घरौंदा – ऋतु अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “रमित!आज फिर तुम्हें देर हो गई। देखो! जरा साढ़े ग्यारह बज रहे हैं।” अनुभा ने दरवाजा खोलते हुए कहा

        “हम्म।” कहकर रमित बेडरूम की ओर जाने लगा।

        “आप चेंज कर लो, मैं खाना लगा रही हूँ।” रसोई घर की लाइट्स ऑन करते हुए अनुभा बोली।

      “नहीं, रहने दो! खाना खा कर आया हूँ।” बेटियों के शयनकक्ष का दरवाजा खोल कर उन्हें सोता देख रमित  ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।

     अनुभा और रमित की सात वर्षीय जुड़वां बेटियाँ हैं। रमित एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर है। अनुभा अपना खुद का बुटीक चलाती है। कुल मिलाकर संतुलित,सुखी परिवार है।

         रसोईघर समेटकर अनुभा कमरे में आई। तब तक रमित सो चुका था पर अनुभा की आँखों की नींद गायब थी। आज से तीन वर्ष पहले तक रमित एक बहुत ही अनुशासित व्यक्ति था। बैंक की छुट्टी पाँच बजे हो जाती थी तो रमित छह बजे तक घर आ जाता था। शाम का सारा समय रमित, अनुभा और नायरा, मायरा हँसते खिलखिलाते बिताते थे पर धीरे-धीरे रमित के घर आने का समय बदलने लगा। छह बजे घर आने वाला रमित कभी दस कभी ग्यारह तो कभी बारह बजे घर आने लगा। रात का खाना भी अक्सर बाहर ही खा कर आता था। 

       अनुभा अमित से कुछ पूछती तो वह बात को टाल जाता। कभी चिल्लाकर तो कभी हँसकर अनुभा को चुप करा देता। पहले तो अनुभा ने इसे रमित की व्यस्तता और जिम्मेदारी समझा पर पिछली दीवाली पर बैंक की तरफ से दी जाने वाली पार्टी में सभी कर्मचारियों को अपने जीवन साथी के साथ आने का निमंत्रण मिला था। वही उड़ती उड़ती सी खबर अनुभा के कानों में पड़ी कि रमित का अपनी ही एक क्लाइंट के साथ पिछले चार सालों से अफेयर चल रहा है। पहले तो अनुभा को विश्वास नहीं हुआ पर अमित के बदले व्यवहार ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया।

          एक सख्त निर्णय लेकर अनुभा गहरी नींद सो गई। सुबह मायरा, नायरा के स्कूल और रमित के दफ्तर जाने के बाद अनुभा रमित की उसी क्लाइंट के घर पहुँची। अपना परिचय देते हुए अनुभा ने अंदर आने की अनुमति माँगी।

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       “देखिए,अनुभा जी! मैं नहीं चाहती कि यहाँ कोई भी बखेड़ा हो। आपको जो भी बात करनी है,आप रमित से कीजिए।” स्वाति ने अनुभा को बिठाते हुए कहा।

        “जी, स्वातिजी!  मैं रमित से भी बात करूँगी पर पहले आपके विचार तो जान लूँ।” अनुभा ने स्वाति की आँखों में आँखें डाल कर कहा। 

         “अनुभाजी, मैं और रमित आज से पाँच वर्ष पहले एक आधिकारिक कार्य की वजह से एक दूसरे से मिले थे। लगातार होने वाली मुलाकातों के दौरान हम एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए। मुझे नहीं पता था कि रमित विवाहित हैं। समय बीतने के साथ हमें यह महसूस हुआ कि हम एक दूसरे के बिना नहीं रह पाएँगे। मैंने रमित पर शादी का दबाव बनाया तब उन्होंने अपने विवाहित होने की बात मुझे बताई। अनुभाजी, मैं प्रेम में इतनी विवश हो गई थी कि मैंने रमित को उनके विवाहित होने के बाद भी सहर्ष अपना लिया। अब हमारा तीन साल का एक बेटा है- प्रथम। जो सच था, मैंने वह आपको बता दिया। मैं रमित को हर रूप में अपनाए रखूँगी। बाकी मैं आप पर छोड़ती हूँ।”स्वाति की आँखों में आँसू थे।

       अनुभा चुपचाप घर लौट आई।मन में उथल-पुथल, निर्णय उसे ही लेना था। स्वाति ने रमित को सब बता दिया था। आज रमित जल्दी ही घर लौट आया। वह सहज रहने की कोशिश कर रहा था। अनुभा शांत थी। उस चुप्पी को तोड़ने की कोशिश में रमित ने अनुभा के सामने बाहर डिनर का प्रस्ताव रखा।

      “रमित! आज का डिनर तुम्हारी प्राथमिकता पर निर्भर करता है। जाहिर है, तुम्हें पता है कि मैं सच जान चुकी हूँ। फैसला तुम्हें लेना है, स्वाति और प्रथम या मैं और नायरा, मायरा।”अनुभा ने स्पष्ट शब्दों में दो टूक बात कही।

       “अनुभा तुम जानती हो कि मैं तुम्हें और नायरा, मायरा को भी नहीं छोड़ सकता और ना ही स्वाति और प्रथम के बिना रह सकता हूँ । मुझे अपनी जिंदगी में तुम दोनों चाहिए।” रमित की जुबान लड़खड़ा रही थी।

      “तो फिर तय रहा। तुम अपनी ज़िंदगी में मुझे भी चाहते हो और स्वाति को भी और स्वाति भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती पर रमित मैं तुम्हारे बिना रह सकती हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी कमजोरी के कारण दो घरौंदे तिनका तिनका बिखर जाए। लोग मुझे बेचारी और स्वाति को दूसरी औरत कहें। मेरी बच्चियों को जीवन भर लोगों की  हिकारत सहनी पड़े और प्रथम को नाजायज औलाद का ताना। स्वाति की नजरों में मैंने तुम्हें खोने की बेबसी और डर देखा है पर मैं इतनी कमजोर नहीं कि जिस घरौंदे को मैंने पल पल बुना है उसे यूँ ही बिखर जाने दूँ। रमित, तुम इस घर में केवल आज की रात ही रह सकते हो। कल तुम्हें यहाँ से हमेशा के लिए जाना होगा। तलाक के कागज तुम तक जल्द ही  पहुँच जाएँगे और हाँ, तुम्हें अपने बच्चों से मिलने से मैं रोकूंगी नहीं पर उनकी सारी जिम्मेदारी अब मेरी है। आज से मेरे घरौंदे की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है।” कहकर अनुभा नायरा और मायरा के कमरे में चली गई।

         रमित किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा उन पलों को याद कर रो रहा था जब उसने स्वाति और अनुभा दोनों को धोखे में रखकर अपने ही घरौंदे की बुनियाद कमजोर कर दी थी। 

 

मौलिक सृजन 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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