hindi stories with moral : दीनानाथ जी की पत्नी को गुजरे हुए कुछ समय ही क्या बीता ,उनके घर में रिश्तेदारों ने आना ही छोड़ दिया। कहते क्या करेंगे उनके यहां जाकर खुद ही जाकर खाना बनाओ और काम करो,दीनानाथ जी के घर में एक बेटा ही था। जिसके पैर घर पर तो रहते नहीं थे।घर में जब दीनानाथ जी आते तो
तब ही घर का ताला खुलता, नहीं तो पहले उनके यहां आने जाने वाले की कतार ही लगी रहती थी। जब से उनकी पत्नी सावित्री जी क्या गुजरी घर एक होटल जैसा हो गया। अब दीनानाथ जी को घर में सूनापन ही लगता उनकी दिनचर्या भी ऐसी हो गई थी कि रोज सोने घर आ जाओ, सुबह हो तो तैयार हो कर दुकान चले जाओ ।खैर दिन ,महीने, साल बीत रहे थे••••
दीनानाथ जी के घर एक दिन दीवाली की दूज पर फोन आया ,अरे भैया आप ही टीका लगवा जाओ तब उनकी आंखों में आंसू भर आए बोले -” गीता दीदी और सीता दीदी जब से सावित्री न रही तो तुम लोगों ने आना ही छोड़ दिया।”
उनकी बहन गीता दीदी बोली -“भैया भाभी के जाने से घर की जैसे रौनक ही खो गयी है,अब तो सूने घर में आने का मन ही नहीं करता, क्या करें अब तो राजू की शादी कर दो, घर भरा पूरा लगेगा।हम लोग खूब आया करेंगे,तब दीनानाथ जी ने कहा -” दीदी राजू जवान तो हो गया। लेकिन जिम्मेदारी से कमाने लगे तब तो उसकी शादी करु। ऐसा कर बहन तू ही दो चार दिन के लिए हमारे घर आ जा •••••
घर थोड़ा भरा- भरा लगे और तू राजू को समझाना कि ज़िम्मेदारी से मेरे साथ दुकान में बैठे।बस उसे तो पैसा तो पकड़ना ही न आया।”
फिर कुछ दिनों बाद गीता बुआ आती है। दोनों का रहन सहन देखती तो दंग रह जाती। कैसे भैया पहले खुश रहते थे।पर राजू का रंग ढंग देखकर कहती-” भैया ये तो राजू घर को घर समझता ही नहीं।हम भी आए तो इसे मतलब ही नहीं,उसे कुछ लाने को कहो।तो कहता बुआ इतना खाना बनाने में काहे परेशान हो रही हो।
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बाहर का कुछ मंगा कर खाने का आर्डर कर दे। उसने सोचा बुआ अभी आई है तो शाम तक चली जाएंगी।पर गीता दीदी ने भैया से पूछा -” भैया राजू करता क्या है , आखिर हम लड़की देखें तो समझ भी आए कि क्या कर रहा है। आखिर हमें लड़की वाले को बताना भी पड़ेगा।”
तब दीनानाथ जी ने कहा -” अरे बहन तेरी भाभी ने ही इसे इतना बिगाड़ दिया कि ये साहबजादे हवा में उड़ते हैं। इनसे कपड़े की दुकान पर बैठने कहो तो कहते इतना में मेरा क्या होगा , मैं तो कुछ बड़ा करुंगा।बस दलाली करते रहते हैं। यहां का पैसा वहां , और वहां का पैसा यहां ,पर कमाई कुछ नहीं दिखती,
बताओ दीदी हम तो राजू से परेशान हो चुके हैं।जब कोई प्रापर्टी खरीदनी होती तो वो गल्ले से पैसा निकाल लेता ,उसे कुछ बोलो तो कहता ये पैसा आखिर मेरे काम ही तो आना है।ऐसे कह कर न जाने कितने बार पैसा ले गया।जब पैसा मांगों कि दुकान में माल भरना है तब टालमटोल कर कहता अगले सप्ताह पार्टी से पैसा मिलेगा।
अगर मैं न रहूं तो इसका क्या होगा मुझे इसी की चिंता लगी रहती है।
घर में टिफिन लगा रखा है ताकि परेशानी न हो। “
तब गीता दीदी कहती- सही कह रहे हो भैया, राजू को सही रास्ते में लाना ही होगा,मैं एक रास्ता बताती हूं।तुम बिल्कुल वैसा ही करना। आखिर क्या बताने वाली दीदी!!
तब उन्होंने कहा- भैया ऐसा करो भाभी की मौसेरी बहन कम्मो है,आप उससे शादी करने का नाटक करो , राजू को इसका असर होगा।उसकी बेटी की अपने शहर में नौकरी लगी है।उसकी मदद भी हो जाएगी।बेचारी बड़ी मुश्किल से सब संभाल रही हैं,एक दिन फोन पर बता रही थी कि वह बहुत परेशान हैं उसकी बेटी की सर्विस लगी है, उसके यहां रहने का इंतजाम करना है,इस शहर में जब तक कोई रहने की व्यवस्था नहीं कर लेती ,तब तक उसे अपने घर में यहां रोक लो।उसे भी अपना प्लान बता दूं ,बेचारी वो बहुत परेशानी में है,जब से उसके पति गुजरे उसे ही जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। फिर वे गीता दीदी को हां कह देते हैं। उन्हें अपने बेटे को सही रास्ते में लाना जो है।
इस तरह गीता दीदी के जाने के बाद वे अपनी साली कम्मो से फोन में बात करते है,वो मान जाती है जीजा जी आपकी जिंदगी में खुशहाली आ जाए ,इससे अच्छा क्या होगा, और वह प्लान का हिस्सा बन जाती है। उन्हें सब याद आ रहा है कि पहली बार साइकिल की जिद कैसे राजू ने पूरी कराई थी, दो दिन तक खाना नहीं खाया था, फिर उनकी पत्नी सावित्री का दिल पसीज गया था, क्या करती आखिर मां जो थी, तब उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी न थी। इसी कारण से आज राजू इतना बिगड़ गया है!आज यही सब सोचते हुए उनकी आंखों में आंसू भर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि मेरे बाद राजू कैसे संभलेगा??
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दो दिन बाद कम्मो अपनी बेटी और सामान के साथ उस शहर में पहुंच जाती है।वो अपने घर आने पर अपनेपन से बात करते हैं।तब वहां राजू उन्हें देखकर पूछता- ” बाबा ये कौन है, इन्हें शायद मैं नहीं जानता। ” तब दीनानाथ जी कहते- ” तेरी मां की मौसेरी बहन कम्मो है, और उनकी बिटिया रेनू है ,ये कुछ दिन हमारे साथ रहेगी।
और वे दोनों रुक जाती है, घर का काम कम्मो जी जिम्मेदारी से करती ,जब भी अंकल जी रेनू कहती तो दीनानाथ जी कहते तू मेरी बिटिया जैसी है,तू मुझे बाबा कहा कर ।
इस तरह वह बाबा कहने लगी। उन्हें घर में रौनक लगने लगी।घर में जैसे खुशियों ने कदम रख दिए हो। फिर अगले दिन दीनानाथ जी तबियत खराब होने का नाटक करते और कम्मो जी सेवा करने का नाटक राजू के सामने करती।
जब भी राजू जब भी घर में होता,तो वे खांसने का नाटक वो पानी देने लगती, चादर बगैरह ठीक करने का नाटक करती।
इस तरह कम्मो आंटी को करते देख उसे अपनी मां की याद आती है उसे एहसास होता है मां ने दुनिया छोड़ते समय कहा कि बाबा का ध्यान रखना।पर मैं तो लापरवाह हो गया हूं।बाहर सेआई आंटी जी मेरे बाबा का ख्याल रख रही है। उसने आंटी से कहा – “बाबा के पास मैं हूं।आप मेरी मां की जगह नहीं ले सकती है। और वह बाबा के करीब बैठ गया।इस तरह उसे एहसास हो रहा था मेरी मां भी ऐसे ही बाबा की देखभाल करती थी।
उसने कहा बाबा मैं हूं न••••उसके अंदर का एहसास जाग रहा था।
फिर भी दीनानाथ जी के ठीक होने तक उनके यहां से कम्मो नहीं गई।अब वो भी कम्मो और रेनू के प्रति अपना पन दिखाने लगे। और राजू दुकान संभालने लगा था। उसे हमेशा बुरा लगता मेरे बाबा कम्मो आंटी के लिए और रेनू के लिए इतना क्यों कर रहे हैं।वो कम्मो के साथ सुबह की सैर के लिए जाते , मंदिर भी उन्हीं के साथ जाते,ये सब राजू को बिल्कुल अच्छा न लगता ,बाबा का पराये लोगों के साथ इतना घोलमेल क्यों ??
तब बाबा से उसने पूछ ही लिया तब उसके बाबा ने कहा-” जब से तेरी मां गुजरी तब से अकेला सा हो गया था।तू होकर भी न के बराबर रहा है।”
फिर एक दिन वह देखता है कम्मो आंटी और बाबा गले में माला पहने हुए आ रहे हैं।तब वो हैरान होकर पूछता -” बाबा इस उम्र में ये सब शोभा देता है क्या! लोग क्या कहेंगे??
तब दीनानाथ जीने कहा -” ये घर तो खाने को दौड़ता था, कम्मो के आने से घर, घर लगने लगा है।ये मेरी पत्नी है अब तो इन्हें जानें के लिए नहीं कह सकता है।”
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राजू ने कहा -” बाबा आपको अपने बेटे की शादी करनी चाहिए थी। और आप तो खुद ही शादी करके आ गये। बाबा ये क्या किया। मैं गीता बुआ को फोन लगाता हूं।
तब वो कहते -तू तो शादी कर नहीं रहा था।कोई तो चाहिए घर संवारने के लिए।तब राजू अंदर से सोचने लगा। क्या ये सही है। और शाम को आफिस से रेनू और बुआ जी भी आ जाती है, तब वो बताता है,मेरी शादी की चिंता करनी थी बाबा को ,जबकि खुद ही शादी करके आ गये है।गीता बुआ ने कहा-” बेटा तू पहले शादी के लायक जिम्मेदार तो हो जाए। दुकान संभाल, बाबा का सहारा बन तब तो तेरी शादी करे।”तब वह कुछ न बोल पाया।खैर•••
इस तरह राजू कुछ न कर पाया। दीनानाथ जी राजू को दिखाने के लिए कभी रेनू के लिए वो कपड़े लाते,कभी कम्मो को साड़ी लाकर देते।
अब तो राजू को लगने लगा कि कहीं बाबा घर कम्मो आंटीजी के नाम न कर दे।वह दुकान में दिन रात ध्यान देने लगा। हिसाब-किताब का ध्यान रखने लगा।अब कम्मो जी को और दीनानाथ जी को समझ आ गया ।राजू सुधर गया है।अब नाटक से पर्दा उठाने का समय आ गया है। दोनों ने फैसला लिया कि क्यों न हम रेनू और राजू की शादी कर दे।
आज राजू और रेनू को लौटने पर कहा-” बेटा हम तुम लोगों से कुछ बात करना चाहते हैं।रेनू बिटिया तुम और राजू क्यों न शादी कर लो।हम लोगों ने गीता बुआ के कहने पर ये शादी का नाटक किया ताकि राजू बेटा तुम जिम्मेदार हो जाओ, और तुम्हारी शादी करके घर में बहू ले आए। इसलिए ये सब नाटक करना पड़ा।
तब तो हैरानी से वह उनकी ओर देखता रह गया।तब कम्मो ने अपनी बिटिया को समझाया बिटिया राजू से अच्छा कोई और न मिलेगा। फिर दोनों की रजामंदी से उनकी दीनानाथ जी,कम्मो जी शादी कर देते हैं।घर में चहल-पहल हो जाती है।जो घर सूनापन रहता था, आज उसी घर में खुश की दीपक जलने लगते हैं। और घर में रौनक आ जाती है।इस तरह एक घर में औरत के आने से घर खुशियों से भर जाता है।
दोस्तों -जिस घर में औरत न हो तो घर में खालीपन लगने लगता है,न ही कोई त्यौहार में रौनक रहती है।न ही घर में पायल और चुड़ियों की खनक होती है।न ही घर हंसी ठहाकों से गूंजता है।इस तरह घर को घर बनाने में औरत ही महत्वपूर्ण होती है।
स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना
अमिता कुचया
faltuu ki khani maa ki bhen ki beti to uski bhen hui nh kuch v likh dete h