गुरुर – अयोध्या प्रसाद उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

इंजीनियर दंपति ने यह बहुत पहले ही निर्णय ले लिया था कि संतान रूप में लड़की हो या फिर लड़का केवल एक ही।

वे बैंगलोर में रहते थे। दोनों की अच्छी खासी तनख्वाह थी। घर गृहस्थी मजे में चल रही थी। तीन कमरों का फ्लैट था।दो ही प्राणी तो रहने वाले। कुछ खाली खाली सा लगता था।

आज समाज और समय बहुत बदल गया है साथ ही संस्कार भी। पहले जैसा अब कुछ भी नहीं दिखाई देता। पहले की जिंदगी में कोई ताम-झाम नहीं फिर भी जीवंतता थी। आज लिफाफा बहुत खूबसूरत मगर मजमून तो अल्लाह ही जाने।

मनोज और मनीषा ने यह तय कर लिया था कि शादी के तीन साल के बाद ही बच्चे के लिए सोचेंगे। ऐसा ही हुआ। घर में एक नवजात का आगमन हुआ।

खुशियां मनाई गयीं । सबको मिठाइयां बांटी गयीं। लगभग एक सप्ताह तक चहल-पहल रही।जो जहां से आये थे वे सब के सब अतिथि लौट गये।

पति पत्नी दोनों को ही मातृत्व और पितृत्व अवकाश की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा घर में आने वाली जो आया थी उसे स्थायी रूप से तनख्वाह बढा कर बच्चे की देखभाल के लिए रख लिया गया।

नवजात कन्या शिशु को बेबी कहा जाता था। वैसे तीन महीने के बाद जब नामकरण संस्कार किया गया था तो उस अवसर पर जो नाम रखा गया वह था “गुरुर” ।

घर में तो उसे बेबी ही कहा जाता था किन्तु सर्टिफिकेट में उसका नाम था गुरुर।

जब वह बच्ची कुछ बड़ी हुई यानी थोड़ी समझदार हुई तो एक दिन  माता-पिता से अपने नाम का अर्थ जानना चाहा।

उन्होंने जब उसका अर्थ बताया तो वह खुशी से उछल पड़ी। माता पिता ने कहा कि —” तुम पर हमें नाज़ है बेटी। एक दिन तुम हमारे गुरुर बनोगी। जो हमारे खानदान के लिए गर्व का विषय होगा। “

अब वह स्कूल में दाखिला के योग्य हो गई थी। बैंगलोर के एक ख्यातिप्राप्त विद्यालय में नामांकन हो गया। वह अंग्रेजी माध्यम का स्कूल है। उसका मन पढ़ने में लगने लगा। शुरुआत में तो कोई भी बच्चा घर से बाहर जाने में झिझकता है। खैर यह कोई समस्या नहीं बनी।

गुरुर विद्यालय चली गई थी। आपस में दोनों बातें कर रहे थे —” यह बहुत  सुन्दर तो है ही समझदार भी है। कितना हम दोनों का ख्याल करती है। हमेशा कुछ न कुछ पूछती ही रहती है जैसे वही हमलोगों का अभिभावक हो।”

मनीषा हंसती हुई बोली –“देखिये जी , ऐसा मत कहिये कहीं हमारी बेबी को नजर न लग जाये । भगवान की कृपा उसे प्राप्त हो।”

मनोज ने कहा –” अरे यार तुम तो इन छोटी छोटी बातों से क्यों डर जाती हो। मैंने तो सिर्फ ऐसे ही बात बात कह दी थी।”

दोनों अपने अपने आफिस में चले गये। देखरेख करने के लिए घर में आया तो रहती थी। बेबी के स्कूल से लौटने पर आया उसे खिलाती पिलाती और खेलाती भी थी। उसका भी मन आया के साथ लगने लगा था। कोई दिक्कत नहीं होती। आया भी उसकी सेवा करने में कोई कोताही नहीं बरतती।

बेबी के लिए तरह तरह के खिलौने घर में रखे हुए थे।

जब जिससे जी करता खेलती और फिर खेलते खेलते गोद में लिये बिछावन पर सो भी जाती।

बेबी से जब उसके माता-पिता जब पूछते कि पढ़ लिख कर तुम क्या बनना चाहोगी ? तब वह कहती —” डॉक्टर बनूंगी। आप लोगों की सेवा करुंगी। “

देखते ही देखते दसवीं कक्षा उत्तीर्ण हो गई। अपने वर्ग में अव्वल दर्जा हासिल की थी। विद्यार्थियों के बीच बहुत दिनों तक उसकी चर्चा होती रही। विद्यालय से लेकर घर तक और आस-पड़ोस में भी खुशी छाई रही। उसके साथ साथ उसके माता-पिता के भी हौसले बुलंद हो गये। उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के लिए संकल्पित थे। ऐसा ही किया गया। दो वर्षों के बाद वह नीट परीक्षा में सात सौ बीस अंकों में सात सौ बीस अंकों को प्राप्त करके  वह देश के दस टापर्स में से एक थी।

मेधा के आधार पर उसका नामांकन दिल्ली एम्स में हो गया। पांच साल के बाद उसने छह महीने का इंटर्नशिप भी कर लिया।

समस्या एक सामने यह आई कि प्रैक्टिस किया जाय या फिर दो साल का पीजी कोर्स भी पूरा कर लिया जाय।

मनोज ने कहा —” कैरियर को देखते हुए दो वर्ष का पीजी कोर्स भी तुम्हारे लिए बहुत लाभदायक होगा।”

दो वर्षीय पीजी कोर्स पूरा होते ही उसकी नियुक्ति बतौर एक चिकित्सा पदाधिकारी के रूप में एम्स में ही हो गई।

यह अत्यंत ही हर्ष का विषय रहा। चारों ओर से मनोज को बधाइयां आने लगीं और वे सबका धन्यवाद करने लगे। मनीषा ने मनोज से कहा —” कितना अच्छा होता अगर हमलोग अपने शुभचिंतकों को किसी एक दिन पार्टी पर आमंत्रित कर देते।”

यह बात मनोज को बहुत पसंद आई। सबको आमंत्रित किया गया। तैयारी भव्य तरीके से की गई थी। मनोज मनीषा के परिचितों के अलावे बेबी के भी जितने जानकर थे सबको ससम्मान बुलाया गया। एक छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया था ताकि आगंतुकों का मनोरंजन हो सके ।

कार्यक्रम को लेकर लोगों के मन में उत्साह था। सभी अपने विचारों को व्यक्त कर रहे थे। खुशनुमा माहौल था। कार्यक्रम का अंतिम दौर चल रहा था ‌ । अब बारी थी अतिथियों का धन्यवाद करने का। मनोज ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आज मैं अपनी गुरुर जैसी पुत्री को प्राप्त कर धन्य धन्य हो गया हूं। इस अवसर पर मैं आप सबका नमन करता हूं।

अब तो कार्यक्रम सम्पन्न हो ही गया था लेकिन बेबी ने लोगों को दो मिनट रुक कर उसकी बातें सुन लेने की प्रार्थना की। सभी प्रसन्नतापूर्वक उसकी बातें सुनने के लिए उत्सुक हो गये। उसने अपने संबोधन में कहा कि आज मुझे अपने माता-पिता पर बहुत ही गुरुर है कि इन्होंने मुझे इस लायक बना दिया है कि मैं समाज की सेवा कर सकती हूं ‌।

उसके इतना कहते ही उसके माता-पिता उससे लिपट कर भावुक हो गये और टूटे-फूटे स्वरों में —“बेटी हम लोग तुम पर बहुत बहुत गुरुर करते हैं। तुम पर हमें गर्व और नाज़ है । जीवन में और भी आगे बढ़ते रहो।

बेबी ने उनके पैरों को छू कर माथे से लगा लिया।

अयोध्या प्रसाद उपाध्याय, आरा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

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