सविता का हॉल जगमग कर रहा था। आज उसके यहाँ किटी पार्टी का आयोजन था। थीम थी…पिंक या गुलाबी। सभी महिलाएँ एक से बढ़ कर एक गुलाबी साड़ियों में सुसज्जित थी। सविता की सासूमाँ आई हुई थीं अतः निर्णायक की भूमिका का भार उन्हीं पर डाल दिया गया था।
वो किंचित अचकचा कर कहने लगी थीं,”भई, ये बहुत कठिन काम है। तुम्हारी सारी सखियाँ कितनी सुंदर लग रही हैं। कितने चाव से तैयारी करके आई हैं। इतनी सुंदरियों में किसी एक का चुनाव बहुत कठिन चुनौती है।”
पर उनकी एक ना चली थी। वो एक ओर बैठ कर सबके हावभाव और कपड़ों को देख रही थीं। तभी भागती दौड़ती शालिनी हॉल में पहुँची। सब एक साथ उस पर हावी सी हो गई और प्रश्नों की झड़ी सी लगा दी।
“अरे शालू, बड़ी देर से आई।क्या बात हो गई?हमलोग तो सोच रहे थे कि तुम नहीं आ पाओगी।”
“सच दीदी, आज मम्मी जी की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। उन्हें इस हालत में छोड़ कर आने का बिल्कुल मन नहीं था पर उन्होंने ही जिद करके भेज दिया है।”
बोलते हुए वो हाँफ़ने सी लगी थी। थकान भी पूरे चेहरे पर स्पष्ट दिख रही थी पर उसके कोमल कमनीय चेहरे पर वो थकान मिश्रित गुलाबी आभा बहुत मनमोहक लग रही थी। सविता की सासुमां बहुत प्यार से उसे निहारे जा रही थीं। आते ही उसका काम में लग जाना भी उनके दिल को छू गया था। वो उसे पुकारने ही जा रही थी
…तभी वो एक प्लेट में गर्मागर्म पकोड़े लेकर आ गई और खाने का आग्रह करने लगी। वो उसे निहारे जा रहीं थीं और वो झेंप कर दूसरी ओर देखने लगी। हाय ,नारीसुलभ लज्जा और कमनीयता ने उसके चेहरे को और गुलाबी बना दिया था। उसी हाहा हूहू और मस्ती के बीच में निर्णय की घड़ी भी आ गई। मम्मी जी ने बेझिझक शालिनी
के नाम की घोषणा कर दी। वो तो चौंकी ही, बाकी सभी महिलाएं भी बेतरह चौंक गईं। मीरा तो चिढ़ सी गई थी।उसके चेहरे के भाव समझ कर वो बोल पड़ी,”आप सब बहुत सुंदर तरीके से सज कर आई हैं। मीरा तो ऊपर से नीचे तक मैचिंग मैचिंग है। सैंडल और पर्स तक गुलाबी है।
पर्स में रखा रूमाल भी शायद गुलाबी ही होगा पर शालिनी तो ऊपर से नीचे तक प्राकृतिक गुलाबी आभा से सराबोर है। गुलाबी रंग उसके नारीसुलभ सौंदर्य, कमनीयता और लज्जा को सही अर्थों में परिभाषित कर रहा है।”
नीरजा कृष्णा
पटना