नताशा और मिहिर अपनी नई गृहस्थी में प्रसन्न थे।और अब तो नताशा कतई चिंतामुक्त थी।उसे अब कोई भय नहीं था मिहिर की तरफ से,वो अपनी माँ को भी सारा घटनाचक्र बताती रहती है और उनके दिशानिर्देश पर चलते हुये ही मिहिर के साथ अपनी नई और अलग गृहस्थी बनाने में सफल हो पाई थी।
उधर जानकीजी को भी धीरे धीरे धैर्य आ गया जब जगदीश जी ने उन्हे बताया मिहिर के सन्दर्भ में…..पहले पहल तो उन्हे भरोसा ही नहीं हुआ कि उनका मिहिर भी इतना बदल सकता है,जरुर नताशा के डर से वो पिता से ना बोल पाया होगा।पर जगदीश जी ने उन्हे समझाया ऐसा नहीं है।दूसरे की बेटी को क्यों दोष देना जब अपना खुद का बेटा ही आँखे फेर चुका है।
समय बीतता रहा और अब तो माधव का जन्मदिन भी करीब आ चुका था।
नताशा बहुत उत्साहित थी बेटे के पहले जन्मदिन को लेकर।अभी जन्मदिन मनाने का प्लान बन ही रहा था कि नताशा को एक और खुशखबरी मिली,जब उसकी माँ ने उसे फौन पर यह बताया कि उसके बड़े भाई राज की सगाई तय हो गई है।चार दिन बाद उन सबको लड़की वालों के यहाँ चलकर सगाई की रस्म करनी है।उन्होने बताया कि कल वो और नताशा के पापा खुद आकर उसको और मिहिर को न्योता देंगे और सगाई की खरीदारी भी नताशा और मिहिर के साथ मिलकर करेंगे।
नताशा बहुत खुश थी वो चाहती थी कि कब मिहिर आये और कब वो ये खुशखबरी उसे सुनाये।वो अपनी मम्मी पापा को भी अपना नया घर दिखाना चाहती थी।
शाम के पाँच बजे मिहिर घर आया तो वो इतनी खुश थी कि उसने मिहिर के गले में बाँहे डालकर उसका माथा चूम लिया….मिहिर मुस्कराते हुये शरारत से बोला क्या बात है मैडम आज तो बहुत खुश हो।
बात ही खुशी की है,तुम सुनोगे तो तुम भी खुशी से झूम उठोगे…..तुम्हे पता है,कल मम्मी पापा आ रहे हैं।हम दौनो को शादी का न्योता देने,राज भैया की सगाई है चार दिन बाद।कितना मजा आयेगा ना…नताशा की खुशी संभाले ना संभल रही थी।
नताशा ने देखा कि मिहिर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और टावल उठाकर बाथरुम की तरफ चला गया।
मिहिर जबतक फ्रेश होकर आया नताशा ने चाय बना ली और वो दौनो खामोशी से चाय पीने लगे….नताशा हैरान थी कि मिहिर चुप क्यों है,कुछ बोल क्यों नहीं रहा।
आखिरकार जब नताशा से नहीं रहा गया तो उसने मिहिर से पूछ ही लिया कि क्या बात है जबसे मैंने तुम्हे राज भैया की सगाई के बारे में बताया है तुम तो खामोश ही हो गये,क्या तुम्हे भैया की सगाई की खुशी नहीं हुई??या फिर और कोई बात है??
©®मंजरी त्रिपाठी
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