*गांव की लाज* – आसिफ त़ालिब शेख  : Moral Stories in Hindi

रूपा के बापूऽऽऽ अरे ओ रूपा के बापूऽऽ दिन ढलने को आ गया अब तो अंधेरा फैलने लगा है रूपा अभी तक घर नहीं लौटी अब कोई छोटी बच्ची तो ना रही हाथ पीले करने की आयु हो गई है उस की इतने समय तक घर से बाहर रहना उचित नहीं और तू यहां चौपाल पर बैठा गप हांक रहा है लड़की अभी तक नहीं लौटी कुछ चींता है कि नहीं धनीया की पत्नी मंजरी घबराई सी धनीया की तरफ दौड़ी चली आ रही थी और घबराहट में जो भी मुंह में आ रहा था बके जा रही थी और क्यों ना हो जवान बच्ची की मां जो ठहरी बेचारी।

धनीया ग़रीब मज़दूर आदमी था ले दे कर बाप दादा के एक टूटे फ़ूटे झोंपड़े के अलावा और कुछ नहीं था उस के पास मोल मज़दूरी कर के अपने परीवार का पालन-पोषण करता औलाद के रूप में एक ही बेटी थी रूपा वो भी बड़ी भोली भाली दयालु उसे जानवरों से बड़ा प्रेम और लगाव था दीन भर पशू पक्षी और जानवरों के बीच घीरी रहेती उन की सेवा चाकरी में दीन गुज़ार देती

सभाव की बड़ी सीधी-सादी और सरल थी मंजरी को यही चींता थी की बेटी बड़ी भोली और सरल है कोई भी उस का ग़ैर लाभ ना उठा ले बच्ची जवान और सूंदर भी थी वैसे भी पड़ोसी लाखन का लड़का बड़ा आवारा और शरारती था मंजरी को उस के चाल चलन कुछ ठीक नहीं लगते थे पुरे गांव में उस की बदमाशी और गूंडा गर्दी मशहूर थी।

“आज सुबह से ना जाने कहां गई है भोजन करने भी नहीं आई पहले तो कभी ऐसा नहीं कीया उस ने” मंजरी रोने लगी अरे पगली रो क्यों रही है धीरज रख मैं देख आता हूं यहीं कही आस पास होगी अब तो धनीया के हाथ पैर भी फूलने लगे थे अंधकार बढ़ गया था रात हो चुकी थी रूपा इतनी देर तो कभी नहीं करती थी मंजरी बार बार पड़ोस के लाखान के घर में झांक रही थी आज सुबह से लाखन का लड़का भी कही नज़र नहीं रहा था।

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उधर धनीया गांव क्या खेत खलिहान और मैदान की ख़ाक छानता फीर रहा था यहां तक कि कूवां, बावड़ी, नदी, नाले भी झांक चूका लेकिन रूपा का कही कोई पता ही नहीं था आधी रात होने को आई थी परंतु रूपा का कोई सुराग हाथ ना लगा आखिर थक हार कर नीराश और दूखी मन ले कर घर लौट आया घर में मंजरी पत्थर की मुरत बनी हुई बैठी रोऐ जा रही थी।

धनीया को देखते ही झटके से दौड़ती हुई आई और दरवाजे से पागलों की तरह बाहर अंधेरे में इधर-उधर झांकने लगी “कहां है मेरी बच्ची बोल रूपा के बापू मेरी लाडो कहां है वो तेरे साथ क्यों नहीं आई तूम बाप बेटी मेरे साथ मस्करी कर रहे हों ना नाटक कर रहे हों ना कहां छूपाया है मेरे जीगर के तूकडे को बता ना रूपा के बापू?? बता ना तू चूप क्यों है पत्नी की अवस्था देख धनीया की हीम्मत भी जवाब दे गई और वो भी मंजरी को लीपट कर फूट फूट कर रोने लगा।

अब तो पड़ोसी के घर भी बेचैनी और भाग दौड़ महसूस होने लगी क्योंकि लाखन का लड़का भी अभी तक घर नहीं लौटा था कीसी ने बताया कि शाम ढले उसे कूछ आवारा लड़कों के साथ गांव के बाहर वाले वीरान खंडहरों की तरफ जाते हुए देखा गया था ये सूनते ही धनीया और मंजरी की सांसे अटकने लगी ” हमारी रूपा अक्सर भेड़ बकरीयां चराने वहीं ले जाया करती है लेकिन आधी रात को उधर जाना मौत को बुलावा देने समान था रात होते ही वह खंडहर जंगली जानवरों का डेरा बन जाता था क्योंकि खंडहर में एक तालाब भी था

जहां रात को जंगली जानवर पानी पीने आया करते हैं इतने पर भी धनीया और मंजरी वहां जाने के लिए तैय्यार थे लेकिन गांव वालों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें ऐसा करने से रोक ही लीया इसलिए दोनों दम्पति मन मारकर ख़ामोश बैठ गए गाॅव का कोई व्यक्ति भूल से भी उधर जाने की अनुमति या सलाह नहीं दे सकता था।

जब से पड़ोसी लाखन के लड़के की बात सूनी थी तब से मंजरी के मन में बूरे बूरे विचार आने लगे थे दीमाग कुछ सोचता तो मन कुछ और ही कहेता क्या पता क्या अनहोनी हुई होगी मेरी बच्ची के साथ कहां हो गी कीस हाल में हो गी जीवीत भी होगी या…….. नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता भगवान इतना कठोर कैसे हो सकता है नहीं वो तो बड़ा दयालु है सब ठीक हो गा अगर सब ठीक है तो मेरी बच्ची अभी तक आई क्यूं नहीं मंजरी पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी और खुद से ही बतया रही थी।

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सभी गांव वालों ने फैसला किया की सूबह होते ही वे लोग खंडहरों की तरफ जाएंगे सभी लोग लाखन के आवारा लड़के को कोस रहे थे तरह तरह की बातें हो रहीं थी गांव की सभी महिलाएं मंजरी की तरफदारी करती नज़र आ रही थी और पूरुष भी धनीया के पक्ष में बोल रहे थे मंजरी अब भी बराबर बड़बड़ाएं जा रही थी मुझे तो पहले से ही इस के लड़के पर शक था वो लाखन की ओर इशारा करते हुए बोली बड़ी गंदी नज़र है उस कई महीलाओं ने मंजरी की हां में हां मिलाई।

अरे हां हां वह सब तो ठीक है भोर तो होने दो जो हो गा सामने तो आना ही है अभी से क्यों अजीब अजीब तर्क़ लगाएं बैठे हो थोड़ी देर चुप भी करो गांव के सरपंच महीलाओं को चुप कराते हुए बोले तभी लाखन भी हीम्मत कर के मंजरी की ओर देख हाथ जोड़ते हुए बोला

मंजरी भाभी सरपंच जी सही कह रहे हैं अभी से क्यों तरह तरह के कीस्से गढ़ना माना मेरा बच्चा जरा बदमाश और शरारती है लेकिन इतना बूरा और गीरा हुआ नहीं हो सकता की अपनी छोटी बहन समान रूपा बीटीया के साथ कूछ बूरा कर डालें और अपने गांव की लाज का लीहाज ना रखें।

इतना सूनना था की धनीया गूस्से से भड़क उठा उस के साथ साथ गांव के कूछ अधेड़ और नौजवान भी लाखन की ओर गूस्से से बढ़ने लगे लफंगा आवारा तेरा लड़का सारी बूराई तेरे लड़के मे और तू है की उसी के गूणगान कर रहा है इतने सारे लोगों को अपनी ओर आता देख लाखन भय से पिछे हटने लगा तभी गांव के

सरपंच और कूछ बड़े बूजूर्ग बीच में आ कर बच बचाव करने लगे।अब ये सब कर के क्या भला होगा ये सब करने से क्या बच्चें सही सलामत लौट आएंगे या कोई बूरी घटना घटने से रुक जाएंगी होश से काम लेने की बजाए कीसी नादान बालक की तरह लड़ने लग जाते हो सरपंच जी क्रोधीत होते हुए धनीया और उस के साथीयों को पिछे धकेलते हुए बोले।

तभी कीसी ने एक तरफ अंधेरें मे हाथ दीखाते हुए चील्ला कर कहा वो देखो वो आ रहे हैं दोनों सभी उस ओर देखने लगे दूर अंधेरे में दो साए लड़खड़ाते हुए चले आ रहे थे अंधकार के होते हुए भी साफ साफ समझ आ रहा था की ये रूपा और लाखन का लड़का भीमा ही है उन्हें देखते ही सभी लोग उन की ओर दौड़ पड़े

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जैसें ही निकट पहुंच कर उन का हाल देखा मंजरी और धनीया के तो होश ही फाख्ता हो गए रूपा के तन पर कपड़े नही थे वो एक फटी पूरानी चादर लपेटे हुए थी बदन पर जगह जगह खराशें लगी हुई थी जीन से ख़ून बह कर सूख गया था बाल बीखरे हूए चहरा मीट्टी और धूल से अटा हूआ आंखों से अश्रु की बरसात हो रही थी दर्द और पीड़ा से थर-थर कांपती वो मंजरी से लिपट कर रोने लगी।

उधर लाखन के लड़के भीमा का भी कुछ ऐसा ही हाल था कपड़े जगह-जगह से फट गए थे जीस्म पर ज़ख्मों के नीशा ही नीशा थे सर से लेकर पैर तक धूल मिट्टी से सना हुआ खड़ा थर-थर कांपे जा रहा था तभी लाखन ने आ कर उस का गीरेबान पकड़ते हुए कहा निर्लज्ज ये क्या कर दीया तूने तूझे रत्ती बराबर भी लाज ना आई अरे कूकर्मी तू पैदा होते ही मर जाता तो मैं गंगा नहा लेता बोलते हुए लाखन अपने बेटे को पीटने लगा क्या हुआ बापू मैंने क्या किया? अच्छा अब झूठ भी बोल रहा है।

तभी रूपा अचानक दौड़ती हुई आई और लाखन का हाथ पकड़ कर बोली काका भीमा भैय्या को क्यूं मार रहें हो उस ने क्या किया ? सभी हैरत और गूस्से से रूपा की ओर देखने लगे अरे इस ने ही तो मेरी जान बचाई है अगर भीमा भैय्या सही समय पर ना आता तो मैं पूराने खंडहरों वाले तालाब में गीर के मर गई होती या वो भेडीया मूझे खा गया होता। क्या? लाखन धनीया और मंजरी खूशी और आश्चर्य से मिले जुले स्वर में एक साथ चीख पड़े

मंजरी ने तो आगे बढ़ कर भीमा को अपने गले से लगा लिया।

ये सब कैसे हुआ मेरी बच्ची धनीया रूपा के सर पर दूलार से हाथ फेरते हुए बोला रूपा थोड़ी देर रुकी और फीर एक झूरझूरी लेते हुए बोली आज बकरीयो के पिछे पिछे मैं खंडहर की ओर निकल गई बड़े दीनों बाद वहां गई थी बारिश के कारण खंडहर एक दम हरा भरा हो गया है हर तरफ रंग बिरंगी फूल हर ओर हरियाली ही हरियाली बड़ा मनमोहक मंज़र चट्टानों के बीचों बीच गहराई में निला निला

तालाब का पानी ऐसा मालूम होता था जैसे कीसी नई नवेली दुल्हन ने हरी पोशाक पहन रखी हो और बीचोंबीच निला तालाब उस के सर पे लगी बींदी में जड़ा निलम हो मैं उस वातावरण में इस तरह खो गई बापु की समय का पता ही ना चला मैं तितलियों के साथ-साथ मानों उड़ने लगी थी।

ना जाने कब शाम हो गई दीन डूबने लगा था अंधकार अपने बाज़ू फ़ैलाने लगा था मैं तालाब की चट्टान पर खड़ी तालाब को नीहार रही थी की अचानक पिछे से कीसी जानवर की गूर्राहट सूनाई दी मैंने जैसे ही मूड़ कर देखा मेरे सामने एक खूंखार भेडीया खड़ा था मैं डर से कांपने लगी मैंने भागने के लिए जैसें ही क़दम उठाए भीडीये ने मुझ पर छलांग लगा दी मगर भाग्य वश मैं उस की पकड़ से बच गई परंतु उस के नाखून मेरे कपड़ों को फ़ाड़ गए

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मगर भागते समय मैं अपना तोल ना रख सकी और तालाब वाली चट्टान से फीसल कर निचे गीरने लगी लेकीन फीर भाग्य ने साथ दीया और मैं तालाब और चट्टान के बीज ही एक कांटेदार झाडयों में अटक के रह गई उपर भेडीया निचे तालाब यानी दोनों ओर मौत मैं रंज और भय से मदद के लिए चीखने-चिल्लाने लगी तभी उपर से कूछ शोर सूनाई देने लगा फीर बहुत से लोगों के कदमों की आवाज़ आने लगी जैसे कुछ लोग एक साथ दौड़ रहें हो बीच बीच में भेडीये की गूर्राहट भी सूनाई पड़ती थी।

धीरे-धीरे दौड़ने वालों के कदमों की आवाज़ दूर होती चली गई ये भीमा भैय्या के मित्र थे जो भेडीये को देख भाग खड़े हुए थे लेकिन भेडीये की आवाज़ अभी भी  क़रीब से ही आ रही थी और ऐसा लगता था मोनो भेडीया कीसी पर उछल उछल कर हमला कर रहा हो वो भीमा भैय्या था बापू वो भेडीये से लड़ गया था आखिर भीमा भैय्या ने एक नोकदार लकड़ी से भेडीये को इतना ज़ख़्मी कर दिया की भेडीया मैदान छोड़ भाग गया।

उस के बाद भीमा भैय्या ने बड़ी मुश्किल से मूझे चट्टान और झाड़ी से बाहर निकाला परंतु भेडीये और कांटेदार झाडयों के कारण मेरा पुरा लिबास तार तार हो चुका था ऐसी अवस्था मे मैं घर कैसे आ पाती भीमा भैय्या मुझे खंडहर में एक महेफुज जगह बीठा कर मेरा तन ढांकने की व्यवस्था करने चले गए और जल्द ही कहीं से ये फटी पूरानी चादर ला कर मूझे लपेट दी फीर जो हूआ आप लोगों के सामने है।

इतना कहकर रूपा भीमा की ओर इतनी ममता और दुलार से देखने लगी मानो कोई नन्ही सी बच्ची अपने पिता या बड़े भाई को देखती है लाखन का सीना गर्व से चौड़ा हो गया वो रोते हुए भीमा को गले लगा कर बोला मूझे माफ कर बेटा मैं तूझे ग़लत समझ रहा था अपने बापू के आंसू पोंछते हुए भीमा बोला बापू तेरा बेटा आवारा हो सकता है

गूंडा लफंगा भी हो सकता है लेकिन चरीत्र हीन हरगीज हरगीज नहीं है रूपा तो क्या मैंने कभी गांव की भी कीसी लड़की पर ग़लत नज़र नहीं रखी सब को अपनी बहन की नज़र से ही देखा तेरा बेटा जानता है एक स्त्री की लाज क्या होती हैं और मेरे गांव की हर बहन बेटी की लाज पूरे गांव की लाज है मेरी मां तो बहुत पहले ही मर गई थी तब से ये गांव ही मेरी मां है और इस गांव की लाज मेरी मां की लाज समान है।

अब तो सूर्य भी उगने लगा था प्रकाश फैल रहा था पूरा गांव उस आवारा गूंडे मवाली के चहरे के तेज को देख रहा था और लाखन गर्व से कह रहा था भगवान ऐसा आवारा लफंगा बेटा सब को दे।

समाप्त

१४/०८/२०२४

( स्वरचित) आसिफ त़ालिब शेख

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