फैसला – रचना कंडवाल

शाम के चार बज रहे थे।  लड़का झील के किनारे बैठ कर किसी  का इंतजार कर रहा था।कभी खड़ा होता, कभी बैठ जाता। उसके अंदर अजीब सी बेचैनी थी। आसपास का मनोरम वातावरण भी उसे अपनी तरफ खींचने में असमर्थ था।उसी बेचैनी में वह झील में पत्थर मारकर पानी की खामोशी तोड़ रहा था।

तभी सामने से एक लड़की आती हुई दिखाई दी।बेहद खूबसूरत,कमर तक झूलते बाल, बड़ी बड़ी आंखें,चाल में नफासत। लड़के के पास आकर रुक गई। लड़का उसे देखकर झुंझलाकर कर बोला”जानती हो एक घंटे से इंतजार कर रहा हूं तुम्हारा”

लड़की नीचे बैठ गई। “जानती हूं”।

“तो क्या सोचा तुमने? हमारे बारे में।”हम शादी कब कर रहे हैं?

लड़की धीरे से बोली तुम्हें तो पता है कि” मेरे माता-पिता इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है।” वह कह रहे हैं कि लड़का कुछ नहीं कर रहा है। ऐसे कैसे तुम्हारी शादी उससे…..

“चलो हम शादी कर लेते हैं तब वो हमारा क्या उखाड़ लेंगे? लड़के के स्वर में क्रोध था।”

“नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। शादी अगर हुई तो उनकी रजामंदी से होगी।”

लड़का तैश में आ गया “प्यार करने से पहले उनकी रजामंदी ली थी”?? “मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं सकता मैं अपनी जान दे दूंगा।”इश्क पर जूनुन हावी था।



लड़की ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया लड़के की तरफ देखते हुए कहा तुम जान दे दोगे?? लड़के ने कहा हां।पर मैं ऐसा नहीं करूंगी।

क्या??

लड़का चौंक गया। तुम मुझे कब से जानते हो????दो साल से। और अपने मम्मी पापा को??? ये कैसा सवाल है? जवाब दो। अरे जब से पैदा हुआ हूं। ऐसा बोलते हुए उसके शब्द मुंह में खामोश हो ग‌ए। वो कुछ सोचने लगा। मेरे साथ बिताए दो साल उन पच्चीस सालों पर भारी पड़ ग‌ए।

थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया।खामोशी टूटी लड़की बोली “जिंदगी कोई तीन घंटे की फिल्म नहीं है। जिसमें जो सोचा वही दिखा दिया।” बहुत प्यार करती हूं तुमसे पर अपने माता-पिता से भी उतना ही प्यार करती हूं। शादी करेंगे तो उनके आशीर्वाद के साथ नहीं तो….

लड़का उसे ध्यान से देख रहा था। उसने अपना हाथ धीरे से खींच लिया।

“शायद तुम सही कह रही हो‌। अपनी मान, मर्यादा, माता पिता का प्यार, विश्वास, सम्मान खोकर अगर एक दूसरे को पा लिया तो  क्या हमारे प्यार की जीत यही होगी”?

“अगर मां पापा न माने तो अगला कदम क्या होगा?”

तब हमारे रास्ते अलग होंगे। लड़की उठी और चल दी। ताज्जुब था कि इस बार न लड़का बेचैन था। न लड़की की आंखों में आसूं थे।

© रचना कंडवाल

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