घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी सास के बिना फीका होता है – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

वंदना न्यू इंडिया इंन्श्यूरेंस कंपनी में नौकरी करती थी । माता-पिता ने ही उसके लिए हर्षवर्धन के रिश्ते को पसंद किया था । उसने उनकी बात मानकर उससे शादी के लिए तैयार हो गई थी।

हर्षवर्धन का एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन थी उन दोनों की शादी पिताजी के गुजरने के पहले ही हो गया था । बड़ा भाई श्रीकांत की पत्नी उनकी बुआ की लड़की श्रेया ही थी उनके दो बच्चे हैं । वह पढ़ी लिखी थी परंतु नौकरी नहीं करना चाहती है उसे किटी पार्टी में शामिल होना सहेलियों के संग गप्पें मारते हुए समय बिताना अच्छा लगता था ।

घर के काम भी वह अपनी सास सावित्री जी से करा लेती थी । जब उनके बच्चे हुए तो उन्हें भी सावित्री के पास ही भेज दिया करती थी । लोगों के सामने कहती थी कि मेरी सास मेरी माँ के समान है वे मुझसे काम ही नहीं कराती हैं ।

वंदना ने शादी के बाद देखा कि श्रेया होशियारी से मीठी मीठी बातें करते हुए सास को नौकरानी बनाकर रखी हुई है । हर्षवर्धन हमेशा उससे कहते थे कि देखो मेरी भाभी कितनी अच्छी है प्यार से घर को बाँध कर रखा है तुम्हें भी उनसे सीख लेनी चाहिए ।

सास को पेंशन मिलती थी उसे जेठ महीने के पहली तारीख़ को ही ले लेते थे सास को तो यह भी नहीं मालूम है कि उन्हें पेंशन कितनी आती है । कभी वे कुछ पूछना भी चाहें तो वे उनसे कह देते थे कि तुम्हें कुछ नहीं मालूम है ।

हर्षवर्धन बीस हज़ार रुपये घर खर्च के लिए देते थे ।

हमारी शादी होते ही हर्षवर्धन ने मुझसे कहा कि वंदना भाभी को बीस हज़ार देने हैं चेक पर साइन कर देना मैं इस महीने दे नहीं पाया था क्योंकि शादी में मेरे बहुत सारे पैसे खर्च हो गए थे।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि एक तो संयुक्त परिवार है ऊपर की अपना खुद का घर है फिर इतना खर्च करने की ज़रूरत ही क्या है ? वह धीरे-धीरे घर में हो रहे खर्चो को देखने लगी थी । उस दिन वह ऑफिस से आ रही थी तो उसने श्रेया को पड़ोसी से बात करते हुए सुना था कि यह घर उनका ही है साथ ही एक विला भी बुक कर लिया है ।

जब तक साथ रहते हैं तब ही सब ख़रीद लेना चाहिए वरना एक अकेले से क्या हो सकता है।

अपनी जेठानी की बातें सुनकर वंदना को लगा कि अभी से ही आँखें नहीं खोली तो बाद में रोने से कोई फ़ायदा नहीं होगा । हर्षवर्धन तो भाई भाभी का दिवाना है आँखें बंद करके उन पर विश्वास करता है । सासु को तो कोई कुछ समझता ही नहीं है ।

एक दिन जब सब खाने की टेबल पर बैठे हुए थे तो वंदना ने कहा कि मेरा तबादला हो गया है और मुझे अगले महीने जाना है।

हर्षवर्धन को ग़ुस्सा आ रहा था कि सबके सामने ही उसे भी यह बात अभी सबके सामने बता रही है ।

वह कुछ कहता पहले ही भाभी ने मुँह खोला यह क्या अभी शादी हुए एक महीना ही हुआ है और दोनों अलग अलग रहोगे । भैया ने कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है ।  उन्हें शायद उनके घर के इन्स्टॉलमेंट भरने में मुश्किलें आँखों के सामने दिखाई दे रही थी ।

सास ने कहा कि बेटा अकेली कैसे रहेगी तो वंदना ने कहा कि हर्षवर्धन और आप दोनों भी मेरे साथ चलेंगे । जेठानी के तो होश उड़ गए थे । उनका चेहरा आश्चर्य से भर गया था । सासु माँ चली गई तो घर के काम बच्चों की देखभाल यह सब कौन करेगा । बापरे सोचते ही पसीने छूट गए थे । वह ज़ोर से कहने लगी कि तुम्हारे साथ सासु माँ कैसे जाएगी मैं उनके बिना नहीं रह सकती हूँ । सासु माँ के गले लग कर कहती है कि आप बोलिए ना मैं नहीं आऊँगी ।

कल रात को ही हर्षवर्धन ने कह दिया था कि माँ नहीं तो मैं भी नहीं तुम सोच लो । वह बात याद आते ही वंदना ने कहा कि भाभी आज मेरे साथ आपने माँ को नहीं भेजा तो उनके अंत समय तक आप ही उन्हें अपने पास रखकर उनकी देखभाल करेंगी ।

यह क्या बात हुई कहते हुए ही जेठानी ने दिमाग़ के घोड़े को दौड़ाया और भविष्य को अभी ही आँखों के सामने देखते हुए कहा कि जब तुम ले जाना चाहती हो तो ले जाओ मैं कौन हूँ तुम्हें रोकने वाली । बच्चों की बात भी नहीं सुनी थी कि दादी के बिना हम कैसे रहेंगे ।

सावित्री से तो किसी ने पूछा भी नहीं था कि तुम्हें कहाँ रहना है । वंदना ने कहा कि माँ आप अपनी पैकिंग शुरू कर लीजिए मैं भी मदद कर देती हूँ ।

श्रीकांत ने पूछा कि कब निकलना चाहती हो तो वंदना ने कहा कि दो दिन बाद ही निकल जाएँगे ।

सावित्री ने धीरे से कहा कि अगले हफ़्ते निकलेंगे क्या? वंदना ने कहा कि नहीं माँ मुझे सोमवार को जॉइन होना है ।

सावित्री जाने के एक दिन पहले खूब रोई वह वंदना को ठीक से जानती नहीं थी । श्रेया को बचपन से जानती थी वह ननंद की बेटी थी ।

यही घर के सारे काम करा लेती है एक दिन उसने नहीं कहा कि आप बैठ जाओ मैं काम कर देती हूँ । वंदना तो नौकरी भी करती है फिर नहीं मालूम वह कैसे व्यवहार करेगी ।

वंदना और हर्षवर्धन के साथ मिलकर वहाँ पहुँच गई जहाँ वंदना का तबादला हुआ था । वंदना पहले एक बार यहाँ आ चुकी थी उस समय ही दो कमरों का घर लेकर पूरे सामान रखवा दिए थे । वे लोग जैसे ही अंदर गए तो घर सजा हुआ था । वंदना सावित्री का हाथ पकड़कर उन्हें घर दिखाती है

पूजा कमरे को देखते ही सावित्री का चेहरा खिल गया था ।

एक कमरे में ले जाकर कहती है माँ यह आपका कमरा है जो सजा हुआ था। माँ आप थक गई होंगी सो जाइए कल बात करेंगे कहते हुए कमरे से बाहर आ गई थी । हर्षवर्धन दो दिन से मुँह फुला कर वंदना से बात नहीं कर रहा था ।

सावित्री नहा धोकर बाहर आई तो देखा कि वंदना ने पूजा कर लिया था । खीर बनाकर लाई और सावित्री से कहा कि माँ भगवान को भोग लगा दीजिए ना ।

उसने कहा कि माँ मैंने खाना बना दिया है । मुझे जैसे आता है वैसे बना दिया है शाम को हम बाहर खाने जाएँगे आप तैयार रहिएगा कहते हुए ऑफिस चली गई थी ।

वंदना शाम को घर आई और सासु माँ तथा पति को तैयार देखते ही जल्दी से खुद भी तैयार होकर आई । होटल में पहले से ही बुक किए गए होटल में जगह पर तीनों ही बैठ गए थे ।

सावित्री को यह सब नया नया सा लग रहा था । जब से शादी करके आई है कभी भी इस तरह से बिना काम किए बैठी नहीं है और ना ही होटल आई है।

अभी वह पूरी तरह से पुरानी बातों में खोई नहीं थी उसने देखा सामने वेटर केक लेकर आ रहा था । उसने सोचा कि वे लोग कितने ही खुशनसीब होते हैं जिनके परिवार वाले उनकी जन्मदिन को केक काटकर मनाते हैं ।

पिताजी उसे बहुत प्यार करते थे अकेली संतान थी और पिता के पास बहुत सारा पैसा भी था इसलिए मेरे जन्मदिन पर पूरे गाँव को न्यौता दिया जाता था । शादी के बाद किसी ने भी मेरे जन्मदिन को याद भी नहीं किया था । यहाँ तक की बच्चों को भी मुझे जन्मदिन की बधाई देना याद नहीं रहता था ।

सावित्री की आँखें भर आईं और धुँधला नजर आने लगा था और वह वेटर इनकी टेबल पर ही केक रखकर चला गया था । वंदना उठकर आई और केक सावित्री के सामने रखकर कहा जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई माँ ।

हर्षवर्धन चकित होकर देखने लगा था।

सावित्री ने कहा कि तुम्हें कैसे पता चला कि आज मेरा जन्मदिन है ।

उसने कहा कि आपको याद है एक दिन दीदी ने स्टोर में जगह नहीं है कहते हुए आपका सामान आँगन में रख दिया था । उनके जाने के बाद मैंने उन्हें उठाकर अपने कमरे में रख लिया था उन सामानों से ही मुझे आपकी यह डायरी मिली थी ।

हर्षवर्धन ने सोचा कि माँ डायरी भी लिखती हैं हमें तो पता भी नहीं है ।

सावित्री ने वंदना को गले लगाया और उसके माथे को चूमते हुए कहा कि तुम्हें देख मुझे मेरे पिताजी की याद आ गई है बेटा मेरे बेटों ने कभी भी मेरा जन्मदिन नहीं मनाया । बड़ी बहू तो मीठी बातें कहते हुए मुझसे सारा काम करवाती थी । उसने कभी भी मेरे बारे में जानने की कोशिश भी नहीं की थी । बड़ा बेटा सिर्फ़ महीने में एक बार मेरे कमरे में आकर पेंशन के लिए चेक पर साइन करवाता था । हर्षवर्धन उसने घर में क्या चल रहा है उस पर ध्यान ही नहीं दिया था । महीने में पैसे दे दूँ तो मेरी ज़िम्मेदारी ख़त्म सोचता था । हर्षवर्धन इन सारी बातों को चकित होकर सुन रहा था । उसके लिए माँ के मुँह से सुनने के बाद उसे लगा था कि माँ वहाँ खुश नहीं थी बल्कि मजबूरी में रहती थी । वंदना ने इन सारी बातों पर ध्यान दिया और माँ को लेकर आई है । उसे वंदना पर गर्व और अपने आप पर ग़ुस्सा आ रहा था । खाना खाने के बाद तीनों घर पहुँचे थे । वंदना के साथ हर्षवर्धन भी माँ के कमरे में पहुँचा वंदना अलमारी खोलकर माँ को उनकी डायरियों को और उनकी बहुमूल्य वस्तुओं को दिखा कर कह रही थी कि माँ घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी सास के बिना फीका होता है । आप यहाँ आराम से रहिए आपको जो अच्छा लगता है वही कीजिए यहाँ आपको कोई रोक टोक नहीं रहेगा । हर्षवर्धन प्रशंसा भरी आँखों से वंदना को देख रहा था और सावित्री वंदना की बलैया ले रही थी ।

के कामेश्वरी

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