आज नरेंद्र जी भारी मन से बेटे पियूष का बोरिया बिस्तर समेटकर दिल्ली के कालेज से लेकर घर आ गये । पत्नी ने दरवाजा खोला तो बोले नरेन्द्र जी लो आ गया तुम्हारा गधा बेटा तीन साल बर्बाद करके । पत्नी भी उदास हो गई थी क्योंकि नरेन्द्र जी और उनकी पत्नी दोनों चाहते थे कि बेटा इंजिनियर बने ।
नरेंद्र जी के दोस्तों में की दोस्तों के बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे और नरेंद्र की पत्नी रमा भी अपने किटी पार्टी में शामिल सहेलियों के बेटों को इंजिनियर की पढ़ाई कराने को बाहर भेजा है सुनती रहती थी सब बड़े रूतबे से बताती थी तो रमा ने भी सोंचा कि अपने बेटे को भी बाहर भेज देती हूं इंजीनियरिंग की पढ़ाई को ।
हंलाकि पियूष पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था और पढ़ाई को वो गम्भीरता से लेता भी नहीं था उसका तो मन कुछ और ही काम करने को था लेकिन माता पिता की इच्छा के आगे उसकी एक न चली और दिल्ली के एक प्राइवेट कालेज में पियूष का एडमिशन करा दिया ।
नरेंद्र जी तो उसको कालेज के हास्टल में ही रखना चाहते थे क्योंकि हास्टल में थोड़ी बंदिश होती है उठने बैठने की समय पर खानें नाश्ते की और हास्टल से बाहर आने जाने का भी समय निर्धारित होता है । लेकिन पियूष कालेज से बाहर कमरा लेकर रहना चाहता था ।और इत्तेफाक से ऐसा ही हुआ हास्टल में जगह नहीं थी सो पियूष को बाहर ही कमरा लेकर रहना पड़ा ।
फिर क्या था वहां पियूष की मनमानी थी जब मर्जी हो तब उठता था जो मर्जी हो वो खाना पीना ।और मन हुआ तो क्लास जाता जब मन नहीं होता इधर उधर घूमता फिरता । उसकी इन हरकतों से क्लास में उसकी उपस्थिति कम होती जा रही थी । परीक्षा के समय वो पेपर भी क्लियर नहीं कर पा रहा था की पेपर में वो फेल हो जाता था फिर से दुबारा परीक्षा देनी पड़ती थी । उसकी इस हरकत से घर पर नरेंद्र जी के पास अक्सर कालेज से फोन आता था। नरेंद्र जी ने की बार पियूष को समझाया बुझाया लेकिन उसका तो मन ही नहीं लगता था । नरेंद्र जी चाहते थे कि किसी तरह पियूष चार साल निकाल लें फिर नौकरी तो कहीं न कहीं मिल ही जाएगी । लेकिन कुल मिलाकर सबकुछ बेकार ही जा रहा था । लेकिन तीसरे साल कालेज वालों ने पियूष को निकाल दिया कालेज से और नरेंद्र जी आज उसको लेकर वापस आ गए ।
दिल्ली से वापस आकर बैठे ही थे कि नरेंद्र के बड़े भाई राजेन्द्र जी आ गए और पूछने लगे ले आए सब सामान हास्टल से नरेंद्र बोले हां भाई साहब तीन साल भी बर्बाद हो गए और पांच लाख रुपए भी पानी में चले गए । हमने तो तुमसे पहले ही कहा था कि पियूष का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं है ज्यादा कुछ काम धंधा करवा दो लेकिन तुम नहीं माने ,अब सभी लड़के डाक्टर इंजीनियर तो नहीं बन जाते न लेकिन तुम्हारे अक्ल पर पर्दा पड़ा था घास चरने गई थी कोई भी काम करने से पहले सही ग़लत भी तो सोचना चाहिए । पढ़ाई दूसरों की देखा-देखी नहीं होती अक्ल की जरूरत होती है । हां भाई साहब आप सही कह रहे हैं । गलती हो गई ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश