सुनो” 21 दिन का सरकार ने लॉक डाउन लगाया है “पति के इतना कहते ही मुझे तुरंत बेटे का ख्याल आया.
हम अपने गांव में हर नवरात्रि में आते हैं मंदिर में श्रृंगार करने और नवरात्रि मनाने, कन्या पूजन करने .इस बार भी आए थे पर यहां आते ही पता चला कि सरकार ने कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन लगा दिया है थोड़ी फिकर थी बेटे की परंतु यह विश्वास था कि वह अच्छे से रह लेगा।
खैर इस बार करोना के कारण हम लोगों को गांव में कम से कम 5 महीने रहना पड़ गया तब मैंने किसान की जिंदगी को बहुत करीब से देखा हम जब भी गांव आते थे फुलवा जो कि हमारे घर का छोटा मोटा काम और साथ में झाड़ू पोछा बर्तन भी कर देती थी। उसका पति किसान था
बटाई पर काम करता था बटाई यानी कि खाद, बीज, पानी का आधा-आधा हिसाब 6 बच्चों के साथ बमुश्किल ही वह अपने घर को चला रहा था साथ में माता पिता भी।
उसकी एक बेटी फुली भी हमारे घर अक्सर आती जाती थी वह भी छोटा मोटा काम कर देती थी बहुत प्यारी सी थी वह पढ़ाई लिखाई मुझे होशियार थी तो मैं उसको आगे पढ़ने के लिए पैसे भी देती थी बचा हुआ खाना बची हुई सब्जी आदि हम उनको दे दिया करते थे।
एक रोज फुलवा को थोड़ा देर हो गई तो मैंने सब्जी काटी और बना भी ली थी पर छिलके वहीं पर रखे हुए थे, वह आई तो वह प्याज के छिलकों में से ऊपर के नीचे वाला हिस्सा जो मैंने काट कर निकाल दिया था उसको साफ करके रखने लगी मैंने पूछा इसका क्या करोगी?
बोली “बहू जी इसे पीसकर मसाले में बना लेंगे तो सब्गी में स्वाद भी आ जायेगा और गाढी भी हो जाएगी! “क्या सब्जी बनाओगी” आलू बहु जी आपको तो मालूम है जब हमारे यहां आलू का मौसम होता है तो आलू बन जाते हैं, गेहूं कट के आता है तो गेहूं की रोटी खा लेते हैं आप तो अच्छे से जानती है
ना हमारी हालत खैर! वह उन छिलकों को बिन रही थी तभी उसकी नजर मेरी डलिया में बड़ी 4-5 घुइयाँ पर पड़ी “बहू जी यह घुइयां में ले जाऊं क्या? मैंने कहा ले जाओ तुम्हें भी मांगने की जरूरत है क्या! जो तुम्हें चाहिए बोल दिया करो उसने वह घुइंया उठाई और अपने प्याज के छिलकों के साथ में रख लिया। मुझसे रहा नहीं गया सोचा 10 लोगों के परिवार में इतनी घुइंया का क्या करेगी ,फुलवा क्या करोगी 4-5 ही तो हैं?
बहूजी फूली कल कह रही थी आप भी लगा दिया करो ना रोटी में घी! जैसे बड़े घर वाली ताई लगाती हैं ।
हमारे गांव वाले पता नहीं क्यों हमारे घर को बडा घर बोलते हैं यह मेरा सासू मां का घर था खैर! मैंने कहा कि क्या करोगी ?
वह बोली इसे उबाल कर पीस देंगे और हरी चटनी के साथ रोटी पर लगा देंगे तो लगेगा कि घी लगा है,
यह सुनकर मुझे बहुत अफसोस हुआ जो किसान अनाज देते हैं उनके घर में इस तरह से खाना खाते हैं। यह एक रोज की बात नहीं थी जब भी आती थोड़ा बहुत काम करती तो उसको ना केवल मैं खाना देती थी साथ ही जरूरत का सामान भी देते रहते थे लेकिन हम कब तक उनका पेट भर सकते हम तो चले आते हैं !
एक रोज में उसका पति आया , उसका पति हमारे घर में पेड़ पौधों की निराई गुड़ाई कर देता था तो मैंने उससे पूछा किसान बिल जो लाए हैं मोदी जी इसका क्या है? अरे बहु जी हम किसान हैं, जमीदार नहीं है ,आप के जैसे! हम तो काम करते हैं ना , तो हमारा आधा पैसा बीज, खाद और पानी में चला जाता है
फिर जब आधा अनाज मिलता है उसमें आधा हमारा बीज खाद के लिए कर्जे में चला जाता है थोड़ा बहुत अनाज हम बेच पाते और जब हम बेचने जाते हैं तो वह बहुत सस्ता बिकता है रख नहीं सकते क्योंकि हमें आगे कुछ भी खाने के लिए चाहिए होता है , हमें नहीं पता इससे क्या किसको फायदा होने वाला है पर हमारी स्थिति वही रहेगी जो अभी है, हां सरकार पैसे भेजती है उससे थोड़ा बहुत काम चल जाता है ।
1 दिन तो बहुत देर हो गई फूली को आने में मैंने पूछा “कहां गई थी आज इतनी देर हो गई रे फूती ” स्कूल गए थे स्कूल ताई, स्कूल तो बंद है? मैंने बोला तो वो बोली पैसे मिलते हैं ना ताई ! कितने पैसे मिलते हैं?मेरे स्वर में जिज्ञासा हुई! वो बोली ₹280, 300 मिलते हैं ₹20 गुरूजी रख लेते हैं और 280 हमें दे देते हैं सरकार के द्वारा छोटे बच्चों को 300 और बड़े बच्चों को ₹500 दिए जाते हैं ।
हालत यह है कि स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर कमीशन काटकर देते हैं साल में दो ड्रेस मिलती हैं अक्सर गांव के बच्चे वही पहले दिखाई देते हैं और वह जब तक पहने रहते हैं जब तक वह फट नहीं जाते या गंदे नहीं हो जाते। ठंड आती है तो एक स्वेटर भी मिल जाता है साथ में 2 जोड़ी जूते स्कूल बंद होने के कारण दोपहर का खाना जो अब नहीं मिलता है जिसकी वजह से तंगहाली और बढ गई है।
सच में किसान की जिंदगी में क्या यही सब लिखा है हम जब रजाई में या बिस्तर पर सो रहे होते उस समय वह खेतों में होते हैं, जाड़ा, गर्मी, बरसात नहीं देखते ।
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फुलवा अक्सर हमारे घर से बची हुई सब्जियों के छिलके आलू या और किसी सब्जी का छिलका यह सब ले जाया करती थी अपने बच्चों के लिए। कभी बच्चों से पूछो क्या खाया मिर्चा रोटी मतलब हरी मिर्च की सब्जी और रोटी । हल्दी मिर्ची उनके घर बहुत कम होता है मेरी कोशिश रहती कि जब तक मैं वहां रहूं इन लोगों को इतना तो दे सकूं कि वह पेट भर खाना खा सकें।
फूती और उसके साथ एक दो लड़कियां और भी आती थी मेरा नियम था वह आए तो उनको चाय और साथ में बिस्कुट खिला देती थी कुछ देर के लिए तो उनका पेट में भर सकती हूं लेकिन हमेशा तो नहीं भर सकती।
सोचती हूं अगर इस बार लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो शायद मैं किसान की जिंदगी को इतने करीब से नहीं देख पाती वह किसान जिसकी पत्नी जोड़-तोड़ कर खाने को बनाती है कभी किसी के घर पर दाल दलने के बाद बची चुनी या गेहूं ले आती हैं ताकि उसको पीस कर आटा बना सके, धान काटते हैं तो घरों में धान की रोटी खाई जाने लगती है, दाल सब्जी तो यूं ही थाली से गायब हो गई इतनी महंगाई में दाल कैसे खरीदें।
1 दिन फूली के हाथ में एक पुड़िया थी मैंने पूछा यह क्या है बोली गौतरिया आए हैं तो दाल लाए हैं ₹10 की , सोचिए जो सबका पेट भरते हैं वह मेहमान के लिए पुडिया में दाल लाते हैं।
जब तक उनके पास थोडा बहुत दूध होता है तब तक चाय में दूध पडता है।
एक दिन फूली बोली ताई हम चाय नहीं पियेंगे मेरे पूछने पर बोली “बूढी अम्मा बोलती हैं सावन में दूध वाली चाय पीने से साँप काट लेता है ” थोडा अचम्भा हुआ पर बाद में फुलवा से पता चला कि उनकी भैंस ने दूध देना बंद कर दिया है और इसलिए वो बच्चों को ऐसे बहला देते हैं।
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सरकार देख सके और उनके दर्द को समझ सके केवल राजनीति के कारण कानून बनाना राजनीति में उन को निशाना बनाना उनके कंधे पर बंदूक रखकर चलाना नहीं होना चाहिए हमारे देश में जितनी अच्छी खेती होती है शायद ही और कहीं होगी फिर भी हमारा किसान भूखा है और आत्महत्या करने को मजबूर है बीज, पानी, खाद के लिए उनके पास पैसे कभी भी नहीं होते हैं हमेशा कर्ज लेकर ही काम चलाते हैं उस कर्ज को निभाते -निभाते किसान समय से पहले बूढ़े हो जाते है ।
यह केवल फूलवा और फूली की कहानी नहीं है गांव में रहने वाले 40 परसेंट किसानों की यही हालत है।
काश! कोई तो ऐसा कदम उठाया जाए जिससे लहलहाते खेत खलियानों के पीछे मेहनतकश किसानों का भी भला हो सके।
हेम लता
दिल्ली