घुँघरू – सुनीता वर्मा : Moral Stories in Hindi

घुमावदार रास्तों से घूमते हुए कार जैसे ही बंगले के सामने रुकी,उर्मि झट से

दरवाजा खोलकर बाहर आ खड़ी हुई ,जैसे अब अगर एक और मिनट भी कार में

बैठना पड़ गया तो गश खाकर ही गिर पड़ेगी |हॉर्न की आवाज़ सुन कर बंगले का

चौकीदार गोपाल भागा-भागा बाहर आया –

“नमस्ते साहब ,नमस्ते मेम साहब”..करता मानों वह अदब से दुहरा ही हो गया-

“लाइये साहब, मैं ले चलता हूँ”- कहते हुए समीर के हाथ से उसने अटैची ले ली

–“आइए मेम साहब , अंदर चलिये” |

उर्मि का थकान से बुरा हाल था ,ऊपर से वो चक्कर दार रास्ते …उफ सिर ही घूम

गया | अंदर आकर वह सोफ़े पर धम से बैठ गयी | “गोपाल पानी गरम कर दो तो

मैं नहा ही लूँ ,थोड़ी थकान तो उतरे” |

“मेमसाब ,चाय तैयार है ,पी लीजिये,तब तक पानी भी गरम हो जाएगा” |

गोपाल की पत्नी ने तब तक वहीं मेज पर चाय लगा दी थी |

“तुम गोपाल की पत्नी हो” उर्मि ने प्यार से पूछा तो वह लजा उठी “जी, मेरा नाम

गौरी है”–एक मीठी मुस्कान से उसका चेहरा उद्भासित हो उठा |

“अभी दो दिन हुए, यहाँ आयी है मेम साहब ,अभी तक तो गाँव मे थी” गोपाल ने

मोहक मुस्कान गौरी पर डाली तो वह और भी शर्म से सिकुड़ गयी – |

‘मैं पानी गरम करती हूँ” –कहते हुए वह जल्दी से अंदर चली गयी |

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उर्मि को गौरी अच्छी लगी |चलो, नयी जगह है ,पता नहीं ,इधर –उधर के प्रतिवेशी

कैसे होंगे ,इसके साथ थोड़ा मन लगा रहेगा |

समीर का अभी करीब एक महीना हुआ ,सोलन ट्रांसफर हुआ है |यूं तो वह महीने

भर से यहीं है , बीच में सारा सामान ट्रक से यहाँ भेज कर उर्मि दस बारह दिनों के

लिए मायके चली गयी थी |थोड़े दिन माँ के पास भी रह ले |अब लखनऊ से सीधे

वह यहीं आ गयी थी |सारा सामान अंदर रखवा कर समीर ने उर्मि से कहा-

“घर तो घूम कर देख लो उर्मि ,कैसा है ?”

“देख लूँगी समीर ,अभी मैं बहुत थक गयी हूँ, सोचती हूँ पहले नहा लूँ” |

“चलो ठीक है” , समीर भी वहीं सोफ़े पर लगभग पसर सा गया –“थक तो मैं भी

गया हूँ |

नहा धोकर उर्मि लंबे केशों को उँगलियों से सुलझाती बेडरूम की खिड़की पर आ खड़ी

हुई | बंगला सचमुच बहुत सुंदर और आरामदायक था |चारों तरफ सीढ़ीदार हरे हरे

खेत ,पंक्तिबद्ध औरतों की कतारें और कहीं कहीं छोटे छोटे गोल मटोल बच्चे खेलते

हुए दिख रहे थे | पहाड़ों का सौंदर्य चारों तरफ मानो बिखरा पड़ा था |उसे अमीनाबाद

की गलियों की याद आ गयी |कस्तूरबा विद्यालय के बगल वाली गली में चौथा

मकान |उसने कभी सोचा भी न था कि इतने शोरगुल ,गाड़ियाँ ,यहाँ वहाँ भागते

लोग , ,जद्दोजहद में पसीना बहाती दुनिया से परे भी इतनी सरल,सुंदर जगह होगी

जहां आकर कुछ ही पलों में वह सारी थकान भूल गयी | पूरे चौबीस वर्षों के सुख

–दुख ,समारोह –विदाई, सब तो उसने वहीं देखे थे | एक एक कर चलचित्र की भांति

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बीते वर्षों का जीवन चक्र ही मानो उसकी आँखों के आगे घूम गया |

चार वर्ष की उम्र में लय में थिरकते उसके कदमों से ही पिता ने उसमें भावी

नृत्यांगना की झलक पा ली थी | इधर–उधर से पता करके उन्होंने उसे एक कुशल

गुरु के हाथों शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा लेने हेतु सौंप दिया |अपनी कक्षा में प्रथम

आने के साथ-साथ विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जब तक उसका एक नृत्य

न होता तो मानो कार्यक्रम ही अधूरा रहता| जैसे जैसे वह बड़ी होती गयी,विभिन्न

प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों में जीती गयी ट्राफ़ियों से ड्राइंगरूम का हर कोना

सजता गया| नृत्य को लेकर उसके मन में ढेरों स्वप्न और योजनाएँ थी ,जिन्हें वह

साकार करना चाहती थी यहाँ तक की वह विवाह भी वहीं करना चाहती थी ,जहां

उसके साथ साथ उसके नृत्य को भी सम्मान मिले| तभी बड़ी मामी ने माँ को

समीर का रिश्ता सुझाया|

शाम को बड़ी सी गाड़ी मेँ अपने माता –पिता तथा दोनों बहनों के साथ समीर भी

आए थे |बातचीत के दौरान उसके नृत्य की भी चर्चा चली| उसकी ढेरों ट्रौफ़ियों तथा

सर्टिफिकेट को देखकर भारी सराहना भी मिली और ब्याह भी पक्का हो गया |

ससुराल आकर कुछ दिन तो उर्मि समीर के प्यार की खुमारी तथा सास ससुर के

स्नेह मे डूबी रही |किन्तु जैसे जैसे सारे मेहमान विदा हुए ,दोनों ननदें अपने अपने

घर चली गईं ,समीर की भी छुट्टियाँ खत्म हो चली थीं ,उसने आफिस जाना शुरू

कर दिया ,वैसे वैसे सबकी दिनचर्या भी अपने सामान्य रूप मे वापस आने

लगी|समीर के ऑफिस जाने के बाद घर के अन्य काम निपटा कर उर्मि जल्दी ही

फ्री हो जाती |कभी मैगजीन पढ़ती ,कभी सासू माँ से व्यंजनो की नयी नयी विधियाँ

सीखती ,किन्तु उसे लगता ,जैसे कुछ छूट रहा है |कहाँ नृत्य किए बिना उसका एक

दिन भी नहीं बीतता था औरअभी महीना बीतने को था,उसने घुँघरू छुए भी नहीं थे|

मौका देखकर एक दिन उसने समीर से बात छेड़ी –“समीर मैं दिन मेँ बहुत बोर हो

जाती हूँ” |

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“अच्छा ,तो कुछ पढ़ वढ़ लिया करो ….मैगजीन वगैरह”|

“कितना पढ़ूँ , थक गयी हूँ ,वही घिसी पिटी कहानियाँ और ….”वह उकतायी|

“अरे तो फिल्म वगैरह देख आओ ,सुनो माँ को भी ले जाना |बहुत दिनों से उन्होने

भी कोई मूवी नही देखी है”|

“ओह हो , समीर तुम समझते नही हो ,मूवी देखना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं

लगता” |उर्मि की आवाज़ मेँ खिसियाहट भरती जा रही थी |

“अरे तो क्लब वगैरह ज्वाइन कर लो ,आजकल तो अफसरों की पत्नियाँ क्लब

जाती हैं ,किटी पार्टी करती हैं ,इंज्वोय करती हैं |और तुम भी एक औफ़िसर की

पत्नी हो डियर” समीर ने शरारत से मुस्कुरा कर उसकी ठोड़ी को हिला दिया |बात

आयी गयी हो गयी |उर्मि अपने सास ससुर से कुछ कह नहीं पा रही थी ,और समीर

उसे समझ नहीं पा रहा था |इतने दिनों मेँ किसी ने उसके नृत्य के बारे मेँ कोई बात

नहीं की थी |उर्मि मन ही मन झिझक रही थी |हिम्मत करके एक दिन उसने पुनः

समीर से ही बात छेड़ी- “समीर ,मैं तुमसे कुछ पूछूँ”|

“बोलो न”|

“मैं अपना नृत्य फिर से शुरू करना चाहती हूँ”| उर्मि ने उसकी ओर सीधी नज़रों से

देखा |

“क्या ?नृत्य ,क्यों?” समीर एकाएक हकबका गया |

“क्यों क्या समीर , मैंने नृत्य सीखने में इतने साल दिये हैं |उसे लेकर मेरे मन में

बहुत से सपने हैं |इतने वर्षों की तपस्या क्या यूंही जाने दूँ”उर्मि कुछ तल्ख हो उठी

समीर गंभीर हो गया –“देखो उर्मि ,तुम बहुत अच्छा नृत्य करती हो,बहुत कुछ सीखा

है तुमने ,लेकिन वो सब शादी से पहले तक ठीक था न|अब ये सब करके क्या

करोगी”?

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“यानि मैं नृत्य ही छोड़ दूँ”-उर्मि विस्मित थी | “तुमने मुझे पहले ही क्यों नहीं कहा

कि शादी के बाद मुझे अपना शौक ,अपना हुनर सब छोडना होगा”|

“उर्मि,खाली समय का उपयोग करने के लिए यह सब शौक ठीक है, किन्तु अब

तुम्हारा घर है ,जिम्मेदारियाँ हैं……..और फिर तुमने कब कहा था कि शादी के बाद

भी तुम नृत्य जारी रखोगी ,नहीं तो मैं तभी…..”

बात बहस का रूप लेने लगी थी ,इसलिए आहत होकर उर्मि ने बात वहीं खत्म कर

दी थी |वह अपने घर की शांति बर्बाद नहीं करना चाहती थी |

हाँ ,उसने यह अवश्य समझ लिया था कि इस घर में उसके शौक के लिए कोई

जगह नहीं है |इसलिए उसने अपने मन के दुख को अपने भीतर ही दबा लिया

|गृहस्थी की गाड़ी फिर सामान्य रूप से अपनी पटरी पर आ गयी थी |तभी समीर

का ट्रांसफर यहाँ शिमला हो गया और वह लखनऊ छोड़ कर यहाँ आ गयी |

“मेम साब ,खाना लगा दूँ”–गौरी की मीठी आवाज़ से उर्मि की तंद्रा भंग हो गयी|

“हाँ ,चलो मैं आती हूँ” |

सुबह तड़के ही उर्मि की नींद खुल गयी|वह शाल लपेट कर बाहर लान में आ गयी

|पहाड़ों की सुरमई धूप बहुत भली लग रही थी |गोपाल पौधों को पानी दे रहा था |

“नमस्ते मेमसाब”

“नमस्ते ,तुमने पौधों की अच्छी देखभाल की है ,गोपाल” |

“हाँ ,देखिये न ,बोगनबेलिया कैसा खिल कर झूम रहा है |आपके लिए चाय यहीं

लेकर आऊँ मेमसाब” |

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“हाँ ,ठीक है ,यहीं ले आओ ,देखो साहब भी जाग गए होंगे” |उर्मि ने पानी का पाइप

खुद पकड़ लिया |

दस बजे तक समीर तैयार होकर ऑफिस भी चला गया |गोपाल को बाज़ार से कुछ

सामान भी लाना था ,सो वह भी चला गया |गौरी कहीं दिख नहीं रही थी |उर्मि इधर

–उधर टहलती हुई बंगले के पीछे की ओर निकल गयी |गोपाल का कमरा उधर ही

था |दो कदम आगे बढ़ते ही उसे छम छम की आवाज़ सुनाई दी |जैसे ही वह थोड़ा

आगे और बढ़ी ,आवाज़ और तेज़ होती गयी |उसे लगा ,आवाज़ गोपाल के कमरे से

आ रही है |खिड़की का पर्दा धीरे से हटा कर उसने भीतर झाँका |गौरी पाँव में घुँघरू

बांधे नृत्य कर रही थी |उसके पैरों की लयबद्ध थिरकन से उर्मि अचंभित थी |कुछ

देर उसे देखकर उर्मि वापस अपने कमरे में आ गयी |एक अजीब सी प्रसन्नता से

उसका मन भर आया |कुछ सोचते हुए उसने अपनी अटैची खोली |कपड़ों की तह के

बीच दबे घुँघरू छनक उठे |उसने धीरे से उन्हे सहलाया और मन ही मन कुछ

निश्चय कर मुस्कुरा उठी |थोड़ी देर में गौरी भी खाना बनाने आ गयी |

उर्मि ने उसे प्यार से बुलाया – “सुनो गौरी ,यहाँ आओ”|

“जी मेम साब”

“तुम नृत्य करना जानती हो”? –उर्मि ने उस से सीधे ही पूछ लिया |

“आपको कैसे पता” ?…उर्मि हड़बड़ा कर आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगी |

“थोड़ी देर पहले मैंने चुपके से तुम्हें नृत्य करते देखा है” |

“ओह ,वो तो ऐसे ही ,मेमसाब” –वह सकुचा गयी |

“नहीं ,मुझे सच बताओ गौरी ,तुम्हें नृत्य करना अच्छा लगता है न”|

हाँ ,-उसने शर्माते हुए स्वीकारोक्ति दी |

“कहीं सीखा है तुमने”?

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“नहीं” ,-गौरी ने सिर हिलाया |

कुछ सोचकर गौरी ने फिर पूछा –गोपाल को पता है ?

हाँ ,वो तो कहते हैं कि तुम कही जाकर सीखो ,लेकिन यहाँ कहाँ जाऊँ मैं –गौरी

मायूस होकर बोली |

चलो ठीक है ,मैं तुम्हें सिखाऊँगी |मैंने बहुत साल नृत्य सीखा है ,लेकिन बस शादी

के बाद …उर्मि मन ही मन दुखी हो उठी |

फिर एकाएक उत्साहित होकर बोली –“लेकिन एक शर्त है ,न तुम गोपाल को

बताओगी ,न मैं समीर को ,बोलो मंजूर है”|

हाँ हाँ ,मंजूर है –गौरी खुशी से चहकी |

दूसरे दिन से गौरी की नृत्य कक्षा शुरू हो गयी |समीर के ऑफिस जाते ही गोपाल

को रोज़ कहीं न कहीं काम से भेज दिया जाता और फिर गुरु शिष्य अपनी नृत्य

साधना मे जुट जाते |गौरी को सचमुच नृत्य की अच्छी समझ थी |जल्दी ही शास्त्रीय

नृत्य की बारीकियाँ भी समझने लगी |गौरी को सिखाते सिखाते उर्मि भी मानो सुख

के सागर मे डूब जाती |एक अजीब सी तृप्ति का अनुभव कर रही थी वो |मानो

,बहुत समय से खोई हुई कोई अनमोल वस्तु वापस मिल गयी हो |जिस दिन समीर

घर पर होता ,उस दिन इनकी नृत्य कक्षा की भी छुट्टी हो जाती |धीरे धीरे तीन

महीने बीत गए |

सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए उर्मि ने भीतर का पृष्ठ खोला तो एक

विज्ञापन पर उसकी नज़र अटक गयी |भारतीय नृत्य अकादमी की तरफ से

आयोजित कोई नृत्य प्रतियोगिता थी ,जिसमें पच्चीस वर्ष की आयु तक का कोई भी

व्यक्ति भाग ले सकता था |उर्मि ने गौरी को वहाँ भेजने का तत्काल निर्णय ले

लिया| दोपहर की नृत्य कक्षा में उर्मि ने गौरी को बताया –“गौरी ,बारह तेरह दिन

बाद शिमला में एक नृत्य प्रतियोगिता होने वाली है ,और तुम उसमें भाग ल रही

हो”|

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घबरा कर गौरी ने तुरंत न में सिर हिला दिया –“नहीं मेमसाब ,मैं नहीं कर पाऊँगी”

इतने बड़े मंच पर नृत्य करना उसके लिये आसान नहीं था ,लेकिन उर्मि के लिए

यह सब कुछ भी मुश्किल नही था |ढेरों प्रतियोगिताओं का अनुभव उसमें अनोखा

आत्मविश्वास जगा रहा था |इसलिये उसी समय फॉर्म भरवा कर भिजवा भी दिया

गया |अब नृत्य प्रशिक्षण ज़ोरों पर था |थोड़ा सा भी मौका मिलता दोनों जुट जाते

|उर्मि को अपने कॉलेज के दिन याद आ गये |कोई भी प्रतियोगिता आती थी ,तो वह

इसी तरह पूरे जोश और उत्साह से नृत्य अभ्यास किया करती थी |

आखिर वह खास दिन भी आ ही गया |सुबह चाय पीते हुये उर्मि ने समीर से

अनुरोध किया –“समीर ,मेरी एक मित्र लखनऊ से यहाँ आई है | यहाँ उसका नृत्य

का कार्यक्रम है चलो न ,देखने चलते हैं ,कल फोन पर उसने हम दोनों को ही

आमंत्रित किया है “|

“ठीक है,ठीक है ,कब जाना है ,बोलो -समीर ने मुसकुराते हुए पूछा |

“आज ही ,छह बजे पहुँचना है –उर्मि एकदम उत्साहित हो उठी |

“ठीक है ,मैं समय पर आ जाऊंगा”|समीर के ऑफिस जाते ही गौरी उसके पास

आकर बैठ गयी – “मेमसाब ,एक बात कहूँ “|

“हाँ बोलो गौरी ,नर्वस हो”?

“हाँ ,वो तो हूँ ,लेकिन मैंने न ,गोपाल को सब कुछ बता दिया |मैं छुपा ही नहीं

पायी”गौरी ने अपराधबोध से सिर झुका लिया |

ओह ,यह बात है –गौरी हंस पड़ी “चलो ,कोई बात नहीं ,इस से थोड़ी सरलता ही हो

गयी है”|

“कैसे”?

“मैं सोच रही थी कि तुम्हें वहाँ पहले से कैसे भेजूँ |अब तुम गोपाल के साथ वहाँ

जा सकती हो”|

हाँ ,यह ठीक रहेगा”|

“लेकिन ,गोपाल से कहना ,साहब को पता नहीं चलना चाहिए”|

“ठीक है मेमसाब ,बोल दूँगी उन्हे”|

गौरी आश्वस्त होकर अपनी तैयारी करने चली गयी |

छह बजे समीर के साथ उर्मि जब प्रेक्षागृह पहुंची ,कार्यक्रम शुरू ही होने वाला था|

मुख्य अतिथि भी आ चुके थे |वे दोनों जाकर अपनी सीट पर बैठ गए |पहले दो

–तीन प्रतियोगी आए |उनका कार्यक्रम अच्छा था |ज़ोर ज़ोर से बजती तालियों से

पूरा हाल गूंज रहा था |उनके बाद ही गौरी का नाम पुकारा गया |उसे देखते ही

समीर चौंक गया – अरे ,ये तो अपनी गौरी है न उर्मि ,इसने भी भाग लिया है

,तुमने बताया नहीं ,|

हाँ समीर ,यह तुम्हारे लिए सरप्राइज़ था |मैंने सोचा,तुम्हें बाद मे बताऊँगी |कैसा कर

रही है ?

बहुत बढ़िया ,लगता है ,कहीं सीखती है …ये तो गोपाल ने भी नहीं बताया कभी |

उर्मि कुछ कहती ,कि सारा हाल तालियों से गूंज उठा |सचमुच बहुत शानदार

प्रस्तुति थी लोग तारीफ पर तारीफ करते जा रहे थे तभी मंच पर उद्घोषणा के बीच

गौरी का नाम घोषित हुआ –आज की नृत्य प्रतियोगिता की विजेता हैं –गौरी |गौरी

संकोच से दुहरी होती मंच पर पुरस्कार लेने आयी तो आयोजक ने उसकी तरफ

माईक बढ़ा दिया |,”कुछ बोलिए गौरी जी “|शर्माते हुए गौरी ने सिर्फ इतना कहा

“आज की इस जीत की हकदार तो बस मेरी मेमसाब उर्मि जी हैं ,उन्होने ही बड़ी

लगन से मुझे नृत्य न सिखाया होता तो मैं यहाँ कभी भी न आ पाती”|

“एक और सरप्राइज़ “समीर बस उर्मि की ओर देखे जा रहे थे उनकी आँखों में

क्षमायाचना के साथ बहुत बड़ी सराहना भी साफ झलक रही थी|मन में पश्चाताप

होने की वजह से वो कुछ बोल नही पा रहे थे |पूरे रास्ते बस निःशब्द गाड़ी चलाते

रहे ,किन्तु घर पहुँचते ही उर्मि का हाथ अपने हाथों मे थाम कर समीर बस इतना

ही कह पाये – “उर्मि मैं समझ ही नहीं पाया कि मैं तुम्हारे साथ कितना बड़ा

अन्याय कर रहा हूँ ,इतने वर्षों में तुम भी बस मेरी रुचि का ही ख्याल रखती रही

,एक बार भी तुमने जिद नही की कि -नहीं समीर,मुझे तो अपने हुनर को एक

मुकाम देना ही है |लेकिन बस अब और नहीं, तुम कल से ही अपनी नृत्य कक्षा शुरू

करो और अपनी कला को ऊंचाइयों तक ले जाओ”एक सांस मे सारी बात कह कर

फिर बोले –“और हाँ, मुझे माफ तो करोगी न” |मारे खुशी के उर्मि कुछ बोल ही नहीं

पायी, बस हुलस कर समीर के गले लग गयी |

सुनीता वर्मा 

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