रघुवीर दास एक समय के प्रतिष्ठित और सम्मानित शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा बच्चों को शिक्षा देने में बिताया था। उच्च विद्यालय में हिन्दी के सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने न केवल छात्रों को शिक्षा दी, बल्कि उन्हें जीवन के अच्छे मूल्य भी सिखाए। रघुवीर दास का मानना था कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह एक व्यक्ति के चरित्र और समाज के प्रति उसके कर्तव्यों को भी आकार देती है।
रघुवीर दास के लिए उनका पेशा एक सच्चा जुनून था। उन्होंने अपने छात्रों को न केवल पुस्तक ज्ञान दिया, बल्कि उनकी मानसिकता को भी संजीवनी दी। वे हमेशा कहते थे, “शिक्षक का काम केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि छात्रों को अपने सपनों का पीछा करने के लिए प्रेरित करना है।” यही कारण था कि उनका मानना था कि अगर कोई बच्चा उनके द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों और आदर्शों को अपने जीवन में उतारे, तो वे अपने काम को सही तरीके से निभा रहे हैं।
उनकी नौकरी के दौरान एक छात्र, कुंदन कुमार, था जो पढ़ाई में हमेशा संघर्ष करता था। कुंदन, जो एक गरीब परिवार से था, शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से कमजोर था। जब वह कक्षा में आता, तो रघुवीर दास हमेशा उसे अतिरिक्त मदद देते और उसकी कमजोरियों को सुधारने की कोशिश करते। वह जानते थे कि कुंदन का दिमाग तेज है, लेकिन उसे अपनी स्थिति को लेकर आत्मविश्वास की कमी थी।
एक दिन की बात है, कुंदन को जब किसी परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आए, तो रघुवीर दास ने उसे सख्त शब्दों में डांटा था। उनका कहना था, “तुममें काबिलियत है, लेकिन तुम अपनी मेहनत को सही दिशा में नहीं लगा रहे हो। अगर तुम अपनी यह लापरवाही नहीं छोड़ते, तो तुम्हारी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आएगा।” कुंदन के लिए यह एक बहुत बड़ा अपमान था, क्योंकि वह पहले से ही खुद को कम समझता था और रघुवीर दास के इस शब्दों ने उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाई थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अभी इतना भी बूढ़े नहीं हुए हैं कि बच्चों की उंगली पकड़कर चलें – अलका शर्मा : Moral Stories in Hindi
लेकिन यह वही अपमान था, जो कुंदन के लिए वरदान साबित हुआ। कुंदन ने उस दिन निर्णय लिया कि वह अब हार नहीं मानेगा। रघुवीर दास की बातों को उसने एक चुनौती के रूप में लिया और उसे अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया। उसने अपनी पूरी मेहनत और लगन से सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी शुरू की।
कुंदन ने अपनी कठिनाईयों का सामना किया और कई महीनों तक लगातार मेहनत की। उसे किसी ने नहीं समझा, लेकिन उसे खुद पर विश्वास था कि वह कुछ बड़ा करेगा। उसे रघुवीर दास के शब्द याद आते थे, और वह अपनी मेहनत में और भी जुट जाता। हर दिन वह खुद को यही कहता, “मैं रघुवीर दास के अपमान का बदला एक दिन अपनी सफलता से लूंगा।”
वह समय आ गया, जब कुंदन कुमार ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की और उसका नाम भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के सफल उम्मीदवारों की सूची में था। यह उसकी पूरी जिंदगी का सबसे बड़ा और सबसे अहम क्षण था। कुंदन को इस सफलता का पूरा श्रेय अपनी मेहनत, संघर्ष और सबसे ज्यादा रघुवीर दास के उस अपमान को देना था, जिसने उसे प्रेरित किया था।
अब कुंदन एक सशक्त और सफल जिलाधिकारी बन चुका था। उसने तय किया कि वह एक दिन रघुवीर दास से मिलकर उनका धन्यवाद करेगा और उन्हें यह बताएगा कि उनके अपमान ने उसे सफलता की ओर कैसे प्रेरित किया। एक दिन जब कुंदन कुमार अपने जिले में नई जिम्मेदारी संभालने के लिए आए, तो उन्होंने रघुवीर दास के घर का दौरा करने का निर्णय लिया।
कुंदन कुमार और एसपी दिव्या मित्रा के साथ जब जिला प्रशासन की गाड़ियां रघुवीर दास के घर के बाहर रुकीं, तो आस-पास के लोग हैरान रह गए। रघुवीर दास के दरवाजे पर उच्च अधिकारियों की उपस्थिति ने सभी का ध्यान खींच लिया। रघुवीर दास, जो अपनी चाय पी रहे थे और अखबार पढ़ रहे थे, यह देखकर चौंक गए कि इतने बड़े अधिकारी उनके घर आ रहे थे। वह घबराते हुए बाहर आए और उन्होंने जिलाधिकारी से पूछा, “क्या बात है सर?”
इस पर जिलाधिकारी कुंदन कुमार हंसी से मुस्कराए और उनके पास जाकर उनके पैर छूने लगे। रघुवीर दास का चेहरा और भी हैरान हो गया। कुंदन ने उनकी तरफ देखा और कहा, “सर, क्या आप मुझे पहचान नहीं रहे हैं? मैं वही कुंदन कुमार हूं, जिसे आपने कभी अपनी पढ़ाई में कमजोरी के कारण डांटा था। आपने उस दिन मुझे जो अपमानित किया था, वही मेरे लिए वरदान साबित हुआ और मैंने उसे अपनी मेहनत से बदल डाला। आज मैं अपने जिले का डीएम हूं, और यह सब आपके अपमान से प्रेरित होकर ही हुआ है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
शर्म नहीं गर्व हूं मैं – गौरी शुक्ला : Moral stories in hindi
रघुवीर दास को यह सुनकर गहरी खुशी हुई। उनका दिल गर्व से भर गया और उनकी आंखों में आंसू आ गए। वह कुंदन को गले लगाते हुए बोले, “बेटे, तुमने आज मुझे गर्व महसूस कराया है। तुमने वह गुरु दक्षिणा दी है जो किसी भी शिक्षक के लिए सबसे बड़ी होती है। तुमने मेरे अपमान को वरदान बना दिया, और मुझे इस बात की खुशी है कि तुम्हारी मेहनत और समर्पण ने तुम्हें यह सफलता दिलाई।”
यह पल रघुवीर दास के लिए सबसे भावुक क्षणों में से एक था। एक शिक्षक का असली सुख तब होता है जब उसका छात्र सफलता की ऊंचाइयों को छूता है, और रघुवीर दास के लिए कुंदन का यह सफलता एक सच्ची गुरु दक्षिणा थी। उन्होंने हमेशा अपने छात्रों को यही सिखाया था कि सफलता केवल शिक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि आत्मविश्वास, कड़ी मेहनत और संघर्ष भी इसकी महत्वपूर्ण कुंजी है।
कुंदन कुमार के जीवन में रघुवीर दास का अपमान एक टर्निंग प्वाइंट था, जिसने उसे अपने जीवन का लक्ष्य ढूंढने के लिए प्रेरित किया। और आज, वही अपमान उसे अपने शिक्षक के सामने गर्व के साथ प्रस्तुत करने का अवसर दे रहा था।
कुमार किशन कीर्ति
बिहार।