आज माँ बाउजी अमेरिका से लौट रहे हैं। तीन महीने वहाँ भैया भाभी के पास थे। दिलीपजी उन्हें रिसीव करने पटना से गए थे। आधी रात को उनकी फ्लाइट आई और वो बगल में एक होटल में ठहर गए थे।
“अरे अम्मा! तुम तो बहुत स्मार्ट हो गई हो। पूरा विदेशी रंग चढ़ा हुआ है।” उनके ठाठदार पर्स और बूटों को देख कर वो छेड़ने लगे थे।
अम्मा बुरी तरह शरमा गईं और बोली,”रोली मानी ही नहीं। ये सब खरीद दिया।”
बाऊजी मुस्कुरा दिए,”दिलीप बेटा! इनका ये सूट देखा…वहाँ जाकर तो इनका हुलिया ही बदल गया।”
हँसी ठिठोली हो ही रही थी पर अम्मा का मूड बहुत खराब हो रहा था। वो चिढ़ कर बोलीं,”हमारी तो थकान से हालत पतली हो रही है। ऊपर से ये मुआ सिरदर्द पीछा ही नहीं छोड़ रहा है।”
वो चाय का ऑर्डर देने लगे,”चाय पीलो , सिरदर्द छूमंतर हो जाएगा।”
वो भिन्ना कर बोलीं,”राम राम भजो! आज हमारा एकादशी का व्रत है। इस होटल की चाय तो ना पीऊँगी। सब घोरमट्ठा रहता है यहाँ।”
वो समझाते हुए बोले थे,”क्या अम्मा! पूरी विदेशिन हो गई हो पर इतना विचार… बाप रे चाय में क्या छूत लग जाएगी। और फिर सफ़र में इतना व्रत उपवास भी जरूरी है क्या?”
वो झल्ला गई,”अमेरिका गई तो क्या अपने संस्कार छोड़ दूँ…व्रत उपवास छोड़ दूँ। इस माँस मछली वाले होटल की चाय पीकर अपना धर्म नष्ट कर लूँ।” कह कर अपना सिर पकड़ कर बैठ गई थीं।
उन्हें होटल के बगल वाली गली में एक चायवाले की गुमटी दिखाई दी थी। वो वहाँ से चाय लाने उठे ही थे, अम्मा बोलीं,”उस बैग में से स्टील का गिलास ले जा बेटा। खूब अदरक इलायची कुटवा कर चाय बनवाना।”
वो चाय लेकर लाए तो शरमा कर ठिठक गए थे…अंदर बाऊजी अम्मा के सिर में तेल की मालिश कर रहे थे। अम्मा भी उनका हाथ झटक कर उठ बैठी पर बाऊजी हँसने लगे थे,
“अरे, अंदर आजा। वहाँ तेरे भाई से पत्नी की परवाह करना सीखा। प्रदीप तो रोली के पैर तक दबा देता था।”
दिलीपजी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और बोले,”और अब मैं आपसे सीख लूँगा।”
अम्मा खुशी से वो खुशबूदार चाय सुड़कने लगी थी।
नीरजा कृष्णा
पटना