Moral stories in hindi : अभी तक सभी बच्चे मैम या मिस ही बोलते थे,शुभा को।गुंजन ने नई उपाधि दी”गुरु मां”।दूसरे बच्चों की तरह गुंजन भी शुभा की कक्षा में पढ़ती थी। कॉन्वेंट में तीसरी कक्षा में दाखिला हुआ था उसका,और क्लास टीचर थी शुभा।
भूरी आंखों वाली गुंजन पहले दिन से ही शुभा के आगे पीछे घूमने लगी थी। नई जगह आकर उसका मन ना घबराए,इस बात का पूरा ध्यान रखा था शुभा ने। धीरे-धीरे उसने शुभा को कब अपना आदर्श मान लिया,शुभा भी नहीं समझ सकी।
विद्यालय के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए सभी बच्चों को प्रोत्साहित करती थी शुभा।गुंजन हर कार्यक्रम में जरूर भाग लेती थी।सहपाठी अक्सर उसे चिढ़ाते,मैम की चमची कहकर।उसे इस बात पर भी गर्व महसूस होता था।
पता नहीं कैसे मैम की लिखने की कला भी उसने सीख ली।हर दिन किसी भी विषय पर लिख कर लाती कोई कविता या लेख और शुभा को दिखाती।एक शिक्षक होने के नाते शुभा ने कभी भी उसे हतोत्साहित नहीं किया।
चाहे कुकिंग प्रतियोगिता हो,गाने की प्रतियोगिता हो या नाटक ,गुंजन सहभागिता करेगी ही।घर में कुछ भी अच्छा पके ,मैम के लिए जरूर लाती थी।
एक बार कुमुद ने पूछा ही लिया था शुभा से”मैम,गुंजन क्या आपकी बेटी है?”शुभा सोच में पड़ गई थी,क्योंकि उसकी अपनी बेटी उसी विद्यालय में पढ़ती थी और गुंजन से एक साल बड़ी थी।शुभा ने कुमुद से कहा”अरे, गुंजन ही क्यों, तुम सभी मेरी बेटी हो।
“कुमुद आश्वस्त नहीं हो पाई थी,शुभा के जवाब से। गुंजन ख़ुद ही सबसे कहती थी कि वह शुभा की बेटी है।इस बात का पता शुभा की बेटी को भी चला।घर आते ही कहा था उसने अपने पापा से”पापा, मम्मी अब गुंजन की भी मम्मी है,
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सिर्फ हम भाई -बहन की नहीं।”शुभा ने हंसकर बेटी का उलाहना सुन लिया था।अब तो बेटी बात-बात पर चिढ़ाती “हां, गुंजन को ही ले आओ घर पर।पूरे स्कूल में बोलती फिरती है”मैंने मैम के जैसे बोलना सीख लिया,लिखना सीख लिया।मैम मुझे सबसे ज्यादा प्यार करतीं हैं।”
शुभा भी बेटी को चिढ़ाती”सच तो कहती हैं वह,बिल्कुल मेरी परछाई बन चुकी है वह। तुम्हें देखकर तो कोई नहीं कहता कि तुम मेरी बेटी हो।”देखते-देखते बेटी की दसवीं की परीक्षा ख़त्म हो गई और शुभा ने उसे विशाखापत्तनम भेज दिया”श्री चैतन्या संस्थान में पढ़ने।
गुंजन दसवीं के बाद इसी विद्यालय में बॉयो लेकर पढ़ रही थी।शुभा के आगे पीछे घूमने का उसका सिलसिला बंद नहीं हुआ। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके शुभा की बेटी का दाखिला, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय महाविद्यालय में बॉयोटेक में करवाया था शुभा ने।अगले साल गुंजन ने भी वहीं दाखिला लिया।उसी विषय में।
अब तो गुंजन से मुलाकात तब हो जाती जब शुभा अपनी बेटी से मिलने जाती। गुंजन ही नहीं शुभा की पढ़ाई बहुत सारी छात्राएं पढ़ रहीं थीं वहां।शुभा के आने की खबर आग की तरह फ़ैल जाती थी, प्रांगण में।शुभा को अपन छात्रों से मिलना बहुत सुखद लगता था।
भावनात्मक रूप से जुड़ी थी वह अपने सभी छात्रों से।बेटी को भी अब अपनी मम्मी के जगत मम्मी होने की आदत पड़ गई थी।बी एस सी में शुभा की बेटी को यूनिवर्सिटी टॉपर का गोल्ड मेडल मिला।
यह एक बेटी के द्वारा अपनी टीचर मां को दिया गया अतुलनीय पुरस्कार था।उसी दिन गुंजन ने शुभा से कहा था “मैम,जैसा दीदी ने आपको गौरवान्वित किया है ,मैं भी एक दिन आपका नाम रोशन करूंगी,वादा करती हूं आपसे।”
शुभा को कब गुंजन अपनी मां समझने लगी,पता नहीं। दिन-रात मेहनत करके अगले साल उसने भी टॉप किया।फिर वहीं से एम एस सी भी की बॉयोटेक से।एक उदासी अब भी थी उसके मन में।पी एच डी करना चाहती थी वह,पर शुभा की राय जानकर ।
शुभा ने उसका हौसला बढ़ाया ,क्योंकि लिखने में माहिर थी वह। यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए ही कविताएं लिखने लगी थी।शुभा को भेजती भी थी।
हर साल गुरू पूर्णिमा और शिक्षक दिवस पर शुभा के पास सबसे पहले उसी का प्रणाम आता था। आश्चर्य होता था शुभा को ,जब वह लिखती “गुरु मां के चरणों में मेरा प्रणाम”।
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क्या कोई छात्र अपने शिक्षक को मां का दर्जा दे सकता है सच में।गुंजन ने इसे प्रमाणित किया था।शुभा मिस की चमची कहलाने में गौरव मानने वाली बच्ची ने गुरुकुल की परंपरा निभाते हुए,मां के जैसा सम्मान दिया था शुभा को।
इस बार गुरु पूर्णिमा के चार दिन पहले ही रात ग्यारह बजे,शुभा मिस की चमची फोन करती है”गुरु मां मेरा एन आई टी में सेलेक्शन हो गया पी एच डी के लिए,इंदौर से।यह संभव हो पाया सिर्फ आपके विश्वास की वजह से।
आपने जो प्यार और आशीर्वाद दिया है मुझे ,उसी का परिणाम है कि मैं भी आपको आपकी अपनी बेटी की तरह सम्मान दिला पाऊंगी अब।”
शुभा अवाक हो गई थी,यह सुनकर नहीं कि गुंजन का सेलेक्शन हो गया ,बल्कि यह सोचकर कि उसकी उपलब्धि का श्रेय शुभा को दे रही है।
आगे उसका बोलना अनवरत चलता रहा”मेरा पीएचडी पूरा होने पर जब मुझे टॉपर का मेडल मिलेगा ,आप जाएंगी मेरे साथ।मेरी यही गुरुदक्षिणा होगी,अपनी गुरु मां को।”
वह बोली कम और रो ज्यादा रही थी।आज के भौतिकवादी युग में जहां बच्चे अपन माता-पिता को अपनी उपलब्धियों का श्रेय देने से कतराते हैं,वहां एक लड़की अपने अस्तित्व को ही अपनी गुरु का प्रतिबिम्ब मान बैठी।
शुभा सोचने लगी” मेरी बेटी ने मेरा मान बढ़ाया,मेडल लेकर।वह तो मेरा खून है।ये लड़की जिसे मैंने विद्यालय में पढ़ाया,हां प्यार में कभी मिलावट नहीं की मैंने,वह मेरे सम्मान के लिए थीसिस लिखेगी।अपने नाम कर आगे डॉक्टर लिखा देखना चाहती है वह,ताकि सबको गर्व से बता सके कि शुभा मैम नहीं,उसकी गुरु मां है।”
गुंजन रोते हुए बोल रही थी”आप द्रोणाचार्य हो मेरी,मैं अर्जुन ना सही एकलव्य तो बनूं।”शुभा ने पूछा “अंगूठा मांग लिया मैंने तो?”
“मैं अपना एक -एक अंग आपके हवाले कर दूंगी।आप मांगकर तो देखिए।मैं आपको अपनी डिग्री गुरुदक्षिणा में दूंगी ,गुरु मां।”
“खूब खुश रहो बेटा,ईश्वर तुम्हारी हर इच्छा पूरी करें”बस इतना ही आशीर्वाद दे सकी थी शुभा ,अपने एकलव्य को।
शुभ्रा बैनर्जी