माता पिता निहाल हो रहे थे। सोच रहे थे, भले हमने कितना भी संघर्ष किया जीने के लिए, रोटी के लिए, घरौंदे को सजाने के लिए, हमारे बच्चों को, टीना और मोनेश को हमने सबकुछ दिया है। आज छत की चिंता है, न रोजी रोटी की। अमित जी का बहुत बडा व्यापार है। अनीता जी ने बडे प्यार से अपना छोटासा घर सजाया है।
लेकिन मोनेश को लगता है, माता पिता बहुत रोक-टोक करते है। हर बात में कुछ न कुछ खामी निकालते है। कभी उसके मन की करते ही नहीं।
टीना आधुनिकता की चक्काचौंध में माता पिता का अनादर करने लगी थी। जो चाहा, आजतक पाया था। अति लाड ने उसे अपने ही मन की करने की आदत लग गयी। किसी के साथ सहयोग करना, संयमित व्यवहार करना, उसे पसंद नहीं था। कोई मेहमान आये, नाक भौं सिकुड़ने लगती। अमित जी और अनीता जी जितने मिलनसार थे, बच्चे अकेले रहना पसंद करते है।
अपने-अपने मित्र उन्हें अच्छे लगते। धन वैभव की विपुलता कभी-कभी हमारे लिए मुसीबत बन जाती है।
परेशान थे अमित और अनीता।
सबकुछ होते हुए भी जीवन में खालीपन भर गया था। सजा-सजाया घर बिखरने लगा था।
मोनेश को पैसे चाहिए थे, घुमने जाने के लिए। अमित ने मना किया तो तमतमाते हुआ अनीता जी के पास गया,
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” मां, बाबुजी से कह दो, पैसे देते समय इतनी ना नुकुर न करे। ऐसे भी, आपने हमारे लिए किया ही क्या है? न कभी विदेश घुमने ले गये, न कभी अच्छी होटल में खाना खिलाया। न चैन-मौज करवायी।
पढाई करो, काम करो।”
” मेरे मित्र, कभी दुबई, कभी स्विटजरलैंड घुमने जाते है। शर्म आती हमें, कहते हम गांव गये थे।”
” और आप, आपका ये पहनावा…गंवार सा…”
अनीता जी भौंचक सी देखती रह गयी। अपनी औलाद से ऐसी आशा नहीं थी।
अमित जी अपने व्यापार में व्यस्त रहते।
दिनभर सबके साथ लगे रहते। हिसाब के पक्के थे। मोनेश से बात करना छोड दिया था उन्होंने। अनीता जानती थी, बच्चे बहकावे में आये हैं। लगाम कसनी होगी।
टीना और मोनेश को गिनकर पैसे दिए और बता दिया,
” ये इस महिने का पाॅकेट मनी। और नहीं मिलेगा।”
” तोल-मोल कर दोस्ती करो।”
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” मेहनत का पैसा है। लाटरी नहीं लगी है।”
“खुद कमाओ, तब जानोगे।”
जैसे ही पैसे की खनक कम हुई, मतलबी दोस्त उडन छू होने लगे। धीरे-धीरे बुरी संगत से दूर होने लगे बच्चे।
अनीता जी ने अपने धार्मिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होना थोडा कम कर दिया था। उनका पुरा ध्यान दोनोंपर रहता।
धीरे-धीरे दोनों में सुधार हो रहा था। अब मोनेश दुकान चला जाता। बाबुजी से काम सिखने लगा था।
टीना भी अपनी मां के साथ जीवन के गुर सिखने लगी।
समय रहते अनीता जी ने पैसों की कदर करना सीखा दिया था।
घर बिखरने से बच गया था।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र