आज सुबह से ही निशा का सारा बदन टूट रहा था,शायद हल्का सा बुखार भी था ,जैसे ही सुबह का अलार्म बजा,वो हड़बड़ा के उठ बैठी,पास निगाह घुमाई…पतिदेव मजे से खर्राटे भर रहे थे।दिल किया,उन्हें कह दे,मेरे बस का आज उठना नहीं है,कर लेना खुद काम या बाजार से लेकर कुछ खा लेना।
पर कह न सकी, सुबह घर का ब्रेकफास्ट नहीं खाया तो इनकी शुगर लो हो जायेगी,बाहर कुछ उल्टा सीधा खा लेंगे तो शुगर बढ़ जाएगी,फिर बच्चों को भी तो टिफिन बना कर देना है।
वो मन मारकर,किसी तरह,हिम्मत जुटाती खड़ी हो गई।हल्का सा चक्कर आ गया था उसे पर संभली और सीधे वाशरूम में घुस गई।
थोड़ी देर में ही रसोई में खड़ी वो जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी।सब लोग उठ चुके थे और नहा धोकर डाइनिंग टेबल पर नाश्ते का इंतजार कर रहे थे।
निशा ने गैस पर चाय चढ़ाई और बरबस कमजोरी की वजह से उसकी आंखें छलछला आई।आज मां के पास होती वो झट उसका मुंह देखकर उसकी परेशानी समझ जाती पर यहां कोई नहीं है जिसे उसकी बीमारी से कोई फर्क पड़ता।सबको काम पर जाने की जल्दी है,किसी को शायद उसकी बीमारी से कोई फर्क नहीं पड़ता।
तभी उसका बेटा वहां आया,मम्मा!आज आप मुझे देर कराएंगी,कहता,उसके हाथ से प्लेट लेने लगा।
इस बीच,उसका हाथ मां के हाथ से टकरा गया।
“आपको बुखार है?”वो चौंका।आपका चेहरा भी कितना उतरा हुआ है मां…फिर आप काम क्यों कर रही हैं?वो परेशान होता बोला।
उसकी आवाज सुनकर,उसके पतिदेव सोमेश
भी वहां आ गए…
क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है निशा?बताया क्यों नहीं? चलो!तुम्हारा टेंपरेचर नापते हैं,फिर कोई दवाई देंगे।
आप लोग क्यों परेशान होते हो,सबको देर हो जायेगी,जाओ ऑफिस और कॉलेज जाने में…सबका टिफिन बना दिया है…बस नाश्ता करा के लेट जाऊंगी। वो बोली।
मम्मा!आपकी ये ही बात मुझे पसंद नहीं…मुंह से कभी कोई बात नहीं बताती,आखिर हम कोई जादूगर हैं जो बिना कहे सब जान जायेंगे?आपको पता है इस समय जल्दी में किसी का ध्यान आप पर नहीं गया बस इसलिए आप नाराज थीं और मौन थीं।
सॉरी निशा!मेरी गलती है,सोमेश बोले तो निशा झेप गई,नहीं!ऐसा कुछ खास नहीं था,मुझे लगा कि मै कर लूंगी।
अब बस भी करो यार!चलो..अंदर बिस्तर पर लेटो,आज नाश्ता हम बनाएंगे।तुम पहले चाय के साथ पेरासिटमोल टैबलेट ले लो,जब तक तुम्हारा बुखार उतरेगा नहीं , मै कहीं नहीं जाने वाला। समझी!!
पर आपकी जॉब?वो अचकचाई।
फर्स्ट हाफ की लीव ले ली है मैंने…अब चलो भी,देखना, मेरे हाथ की अदरक,इलायची की कड़क चाय पीकर तुम्हारा बुखार हवा हो जायेगा।
निशा को दोनो बाप बेटों ने जबर्दस्ती बेड पर लिटा दिया था और वो सोच रही थी,कई दफा,हम गृहणियां गलतफहमी पाल लेती हैं अपने घर के आदमियों और लड़कों के बारे में,वो भी हमारे दुख दर्द से प्रभावित होते जरूर हैं पर उनको बतलाना पड़ता है।अब कल तक मै बिल्कुल ठीक थी,उन्हें सपने थोड़े ही आ रहे थे कि अगली सुबह ऐसा हो जायेगा।
निशा के चेहरे पर ग्लानि भी थी साथ ही सुकून भी,उसके घर वाले सब अच्छे हैं और उन्हें फर्क पड़ता है उसकी बीमारी से।वो भी उसका वैसे ही ख्याल रखते हैं जैसे वो उनका
हमेशा से रखती आई है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद