गैसलाइटिंग : मानसिक उत्पीड़न * – डॉ उर्मिला शर्मा 

हमें रोजमर्रा के जीवन में कभी- कभी या लगातार गैस लाइटिंग का शिकार होना पड़ता है जिसका हमें पता ही नहीं लगता। सर्वप्रथम ‘गैसलाइटिंग’ शब्द पैट्रिक हैमिल्टन के नाटक गैस लाइट (1938) से लिया गया है, जुसपर बाद में फ़िल्म भी बनी। इस सम्बंध में डॉ इशिता नागर कहती हैं -“गैस लाइटिंग एक प्रकार का मानसिक उत्पीड़न है। इसमें एब्यूजर अपनी गलतियां छिपाने के लिए विक्टिम को दोषी ठहराता है ताकि पीड़ित उसका विरोडज करने के बजाय अपनी भावनाओं और अनुभवों पर ‘डाउट’ करने लगे। यह बड़ी चतुराई से की जाती है ताकि विक्टिम को पता ही न चले कि उसे ब्रेनवाश करके एक नैरेटिव पेश किया जा रहा है।” – 1

गैसलाइटिंग के मामलों में एक व्यक्ति को दूसरे पर पूर्ण रूप से निर्भर बना दिया जाता है जिससे वह स्वयं के बारे में सोच न सके तथा एब्यूजर उसे हर तरह से डोमिनेट करता रहे। गैस लाइटिंग केवल सम्बन्धों तक ही सीमित न रहकर मित्रों, सम्बन्धियों, ऑफिस, सहकर्मी, सरकार तथा मीडिया जैसे संस्थाओं के द्वारा भी किया जाता है। ये एब्यूजर प्रायः परिवार के सदस्य – पति- पत्नी, भाई- बहन या कुछ मामलों में माता- पिता भी हो सकते हैं। इसका भुक्तभोगी के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ता है।

गैसलाइटिंग एक नकारात्मक व्यवहार है जिसके माध्यम से दूसरों के मन मस्तिष्क पर हावी होकर उन्हें अपने तरीके से चलाने की कोशिश की जाती है। इस तरह का व्यवहार बेहद करीबी लोगों के द्वारा ही किया जाता है। लंबे समय तक चलने वाला गैस लाइटिंग के मामलों में व्यक्ति के आत्मविश्वास में कमी व अपनी समझ पर अविश्वास पनपने लगता है। फ़िल्म गैस लाइट ( 1944 ) में एक व्यक्ति गैस लाइटिंग के प्रभाव से अपनी पत्नी को मानसिक रूप से ऐसी दशा में पहुँचा देता है, जहां वह सोचने लगती है कि वह अपना मानसिक संतुलन खोने लगी है। यह एक प्रकार से ब्रेनवाश का तरीका है। इसीप्रकार की एक हिंदी फिल्म ‘दामिनी’ बनी थी जिसमें नायिका को ऐसी मनःस्थिति से गुजरना पड़ता है।

“एब्यूज मानसिक भी हो सकता है। यह बात हर कोई जानता नहीं, या स्वीकार नहीं करना चाहता। ‘एब्यूज’ सुनते ही हमारी आँखों के सामने खून से सनी औरत की तस्वीर आ जाती है। हम अपने आप को तसल्ली देते रहते हैं कि हमारा हसबैंड/ पार्टनर चाहे जैसा भी हो, मारता पिटता नहीं है। लेकिन यह जानना बहुत जरूरी है कि शोषण सिर्फ मारने पीटने तक सीमित नहीं है। शोषनकारी हमारे मन पर कब्जा करने के कई और तरीके अपनाते हैं जिससे हम अंदर से टूट जाये और हमारा आत्मविश्वास पूरी तरह ध्वस्त हो जाए। ऐसे में इंसान को कंट्रोल करना और आसान हो जाता है।” – 2

गैसलाइटिंग के चिन्ह : गैसलाइटिंग के कई रूप हैं। किसी की फीलिंग्स का मजाक उड़ाना, बात को घुमाना, बात बदलना या किसी बात को काउंटर करने की कोशिश करना इसके अंतर्गत आता है। जैसे –



  1. ऐसे व्यक्ति गलती के सबूत मिलने पर भी यह कहते हैं कि ‘अरे यार ! इतना नेगेटिव मत होओ, मेरा मतलब यह नहीं था जैसा तुम सोच रही हो।’ बात को घुमाकर साफ इंकार कर देंगे।
  2. ऐसे व्यक्ति आपके तौर- तरीके, रहन- सहन का मजाक उड़ाएंगे। बुरा मानने पर बड़े आराम से कह देंगे कि ‘मैं तो मजाक कर रहा था।’ बीच- बीच में आपकी तारीफ कर अपने बारे में बनी अवधारणा को मिटाने की कोशिश करते हैं।
  3. ऐसे व्यक्ति बड़े से बड़ा झूठ बड़ी सफाई से बोल जाएगा जिसपर आप शक भी नहीं कर पाएंगी। जैसे – ‘ये सिगरेट लाइटर मेरा नहीं बल्कि मेरे फ्रेंड का छूट गया है।’
  4. ऐसे व्यक्ति के कथनी और करनी में अंतर व्याप्त होता है। ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’ ‘ कहते रहेंगे और आपमें निरंतर खामियां निकाल आपको ‘हर्ट’ भी करते रहेंगे।
  5. ऐसे व्यक्ति अपने व्यसनों और बुरी आदतों के लिए आपको दोषी ठहरायेंगे। ‘तुम्हारे वजह से मेरा गुस्सा भड़कता है और मैं चिड़चिड़ा हो गया हूँ’ या ‘मैं नशा करने लगा हूँ।’
  6. ऐसे व्यक्ति आपको मानसिक रोगी भी बताने लगेंगे। आपको डिप्रेशन तक पहुचायेंगे। फिर कहेंगे भी ‘इसका तो अनुवांशिक है, मानसिक रोग।’ वो आपको हमेशा झूठा साबित करने का प्रयत्न करते हैं तथा संशय में डाल देते हैं वह हमेशा आपके दिमाग से खेलने की कोशिश करता है।

गैसलाइटिंग करने वाला व्यक्ति आपके साथ ऐसा व्यवहार करेगा कि आप स्वयं को दोषी समझें और कुछ बोलने से पूर्व कई बार सोचें। वह आपको धमकी भी दे सकता है तथा अपने साथ होनेवाली हर बुरी घटनाओं के लिए आपको जिम्मेदार ठहरायेगा। आपके दिमाग के साथ खेलकर इतना कमजोर कर देगा कि आप हरसमय परेशान व चिंतित रहेंगे। आपके निर्णय लेने की क्षमता को गहरे प्रभावित कर भ्रमित करेगा। हमेशा उदास और अपराध बोध की भावना से ग्रसित हो जाएंगे तथा छोटी- छोटी बातों पर किसी से क्षमा मांगने लगेंगे।



“अधिकतर रोमांटिक रिश्तों में दुर्व्यवहार का एक भयानक रूप भी शामिल है जिसके गम्भीर परिणाम होते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति खुद अपनी याददाश्त, सोच और विवेक पर सवाल उठाने लगता है। जी हां ! इससे आप खुद को पागल भी मन सकते हैं। खुद पर शक एक ऐसे स्तर तक पहुँच जाता है जहां आप वास्तविकता से दूर हो सकते हैं। दुर्व्यवहार करनेवाला व्यक्ति लगातार इंकार करता रहता है।….इन गैस लाइटिंग रणनीति का ज्यादातर इस्तेमाल सोसियोपैथ और नारसिसिस्ट द्वारा किया जाता है।”- 3

गैसलाइटिंग का प्रभाव : गैसलाइटिंग से हमारे सोचने की क्षमता पर गहरा नकारात्मक असर पड़ता है जिससे तार्किक तरीके से सोचने में असक्षम हो जाते हैं। व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील तथा ईर्ष्यालु प्रवृत्ति का हो जाता है। बात- बात में झूठ बोलने या बातों को छुपाने की प्रवृत्ति पनपने लगती है। हमेशा भय या संशय की स्थिति में रहने की वजह से ‘हाई अलर्ट’ या ‘हाइपरविजिलेंट’ रहने लगते हैं। पीड़ित व्यक्त अति संवेदनशील होने के कारण भविष्य को लेकर शंकित रहते हैं और उन्हें यह विश्वास होने लगता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है। एक व्यवहार डिफेंसिव होता है।

मनोचिकित्सक संघनायक मेश्राम के अनुसार आप किसी के निशाने पर हैं या आपको गैस लाइटिंग किया जा रहा है, इस बात का अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि ज्यादातर समय पीड़ित व्यक्ति समझ ही नहीं पता कि उसके साथ बुरा बर्ताव हो रहा है। गैस लाइटिंग किसी व्यक्ति को अपने तरीके से चलाने का तरीका है। ऐसे व्यक्ति लक्षित व्यक्ति के मन में शंका का बीज बोकर उसे गलत साबित करने का प्रयत्न करते हैं। उसके याददाश्त , विवेक, मानसिक सन्तुलन व धारणा पर सवाल उठाते हैं। दूसरों के समक्ष भी उसको गलत ठहरा उस व्यक्ति का मनोबल तोड़कर लज्जित भी करते हैं। उसको भृमित कर उसके आत्मविश्वास को बुरी तरह क्षति पहुंचाते हैं।

गैसलाइटिंग के चिन्ह को पहचाने तथा दूसरों को भी ऐसे पहचानने में हमे उनकी मदद करनी चाहिए। इसपर यदि गहराई से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इसमें आत्मविश्वास की बड़ी भूमिका है। गैस लाइटिंग प्रायः वो करते हैं जिसका हमारे जीवन में डोमिनेंट पोजीशन हो। पुरुष ज्यादा डोमिनेंट होते हैं अतः इसका शिकार प्रायः स्त्रियां होती हैं।

बचाव : गैसलाइटिंग से बचने हेतु एक सपोर्ट नेटवर्क का होना जरूरी है जिसके लिए हम अपने क्लोज फ्रेंड से सलाह ले सकते हैं। थेरेपिस्ट से मानसिक एब्यूज के केस में थेरेपी ले सकते हैं। यह हमें अंदर से मजबूत बनाएगी। अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं और एब्यूजर से दूरी बढ़ाकर स्वयं को समझाएं कि आप उससे बेहतर डिज़र्व करते हैं। ऐसा पॉजिटिव एनवायरनमेंट तैयार करें जहां लोग आपकी वैल्यू करते हों। नए होबिज एवं एक्टिविटीज पनपायें। प्रोडक्टिव कामों में मन लगाएं जिसमें आपको खुशी मिले।

शारीरिक उत्पीड़न से मानसिक उत्पीड़न ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। शरीर का घाव भले ही भर जाए पर मानसिक घाव देर तक बने रहते हैं। हम अपने मेंटल हेल्थ की ओर भी ध्यान देना चाहिये तथा नकारात्मक प्रभाव वाले लोगों से दूरी बनाकर रखें।

लेखिका : डॉ उर्मिला शर्मा 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!