गुलाबी फिजाएं  – गीता वाधवानी 

दूर से तेज कदमों से चलकर आते हुए मुख्य वन संरक्षक (सीनियर फॉरेस्ट ऑफिसर) ने कुर्सी पर बैठे हुए एक अन्य कर्मचारी से पूछा-“क्यों रघु वह मैडम आ गई क्या, जो वन मंडलाधिकारी की पोस्ट पर आने वाली थी, क्या नाम है उनका?” 

कर्मचारी रघु-“नमस्ते सर जी, आ गई है आपके कार्यालय में बैठी हैं, आराधना गुप्ता।” 

आराधना गुप्ता, नाम सुनते ही ऑफिसर दो पल के लिए ठिठक कर वहीं रुक गया। यह ऑफिसर थे शशांक। इनकी शख्सियत इतनी आकर्षक थी कि जो देखें देखता ही रह जाए, लंबा कद, सांवला रंग और मुस्कान तो इतनी प्यारी कि जंगल के पशु-पक्षी भी आकर कहे कि सर हमें पिंजरे में बंद करके अपने पास रख लो, हमें आपके साथ ही रहना है। 

हां, तो हम कहां थे। जी, शशांक आराधना गुप्ता का नाम सुनकर ठिठक गया फिर अगले ही पल मन में यह सोचते हुए कि यह वो नहीं हो सकती। उसकी तो शादी हो गई थी। ऐसा सोचते हुए वे अपने ऑफिस की तरफ बढ़ गया। 

ऑफिस में प्रवेश करते ही उसने देखा की कुर्सी पर एक लड़की बैठी है। सामने की तरफ पहुंचते ही वह हैरान रह गया यह देखकर कि यह तो वही आराधना है जो उसके साथ कॉलेज में पढ़ती थी। 

     आज भी हल्के पीले रंग के टॉप और काली जींस में उतनी ही सुंदर और मासूम लग रही थी जितनी कि पहले लगती थी। 

आराधना भी शशांक को देखकर उतनी ही हैरान थी। उसने अपने सीनियर ऑफिसर का नाम पढ़ तो था पर वही शशांक होगा यह उसने सोचा नहीं था। 

पहले तो दोनों नमस्ते, आप कैसे हैं जैसे औपचारिकताएं दिखाते रहे और जब आराधना ने जाने की इजाजत मांगी, तब शशांक ने कहा-“आराधना तुम्हें सोमवार से ड्यूटी ज्वाइन करनी है। कल रविवार है तो क्यों ना तुम कल मेरे घर आ जाओ। यही पास में ही है।” 

आराधना-“अच्छा ठीक है। कल दिन में अपना सामान व्यवस्थित करके शाम को मिलती हूं।” 




आराधना सोच रही थी कि चलो अच्छा है इस बहाने शशांक के परिवार से भी मिल लूंगी। 

उसके जाने के बाद शशांक कॉलेज के पुराने दिनों में खो गया। 

शशांक के व्यक्तित्व और व्यवहार से कॉलेज में बहुत सारी लड़कियां प्रभावित थी लेकिन वह तो सिर्फ आराधना पर जान छिड़कता था। आराधना भी उसे बहुत चाहती थी । तीन सालों का परिचय और प्रेम, पर आराधना के माता-पिता ने इस प्रेम विवाह के लिए साफ मना कर दिया। कारण सिर्फ यही कि हमारे खानदान की लड़कियां लव मैरिज नहीं करती। लोग क्या कहेंगे? 

आराधना ने अपने माता-पिता को मनाने की बहुत कोशिश की और  उनके ना मानने पर माता पिता की आज्ञा को ऊपर रखा और उनके मन मुताबिक पसंद किए हुए लड़के से शादी कर ली। 

शशांक का दिल टूट गया और उसने वह शहर ही छोड़ दिया। तब उसके माता-पिता ने उसे निराशा से निकलने में भरपूर मदद की और उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। शशांक ने समझदारी से काम लेते हुए आगे पढ़ाई की और सीनियर फॉरेस्ट ऑफिसर बनकर शिमला आ गया। 

उधर आराधना घर व्यवस्थित करने के बाद शाम को शशांक के घर आई। घर में उसे अकेला देखकर आराधना ने पूछा-“तुम्हारी पत्नी और बच्चे कहीं नहीं दिख रहे?” 

शशांक मुस्कुराया और बोला-“तुम बैठो तो सही, सब बताता हूं।” 

आराधना के बैठ जाने पर उसने कहा-“मैंने शादी की होती, तब तो तुम्हें पत्नी दिखती।” 

आराधना हैरान होते हुए-“तुम ने शादी नहीं की है अब तक?” 




शशांक-“मेरी छोड़ो, अपनी सुनाओ। तुम इस जॉब में कैसे और तुम्हारे पति देव कहां है, उन्हें अकेला छोड़ कर आई हो क्या?” 

आराधना-“मैंने नहीं, उन्होंने ही मुझे हमेशा के लिए अकेला छोड़ दिया।” 

शशांक-“क्या मतलब” 

आराधना-“शादी के पहले वर्ष में ही एक सड़क दुर्घटना में वह चले गए हमेशा के लिए।” 

शशांक-“और अंकल आंटी?” 

आराधना-“मम्मी तो मुझे विधवा देखकर सदमे में आ गई थी। सब ने उन्हें रुलाने की बहुत कोशिश की परंतु उन्होंने एक भी आंसू नहीं बहाया और 1 हफ्ते के अंदर वे भी चल बसीं। पापा मम्मी के जाने के बाद अकेले हो गए थे। मैंने आगे पढ़ाई की और अब तुम्हारे सामने हूं। पापा खुद को मेरा अपराधी मानने लगे थे और मुझे दूसरी शादी के लिए कहते रहे, पर मैं हिम्मत नहीं कर पाई और मैं उन्हें अकेला भी नहीं छोड़ना चाहती थी। छः महीने पहले वे भी मुझे छोड़ कर चले गए, फिर मेरा मन  वहां न लगा और मैं यहां आ गई। शशांक तुमने शादी क्यों नहीं की?” 

शशांक ने आराधना की आंखों में झांकते हुए कहा-“आराधना यह भी बताना पड़ेगा क्या?” 

उसके बाद कुछ महीनों तक दोनों साथ साथ काम करते रहे और फिर 1 दिन शशांक ने आराधना को लाल गुलाब देते हुए पूछ ही लिया-“आराधना, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” 

आराधना ने सुर्ख गुलाब लेकर कहा-“पर तुम्हारे माता-पिता, मैं एक विधवा हूं शशांक।” 

शशांक-“तुम उनकी चिंता बिल्कुल मत करो। मेरी खुशी में ही उनकी खुशी है। सिर्फ तुम इतना बताओ कि क्या तुम मेरे बच्चों की अम्मा बनोगी?” 

आराधना ने हंसते हुए घूंसा शशांक के पेट में मारा और बोली-“बेशर्म कहीं के” 

और शशांक भी ऐसे नाटक करने लगा जैसे घूंसा बहुत जोर से लगा हो और फिर दोनों हंसते हंसते एक पवित्र आलिंगन में बंध गए। अब शिमला की सफेद बर्फ में प्यार का रंग घुल गया था और सारी फिजाएं गुलाबी हो गई थी। 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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