अंजलि मुंहफट औरत थी। उसे किसी को भी नीचा दिखाने में मजा आता था। उनके पति अच्छे ओहदे पर पोस्टेड थे।वह स्वयं तो खूबसूरत थी ही और बेटी मां से भी खूबसूरत। किसी को अपने में लगाती नहीं थी।
एक दिन बातों ही बातों में, अंजलि अपनी देवरानी निर्मला से कहने लगी,”क्या करोगी निर्मला! शक्ल – सूरत बहुत मायने रखता है। तुम्हारी बेटी सौम्या की शादी में दिक्कतें तो होगीं हीं। शक्ल के साथ -साथ रंग भी तो कम है इसकी! मैं तो भई , इसके लिए निश्चिंत हूं।
मेरी बेटी को जो भी देखता है तारीफ किए बिना नहीं रहता।” कह गोल-गोल मुंह बनाने लगी।एक तो अंजलि की बेटी मोहिनी को भी अपने खूबसूरती पर गुरूर था उसपर से मां ने उसे माथे पर चढ़ा रखा था।
वही निर्मला की बेटी सौम्या,नाम के अनुरूप शालीन और पढ़ाई -लिखाई में बहुत ही तेज…..। अंजलि की नजर में पढ़ाई उतना मायने नहीं रखता था।वह कहने से नहीं चूकती थी। कहती,”लाख पढ़ लिख लें लेकिन शादी… में…,बीच में ही बात को रोकते हुए बोली,”कहो उबटन वगैरह लगाया करे , कहीं चमड़ी पर असर आ जाए। वैसे तो मुझे नहीं लगता कि कुछ हो पायेगा।
हर समय मौका देख अंजलि, कुछ ना कुछ व्यंग भरी आघात करने वाली बातें, निर्मला को कह ही देती थी। निर्मला का बड़प्पन था कि कभी उनकी बातों का जवाब नहीं देती। वैसे सौम्या का रंग तो कम था ही, शक्ल भी कोई खास नहीं थी। फिर भी , सौम्या ने हीन भावना को कभी हावी नहीं होने दिया अपने उपर।
निर्मला मन ही मन कहती ,”रंग रूप तो हमारे बस की नहीं, पर मेरी सौम्या में तो सारे गुण हैं जो मोहिनी में नहीं।” सौम्या के मां -पापा को अपनी बेटी पर नाज था। स्कूल के सारे शिक्षकों की नजर में सौम्या एक सुशील और तेज छात्रा है।
सभी उसे बहुत प्यार करते थे। छात्रवृत्ति भी मिलती थी उसे। मोहिनी भी सौम्या के साथ ही पढ़ती थी लेकिन उनका सेक्शन अलग था। ठीक ही तो था, नहीं तो, मोहिनी अपनी बातों से सौम्या को पढ़ाई में बांधा ही पहुंचाती। सौम्या हर क्लास में कभी फर्स्ट आती या कभी सेकंड।
जब 12वीं का रिजल्ट आया तो सौम्या अपने जिले में टॉप की थी। मुहल्ले वाले बधाई देने पहुंचे। मोहिनी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर गई थी। निर्मला सबको मिठाइयां खिला रही थी।
वैसे जेठानी अंजलि निर्मला के कमरे में आती जाती थी लेकिन उस दिन अपने कमरे में ही मां बेटी खुसुर-फुसुर कर रही थीं।
एक पड़ोसन उनके कमरे में गई और कहने लगी “सौम्या ने तो हमारे जिले का नाम रोशन कर दिया। ऐसी बेटी भगवान सबको दे। बहुत भाग्यशाली है उसके मां-बाप!”
अंजलि कुछ बोल तो नहीं पाई, मगर अंदर ही अंदर कूढ़ रही थी।कूढना तो उसकी प्रकृति में था। लोग यह न सोचने लगे कि देवरानी की बेटी ने टॉप किया तो मुझे चिढ़ मंच रही है। यही सोच अंजलि, निर्मला के कमरे में गई और अनमने ढंग से टेबल पर रखी मिठाई में से एक टुकड़ा ले सौम्या के मुंह में डाल दिया।
सौम्या ने झट बड़ी मां के पैर छुए। अहंकारी मोहिनी, सौम्या को बधाई देने नहीं ही आई। अगले दिन अखबार में सौम्या का फोटो छपी देख अंजलि और मोहिनी को तो चिढ़ ही मची होगी! स्कूल में भी सम्मानित किया गया।
सौम्या के पापा कम आमदनी वाले सरकारी नौकरी में थे। भले ही और चीजों में कटौती कर लेते लेकिन उसकी पढ़ाई में किसी तरह की कमी नहीं होने देते।
सौम्या अब बैंकिंग परीक्षा की तैयारी में जुट गई।उधर मोहिनी ग्रेजुएशन के बाद पढ़ाई को विराम दे दी। वैसे इसे पढ़ाई में मन नहीं लगता था। अंजलि अब इसकी शादी कर देना चाहती थी। अंजलि को मोहिनी के लायक कोई लड़का पसंद ही नहीं आता था।
कोई ना कोई नुक्स निकाल ही देती। धीरे-धीरे उम्र भी बढ़ने लगी। इधर सौम्या को बैंक पीओ के पोस्ट पर नौकरी लगी। सौम्या के मां – बाप को खुशी का ठिकाना न रहा। अंजलि को सौम्या की खुशी नहीं देखी जा रही थी।
आखिर एक दिन अपनी कुड़बुड़ाहट को शांत करने के लिए निर्मला के यहां आ बोल गई,”अरे! लड़कियों को नौकरी – वोकरी क्या! अब शादी करो शादी! भई, मोहिनी के लायक तो लड़का मिल नहीं रहा।
ऐसे ऐरू-गैरू से थोड़े ही करूंगी, जब-तक नौकरी के साथ -साथ हैंडसम ना मिले। सौम्या के लिए तो ऐसा-वैसा भी चलेगा।”निर्मला बेचारी कुछ न बोली।
सौम्या संयोगवश इसी शहर में पोस्टेड हो गई। इसके कार्यशैली और शालीनता के सभी कायल थे। बैंक मैनेजर को वह बहुत अच्छी लगती थी।मन ही मन वे अपने बेटे से शादी के लिए सोच रखा था।
एक दिन वे सौम्या के पापा से मिलकर अपने बेटे से शादी के लिए सौम्या का हाथ मांगा। वह भी बैंक पीओ के पोस्ट पर कार्यरत था। सौम्या के पापा की आंखें खुशी से छलक पड़ी थीं।शुभ मुहूर्त में शादी भी हो गई। सौम्या पति और परिवार के साथ बहुत ही खुश थी।
अंजलि को उम्मीद नहीं थी कि सौम्या को ऐसा घर -वर मिलेगा। भीतर ही भीतर वह जल भून गई थी इनकी खुशी देखकर। मोहिनी की शादी अभी तय भी नहीं हुई थी। अच्छे-अच्छे नौकरी वाले लड़के को यह कहकर इंकार कर दिया कि वह उसकी बेटी के लायक नहीं है।
उम्र बढ़ती गई। अंजलि की धड़कने भी बढ़ती गई। अंत में हारकर विवश होकर एक बिजनेस करने वाले लड़के से शादी करनी पड़ी और देखने में भी ढंग का नहीं था। शादी के दिन सारा घर भरा पड़ा था।
उन्हीं में से कुछ लोग कानाफूसी कर रहे थे,”अरे बहुत नखड़े थे इनके। मां बेटी किसी को अपने में नहीं लगातीं थीं।
अब देखो, कैसे लड़के से शादी हो रही है। बहुत बड़े-बड़े सपने पाल रखे थे, क्या हुए सपने! आखिर इनका घमंड जो सिर पर चढ़ा था, रेत की तरह भरभरा कर पांव पर आ ही गया।”उधर से गुजरते हुए अंजलि के कानों में इनकी बातें पड़ गईं।
इन्हे अपनी गलती का एहसास बखूबी हो रहा था। कहते हैं ना, समय सब पर भारी होता है। समय अब इनके टूटे सपने देख कहकहे लगा रहा था……।
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
स्वरचित, अप्रकाशित।
मात्राओं की अशुद्धि मज़ा किरकिरा कर देती है। कहानी का एक शिल्प होता है वह इसमें नहीं दिखाई देता है।