जैनरेशन गैप – मधु वशिष्ठ   : Moral Stories in Hindi

स्कूल के स्टाफ रूम में लंच टाइम में सारी टीचर्स चाय की चुस्कियां लेती हुईं अक्सर अपनी बहुओं या सासों की बुराई करती हुई देखी जा सकती थीं।

भावना मैडम को ऐसा करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, वह यही सोचती थी कि बहु या सास का अच्छा या बुरा होना केवल और केवल हमारे खुद के ही व्यवहार पर निर्धारित होता है।

वह हमेशा कहती थी कि मेरे बेटे की शादी होने के बाद मैं तुम सबको दिखाऊंगी कि बहू के साथ कैसे रहा जाता है।

नवंबर में उनके बेटे का शुभ विवाह होना निर्धारित हुआ था। स्टाफ रूम में अक्सर अपनी होने वाली बहू के किस्से सुनाती रहती थी

और उसके लिए करी हुई शॉपिंग बड़ी खुशी खुशी सबको बताती और दिखाती थी। उनके बेटे के विवाह में पूरा स्टाफ शामिल हुआ था

और सब की आशा के अनुरूप ही भावना मैडम अपनी बहू के साथ खुशी खुशी डांस करती हुई देखी जा रही थी। जहां भावना जी ने हर चीज के लिए दिल खोल रखा था

वही उनकी लाडली बहू भी उनके सम्मान का पूरा ध्यान रख रही थी। उनकी बहू भी उनके बेटे के साथ ही किसी एमएनसी में कार्यरत थी।

बेटे की रिसेप्शन के बाद भावना जी में स्कूल में जॉइन कर लिया था और बहुरानी घूमने गई हुई थी। जिस दिन बहू ने वापिस आना था

उसके बाद भावना जी ने 4 दिन की स्कूल से छुट्टियां लीं। वह अपनी बहू को बेहद प्यार देना चाहती थी।

अभी तक उन्होंने अपनी बहू को रसोई में कदम भी नहीं रखने दिया था । खुद ही सबके लिए बहुत सारे और स्वादिष्ट पकवान बनाएं।

बेटे और पति ने उनकी खाने की तारीफ की लेकिन बहु रानी खाना खाने नहीं आई थी। कहीं बहुरानी की तबीयत तो खराब नहीं है ऐसा सोचकर उन्होंने थाली लगाकर उसे उसके कमरे में ही खाना दिया

तो बहुरानी ने खाने से मना कर दिया कि मुझे भूख नहीं है मैं नहीं खाऊंगी। हालांकि उनके बेटे और पति ने मां के बहुत प्यार से खाना देने के कारण बहु से आग्रह भी

किया कि बेटा सासु मां का मन रखने के लिए ही थोड़ा सा कुछ खा लो। लेकिन उनकी बहू प्रिया ने कुछ भी नहीं खाया।

भावना जी को बहु का ऐसा व्यवहार अच्छा तो नहीं लगा लेकिन क्योंकि उन्होंने प्रण करा था कि मैं अच्छी सास ही बनकर रहूंगी

और हो सकता है बहू को भूख ना हो यह सोचकर वह बहु वाले खाने को खुद खाने बैठ गई हालांकि उनकी इच्छा तो बहुरानी के साथ बैठकर खाने की थी।

 थोड़ी ही देर बाद पिज़्ज़ा वाला पिज्जा लेकर आया और उनकी बहू अपने कमरे के अंदर पिज़्ज़ा खाते हुए उनके बेटे से कह रही थी

कि ऐसे तो मेरा दम ही घुट जाएगा। यहां खाना भी उनकी पसंद का खाओ, कपड़े भी उनकी पसंद के पहनो, मैं कोई बच्ची या घर का कोई पालतू जानवर थोड़ी ना हूं

जो मम्मी थोड़ी थोड़ी देर में आकर बिना वजह प्यार दिखाती रहती हैं। सब समझ क्यों नहीं पाते कि मैं भी एक इंसान हूं अपने घर को छोड़कर आई हूं ।

जरूरी थोड़ी ही ना है यहां हर समय मेरा बात करने को मन हो या कि मैं उन्हें हर समय खुश ही करती रहूं वगैरा-वगैरा।

यह सब सुनने के बाद भावना जी सोच रही थी कि बहू ठीक ही कह रही है। इसे ही जेनरेशन गैप कहते होंगे। अच्छे संबंध बनाने के लिए शायद सबसे जरूरी चीज यह है

कि बिना वजह किसी की जिंदगी में ना तो खलल डालो और ना ही अपने में डलवाओ। हमें भी समय ने बहुत कुछ सिखाया है ऐसे ही बच्चों को भी समय के साथ सीखने दो।

खाना खाकर वह अपने कमरे में सोने चली गई ‌ शाम को उनकी जाग एक मीठी सी आवाज के साथ खुली यह आवाज उनकी बहुरानी प्रिया की थी वह भावना जी के लिए चाय बनाकर लाई थी।

दोनों ने चाय पी। भावना जी ने मुस्कुराते हुए रसोई में शगुन की पहली चाय बनाने के लिए उसे उपहार दिए और कहा बेटा हम तो शाम को सिर्फ दलिया ही खाएंगे

यह तुम्हारा ही घर है अगर तुम अपने लिए कुछ और बनाना चाहो तो बना लो हमारी कोई सहायता चाहिए हो तो हम जरूर करेंगे। तुम्हारी जो भी इच्छा हो तुम मंगवा लो या बना लो।

 पाठकगण छुट्टियां खत्म होने के बाद जब भावना जी स्कूल में गईं तो उन्होंने लंच टाइम में बातें करते हुए सिर्फ यही कहा कि बच्चे समझदार होते हैं

उनके साथ तालमेल बिठाने के लिए हमारा सिर्फ यही कर्तव्य होता है कि उन्हें उनका स्पेस और समय दें कि वह जान सके कि घर में एडजेस्ट कैसे होना है|

आपका क्या ख्याल है कमेंट में बताइए ?

मधु वशिष्ठ 

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