घर की इज्जत – डा.शुभ्रा वार्ष्णेय : Moral Stories in Hindi

रामपुर गांव में सुबोध गुप्ता का नाम आदर से लिया जाता था। वे गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे और अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए मशहूर थे। सुबोध का मानना था कि शिक्षा ही समाज को प्रगति की ओर ले जा सकती है। उनकी पत्नी शीलू एक सुलझी हुई घरेलू महिला थीं, जो पूरे परिवार को सहेजकर रखती थीं। सुबोध और शीलू के दो बच्चे थे—बड़ी बेटी राधा और छोटा बेटा करण।

राधा पढ़ाई में बहुत होशियार थी। वह अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल आती और स्कूल के हर शिक्षक की प्रिय थी। वह गांव की लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकी थी। लेकिन रामपुर के कई लोग, खासकर बड़े-बूढ़े, लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ थे। वे अक्सर तंज कसते, “गुप्ता जी, बेटी को इतना पढ़ा-लिखा रहे हो। संभाल नहीं पाए तो क्या होगा? आखिर तो उसे पराया धन बनकर दूसरे घर जाना है।”

सुबोध इन बातों पर ध्यान नहीं देते थे। वे हमेशा मुस्कुराकर जवाब देते, “बेटी को पढ़ाना सबसे बड़ी पूंजी है। मेरी राधा मेरे घर की इज्ज़त है, और मैं उसकी खुशियों पर कोई समझौता नहीं कर सकता।”

एक दिन राधा स्कूल से लौटते वक्त चुपचाप सी दिखी। उसने न तो अपने पापा के पास जाकर उनके साथ बात की और न ही अपनी मां से। शीलू ने गौर किया कि राधा के चेहरे पर उदासी थी।

“क्या हुआ, राधा? कोई बात है?” शीलू ने पूछा।

“कुछ नहीं, मां,” राधा ने कहा और अपने कमरे में चली गई।

शीलू को यह बात खटकी। उन्होंने सुबोध से इसका ज़िक्र किया।

“लगता है, कोई परेशानी है। राधा हमेशा इतनी हंसमुख रहती है, आज कुछ तो हुआ है,” शीलू ने चिंतित होकर कहा।

सुबोध ने कहा, “मैं उससे बात करूंगा। वह हमारी बेटी है, अपने दिल की बात मुझसे ज़रूर कहेगी।”

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अगले दिन, जब राधा स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी, सुबोध ने उसे रोककर पूछा, “बेटा, क्या बात है? कल तुम उदास लग रही थीं।”

राधा ने झिझकते हुए कहा, “पापा, रास्ते में कुछ लड़के मुझे परेशान कर रहे थे। वे मेरा मजाक उड़ाते हैं और तरह-तरह की फालतू बातें करते हैं।”

यह सुनकर सुबोध के चेहरे पर गुस्से की लकीरें आ गईं, लेकिन उन्होंने खुद को शांत रखा।

“तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है, राधा। मैं इस बात का हल निकालूंगा। तुम बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो,” सुबोध ने कहा।

सुबोध ने उसी दिन गांव के सरपंच और बुजुर्गों को बुलाकर पंचायत बुलाई। पंचायत में गांव के कई लोग जमा हुए। सुबोध ने अपनी बात रखी, “हम सब अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजते हैं, लेकिन अगर रास्ते में उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी, तो क्या फायदा? हमारी बेटियां हमारी इज्ज़त हैं। अगर वे डरेंगी, तो हम अपनी इज्ज़त कैसे बचा पाएंगे?”

सरपंच ने हल्के अंदाज में जवाब दिया, “गुप्ता जी, लड़कों की शरारत को इतनी बड़ी बात मत बनाइए। ये तो उनकी आदत है।”

सुबोध ने दृढ़ता से कहा, “सरपंच जी, यही आदतें बाद में बड़ा रूप ले लेती हैं। अगर आज हम लड़कियों को मजबूत नहीं बनाएंगे और गलत को सही कहकर चुप रहेंगे, तो कल हमारे समाज की नींव कमजोर हो जाएगी।”

सरपंच और पंचायत के बाकी लोग सुबोध की बात से सहमत हो गए। उन्होंने फैसला किया कि गांव में लड़कियों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाएंगे।

राधा ने अपने पिता की दृढ़ता और हिम्मत को देखा। उसने ठान लिया कि वह खुद को कमजोर नहीं पड़ने देगी। राधा ने कराटे की क्लास जॉइन की और अपनी सहेलियों को भी साथ लाने के लिए प्रेरित किया।

“अगर हमें अपनी इज्ज़त की रक्षा करनी है, तो हमें खुद को मजबूत बनाना होगा,” राधा ने कहा।

राधा और उसकी सहेलियां रोजाना कराटे की प्रैक्टिस करने लगीं। धीरे-धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी। गांव की अन्य लड़कियां भी उनसे प्रेरणा लेने लगीं।

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कुछ दिन बाद वही लड़के फिर राधा को परेशान करने की कोशिश करने लगे। लेकिन इस बार राधा तैयार थी। उसने निडर होकर कहा, “अगर तुम समझते हो कि तुम मुझे कमजोर कर सकते हो, तो गलतफहमी में हो।”

राधा ने अपनी कराटे की ट्रेनिंग का इस्तेमाल किया और लड़कों को ऐसा सबक सिखाया कि वे डरकर भाग गए। वहां खड़े लोग हैरान थे।

जब यह बात पूरे गांव में फैली, तो राधा की तारीफ होने लगी। लड़कियों ने उसे अपना आदर्श मान लिया। अब लोग सुबोध गुप्ता की सोच को सराहने लगे।

इस घटना के बाद गांव में बदलाव की लहर चल पड़ी। लड़कियों को लेकर लोगों की सोच बदलने लगी। कई माता-पिता अपनी बेटियों को पढ़ाई और आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दिलाने लगे। सरपंच ने खुद सुबोध के घर आकर कहा, “गुप्ता जी, आपने हमें सिखाया कि बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं। हम गलत थे, और आपने हमें सही राह दिखाई।”

राधा ने अपनी पढ़ाई पूरी की और उसे एक बड़े शहर में नौकरी मिल गई। उसने अपने गांव के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र खोला, जहां लड़कियों को आत्मरक्षा, शिक्षा और आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी जाने लगी।

एक दिन राधा के ऑफिस से एक सम्मान पत्र आया, जिसमें लिखा था कि वह “सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी” का खिताब जीती है। गांव में इस खबर पर जश्न मनाया गया।

रात में जब पूरा परिवार साथ बैठा, तो सुबोध ने कहा, “तुम्हारी मेहनत और साहस ने साबित कर दिया कि बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं। तुमने न सिर्फ हमारे घर, बल्कि पूरे गांव का मान बढ़ाया है।”

शीलू ने मुस्कुराते हुए कहा, “हमने सही कहा था कि एक शिक्षित और मजबूत लड़की पूरे समाज की तस्वीर बदल सकती है।”

राधा ने अपनी मां-पिता का हाथ थामते हुए कहा, “मां-पापा, यह सब आपकी परवरिश और विश्वास का नतीजा है। आपने मुझे कभी कमजोर महसूस नहीं होने दिया। यही हर लड़की का अधिकार है।”

राधा ने यह साबित कर दिया कि लड़कियां केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं होतीं। अगर उन्हें सही परवरिश और समर्थन मिले, तो वे पूरे समाज को रोशन कर सकती हैं। सुबोध और शीलू के लिए राधा सिर्फ उनकी बेटी नहीं, बल्कि उनके सपनों और उनके विश्वास की जीत थी।

इस तरह, राधा ने यह संदेश दिया कि घर की इज्ज़त बेटियों में होती है, और बेटियां जब आगे बढ़ती हैं, तो उनके साथ पूरा समाज प्रगति करता है।

समाप्त

प्रस्तुतकर्ता

डा.शुभ्रा वार्ष्णेय

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