एक गाँव में एक राजा रहता था जो निर्दयी और घमंडी था। एक बार एक वृद्ध राजा के दरबार में आया और बोला महाराज!
क्या आपके पास मेरे योग्य कोई कार्य है यदि हो तो बताइए। राजा बोला अभी मेरे पास कोई ऐसा
कार्य नहीं जो तुम्हारे योग्य हो। वृद्ध बोला महाराज कृपा करें मेरी पत्नी बीमार है और मुझे कुछ पैसों की आवश्यकता है।
राजा ने थोड़ा विचार किया और वृद्ध से कहा कि नगर में एक कुँआ खोदना है, क्या तुम खोद पाओगे?
वृद्ध ने हाँ कर दिया और नगर की ओर फावड़ा लेकर चला गया। वृद्ध ने कुँआ खोदना शुरु किया। कुँआ अधिक गहरा खोदना था
इसलिए वृद्ध बार-बार कुँआ खोदता और जब थक जाता तो थोड़ा आराम कर लेता। कुँआ
खुदते ही वृद्ध राजा के पास गया और बोला महाराज! मैंने कुँआ खोद दिया। राजा बोला अच्छी बात है और मौन हो गया।
किन्तु वृद्ध आशा भरी नजरों से उसकी ओर देखता रहा। फिर वृद्ध बोला महाराज! मेरी मजदूरी यदि
मुझे अभी मिल जाए तो आपकी अति कृपा होगी।
राजा बोला मैं सूर्य ढलने के पश्चात् किसी को पैसे नहीं देता कल दोपहर के समय आना। वृद्ध बोला महाराज मेरी पत्नी बहुत बीमार है, यदि उसे जल्द से जल्द इलाज न
मिलने सका तो…….( इतना कहकर वृद्ध शांत हो जाता है और उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।)
लेकिन राजा पर वृद्ध की बातों का कोई असर नहीं हुआ और उसने गुरूर में आकर कहा मेरा वक्त खराब न करो और
जाओ यहाँ से। वृद्ध आँखों में आँसू लिए घर आ जाता है। घर आकर वह देखता है कि उसकी पत्नी का बुखार बढ़ता जा रहा है।
लेकिन अपने हालातों से मजबूर वृद्ध के पास अपनी पत्नी के सिर पर गीला कपड़ा रखने के
अलावा कोई और चारा न था। फिर वह पूरी रात जागकर अपनी पत्नी के सिर पर गीला कपड़ा रखता रहा। जिससे बुखार कुछ धीमा हो गया।
अगले दिन दोपहर होते ही वृद्ध राजा के महल गया और राजा से बोला महाराज
मुझे मेरी मजदूरी देने की कृपा करें। राजा बोला थोड़ा इंतजार करो अभी हम मैच देख रहे हैं। मैच खत्म होते ही हम तुम्हें तुम्हारी मजदूरी दे देंगे।
लगभग एक घंटे के बाद राजा ने वृद्ध को अपने पास बुलाया और उसे 500
रूपये दे दिए। वृद्ध को थोड़ी राहत मिली और वह पैसे लेकर वैध के पास गया और अपनी पत्नी का इलाज करवाया।
वैध द्वारा हर सम्भव प्रयास करने के बाद भी पत्नी न बच सकी। पत्नी का दाहकर्म करने के पश्चात् वह
घर लौटकर आ गया। पड़ोस के कुछ आदमी उसे समझाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन वह मौन बैठा था और उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह रही थी।
कुछ हफ्ते बाद ही राजा के बेटे को बिच्छू ने काट लिया। गाँव के कई लोग इसका तोड़ जानते थे,
लेकिन राजा के गुरूर और क्रूर व्यवहार के कारण कोई राजा के बेटे को बचाने नहीं आया। अन्त में उस वृद्ध को जब यह
खबर लगी तो वह तुरंत उसे बचाने चल दिया। किन्तु दहलीज पर कदम रखते ही उसे अपनी पत्नी की याद आ गई।
फिर उसने सोचा जो हुआ सो हुआ, माना राजा ने मेरे साथ गलत किया है लेकिन इसमें उस बेचारे मासूम
का करता दोष। यह सोचकर वृद्ध जल्दी-जल्दी राजा के महल पहुँच गया। वृद्ध ने वहाँ जाकर राजा के बेटे की ओर देखा
और राजा से बोला कि मैं बिच्छू के काटे का तोड़ जानता हूँ, यदि आपकी अनुमति हो तो क्या मैं
अपना कार्य प्रारंभ करूँ। राजा ने तुरंत उसे अनुमति दे दी। वृद्ध ने झाड़-फूँक करके राजा के बेटे को ठीक कर दिया।
तब राजा ने वृद्ध की तारीफ करते हुए उसे कुछ अशर्फियाँ उपहार के रूप में भेंट करनी चाहीं। किन्तु
वृद्ध ने राजा से कहा महाराज! यह शाम का समय है। जिस प्रकार आप मुझे आज शाम के समय में उपहार दे रहें हैं
यदि उस दिन आपने शाम के वक्त मेरी मजदूरी दे दी होती तो शायद आज मैं अपनी पत्नी के साथ होता।
इतना कहकर वृद्ध वहाँ से चला जाता है।
स्वरचित मौलिक रचना
लेखिका-
खुशी प्रजापति
आगरा, उत्तरप्रदेश