? चारु ने कहते समय तो इतना सब कुछ उगल दिया किंतु दो दिनों तक तक उसे चैन की नींद नहीं आई
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आखिरकार उसने जाने का फैसला कर ही लिया अपने मन को समझा लिया कि उन्होंने मेरे साथ जो भी किया हो किंतु मेरे संस्कार ऐसे नहीं है कि मैं इस अवस्था में अपनी सास को छोड़ दूं, हालांकि मैं जानती हूं उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है किंतु मैं अपना फर्ज निभा कर रहूंगी और 2 दिन बाद चारु अपने ससुराल पहुंच गई,
उसकी सास को तो उम्मीद भी नहीं थी कि चारु वहां आ जाएगी वह अपनी बहू से नजरे भी नहीं मिला पा रही थी, चारु की सास उसे देखते ही अपने किए कर्मों की माफी मांगने लगी और कहने लगी बेटी.. मैंने तेरे संग सच में बहुत बुरा किया है मुझ जैसी सास को तो माफी का कोई अधिकार भी नहीं है
किंतु तुमने आज मुझे माफी देकर अपने बड़प्पन का सबूत दिया है, सास की आंखों में चारु को पछतावे के आंसू नजर आए और उसने सारी बातों को परे रखकर अपनी सास को गले लगा लिया और कहा… नहीं मां एक बेटी के होते हुए आप बेसहारा कैसे हो सकती हैं?
अब आपकी बेटी आ गई है जो आपकी पूरे तन मन से सेवा करने को तैयार है! चारु के बदले व्यवहार को देखकर उमेश भी दंग रह गया और साथ ही खुश भी! और आंखों ही आंखों में चारु ने उमेश से कह दिया कि हां…. “मुझे कोई शिकायत नहीं है”!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (पछतावे के आंसू )