आठ साल की सिया अपनी उम्र से कहीं ज्यादा चंचल और खुशमिजाज बच्ची थी। उसका मन हर उस चीज़ में लगता था, जिसमें रचनात्मकता और कला का कोई भी अंश हो। जब वह घर के आंगन में नाचती, तो उसकी हर हरकत मानो कहती कि यह उसकी जिंदगी का सबसे प्यारा पल है। उसकी मां सीमा को सिया के इस जुनून का अंदाजा था।
एक दिन, सिया के कत्थक सीखने की शुरुआत के लिए सीमा ने उसे घुंघरू दिलाए। सिया की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने खुशी-खुशी अपने घुंघरू ताईजी मोहिनी को दिखाए।
“ताईजी, देखिए मेरे घुंघरू,” सिया ने मासूमियत से कहा। उसकी आंखें खुशी से चमक रही थीं।
मोहिनी, जो उस समय रसोई में काम कर रही थीं, सिया की आवाज सुनकर बाहर आईं। जैसे ही उन्होंने घुंघरू देखे, उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने झट से घुंघरू सिया के हाथ से छीनकर फर्श पर फेंक दिए। घुंघरू फर्श पर बिखर गए, उनकी खनक पूरे घर में गूंज उठी।
“सीमा, ये क्या दिला दिया सिया को?” मोहिनी ने चिल्लाते हुए कहा।
सीमा, जो पास के कमरे में थी, आवाज सुनकर तुरंत बाहर आई। उसने देखा कि सिया की आंखें भर आई थीं, और फर्श पर बिखरे घुंघरू उसकी आंखों से झरते आंसुओं की तरह लग रहे थे।
सीमा ने जल्दी-जल्दी घुंघरू समेटे और मोहिनी से कहा,
“भाभी, सिया का कत्थक केंद्र में एडमिशन करा दिया है। ये घुंघरू उसके डांस क्लास के लिए हैं।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
मोहिनी ने मुंह बिचकाते हुए कहा,
“क्या! लड़की को नचनिया बनाना है? हमारे घर की लड़कियां नाच-गाने नहीं सीखती हैं। सिखाना है तो सिया को खाना बनाना सिखाओ। पराए घर जाना है, काम आएगा।”
सीमा ने गहरी सांस ली। उसे पता था कि यह टकराव होने वाला है। उसने शांत स्वर में कहा,
“भाभी, आप किस ज़माने की बात कर रही हैं? सिया कत्थक सीखेगी। मैं उसकी मां हूं, और मैं बेहतर जानती हूं कि सिया के लिए क्या सही है।”
मोहिनी गुस्से में तमतमा गईं।
“देखो सीमा, मैं बड़ी हूं और तुमसे ज्यादा अनुभव रखती हूं। ये नाच-गाना अच्छे घरों की लड़कियों के लिए नहीं होता। इससे समाज में इज्जत खराब होती है।”
सीमा ने मोहिनी की आंखों में देखा और शांत लेकिन दृढ़ स्वर में बोली,
“भाभी, कत्थक एक नृत्य कला है, जिसे भगवान की आराधना का माध्यम माना जाता है। यह सिर्फ नाच नहीं, हमारी संस्कृति का हिस्सा है। और सिया को उसकी रुचि के अनुसार आगे बढ़ने देना मेरी जिम्मेदारी है। मैं उसे रोकने वाली नहीं।”
इस बातचीत के दौरान, सिया पास ही खड़ी थी। उसने अपने घुंघरू वापस लिए और मोहिनी से कहा,
“ताईजी, क्या भगवान शिव तांडव नृत्य नहीं करते थे? क्या वह भी गलत था?”
मोहिनी सिया के इस सवाल पर एक पल के लिए चुप हो गईं। उन्हें जवाब नहीं सूझा। सीमा ने सिया को पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“बेटा, भगवान शिव का तांडव नृत्य जीवन का प्रतीक है। और तुम्हारा नृत्य भी तुम्हारे जीवन का हिस्सा है। इसे प्यार से निभाओ।”
मोहिनी ने पूरे दिन इस घटना के बारे में सोचा। उन्हें अपनी पुरानी सोच और सीमा की आधुनिक दृष्टि के बीच संघर्ष महसूस हुआ। वह समझती थीं कि दुनिया बदल रही है, लेकिन उनकी खुद की परवरिश और अनुभव उन्हें कुछ भी नया स्वीकारने से रोक रहे थे।
उन्हें याद आया कि कैसे बचपन में उनकी मां ने उन्हें सख्ती से समझाया था कि लड़कियों को “शालीन” रहना चाहिए और ऐसे किसी काम में नहीं पड़ना चाहिए, जो समाज की नजरों में उनकी इज्जत को प्रभावित कर सके।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सीमा ने इस बात को लेकर अपने पति और ससुर जी से भी बात की। उन्होंने सिया के नृत्य के प्रति जुनून और उसकी कला में रुचि के बारे में बताया।
रोहित, सीमा के पति, ने उसकी बात का समर्थन किया।
“सीमा सही कह रही है, मां। अगर सिया को कत्थक पसंद है, तो उसे यह सीखने से रोकना ठीक नहीं। यह उसकी प्रतिभा को निखारने का मौका है।”
ससुर जी ने भी सहमति में सिर हिलाया।
“मोहिनी, अब समय बदल गया है। बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार बढ़ने देना चाहिए। यह हमारे परिवार का सम्मान ही बढ़ाएगा।”
कुछ हफ्तों बाद, सिया ने घर पर पहली बार अपना कत्थक प्रदर्शन किया। उसने पूरी लगन और आत्मविश्वास के साथ नृत्य किया। उसकी हर हरकत में कला और समर्पण झलक रहा था। मोहिनी चुपचाप देख रही थीं।
सिया ने नृत्य समाप्त करते हुए भगवान शिव को प्रणाम किया। कमरे में तालियों की गूंज थी। सिया ने सबसे पहले अपनी ताईजी की ओर देखा और कहा,
“ताईजी, यह नृत्य आपके लिए है।”
मोहिनी की आंखें भर आईं। उन्होंने सिया को गले लगाते हुए कहा,
“बेटा, मुझे माफ कर दो। मैं गलत थी। तुम्हारी यह कला वाकई अद्भुत है। मैं अब तुम्हारे हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं।”
सिया और उसके घुंघरू ने न केवल मोहिनी की सोच बदली, बल्कि परिवार में एक नई ऊर्जा भी भरी। सिया के घुंघरू अब सिर्फ एक साधारण नृत्य का प्रतीक नहीं थे। वे परिवार में बदलाव और एक नई शुरुआत की कहानी बन गए।
मूल रचना : प्रियंका सक्सेना