गोलगप्पा – संगीता अग्रवाल

“चलो भई आज तो गोलगप्पे की पार्टी हो जाए नई बहु रिया के आने की ख़ुशी में !” घर के मझले बेटे अमन की शादी के तीसरे दिन सभी मेहमानों के जाने के बाद घर की बड़ी बहु रीना ने कहा।

“नेकी और बुझ बुझ भाभी मैं अभी लाया ” घर के छोटे बेटे दिव्यम् ने कहा।

नई बहु को अपने पीहर की याद आ गई कैसे गोलगप्पे आने पर वो सबसे पहले भाग कर जाती थी… माँ कितना बोलती ये बचपना छोड़ दे पर पिता हमेशा उसका साथ देते…सबसे पहले और सबसे ज्यादा गोलगप्पे वही खा जाती साथ में तीखा पानी और इमली की चटनी। भाई छेड़ता जब ससुराल चली जायेगी तब सब चीज़ों पर मेरा हक होगा।

तभी देवर की आवाज़ आई गोलगप्पे आ गये। जैसे पीहर में जाती ऐसे ही जाने लगी तभी सास की आवाज़ सुनाई दी ,” कहाँ चली किसी ने तमीज नही सिखाई क्या की ससुराल में पहले बड़े खाते हैं “!

” रीना बहु पहले सभी बड़ों को गोलगप्पे दो “

सभी बडों ने गोलगप्पे खाये, फिर जेठ – जेठानी, ननद – देवर आख़िर मे उसका और पति का नंबर आया तब तक प्लेट मे गिनती के 4 गोलगप्पे बचे, चटनी तो खत्म हो चुकी थी।….सबके सामने चुप चाप खा कमरे मे आ गई।

तभी पापा का फोन आया ” तेरा भाई गोलगप्पे लाया, पर किसी का मन नही कर रहा खाने का तू जो नहीं “

” पापा कितना अच्छा संयोग है यहाँ भी गोलगप्पे की पार्टी हुई और मैंने सबसे पहले खाये वो भी खूब सारे ” अच्छा पापा मम्मीजी बुला रही है कोई मिलने आया है आँसू पीती हुई रिया ने कहा और फोन रख दिया।”

फोन रखते ही वो फूट फूट के रो पड़ी और सोचने लगी एक लड़की की जिंदगी एक दम कितना बदल जाती है।

उधर फोन कटने बाद पिता सोचता है चलो मेरी लाडो की जिंदगी मे ज्यादा बदलाव नही आया बहुत अच्छा ससुराल मिला उसे ।

दोस्तों यहाँ कहने को बात सिर्फ गोलगप्पे की है लेकिन ये सच है लड़की की जिंदगी एक दिन में बिल्कुल पलट जाती है शादी के बाद…. एक अल्हड़ लड़की से जिम्मेदार बहु का सफ़र उसे सिर्फ एक दिन मे तय करना पड़ता है… पर ये भी सच है की भगवान ने हमे ये गुण ( या अवगुण) दिया है की हम भी एक दम समझदार हो जाती है और जिन माँ- बाप ने हमारी आँख में आँसू नहीं आने दिये उनसे आँसू छिपाना सीख जाती हैं।

#स्वार्थ

धन्यवाद

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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