निम्मी – माँ जी मुझे तो बहुत घबराहट हो रही हैँ ,आपकी अमेरिका वाली बहन अपने पूरे परिवार के साथ आ रही हैं वो भी पूरे 15 दिन के लिए ! मैं खाने पीने के , बाकी सब के इंतजाम कैसे करूंगी ! वो कहाँ ऐशो आराम में रहने वाले लोग ,हाई फाई लाईफ स्टाईल ,एसी में मखमली गद्दों पर सोने वाले ! हमारे यहाँ तो ये सब कुछ नहीं हैँ ! मुझे तो सोचकर नींद भी नहीं आ रही ! #वक़्त ही कितना बचा हैँ उनके आने में ,परसो ही तो आ रहे हैँ !! बताईये ना माँ जी !
सरला जी (निम्मी की सासू माँ ) – ठहाके मारती हुई !
निम्मी – ये क्या मम्मी जी आप हंस रहे हो ! मुझे इतनी टेंशन हो रही हैँ ! गलत बात !
सरला जी – अरे मेरी निम्मो ,काहे को घबरा रही हैँ ! चल आज तेरी सब टेंशन खत्म करें देती हूँ ! सुनेगी ना मेरी कथा !
निम्मी – हाँ हाँ मम्मी जी ,बताईये ना !
सरला जी – तुझे पता हैँ निम्मो ,एक हमारा वक़्त था जब किसी लड़के का हाथ गलती से लड़की से छू भर भी जाता था तो लड़की सहम जाती थी ! मेरे ब्याह को छह महीने ही हुए थे , जब तेरे ससुर जी नौकरी से आते थे तो सीधा मेरे पास नहीं आते थे ,वही बाहर पीढ़ा पर बैठ ज़ाते थे ! सब पड़ोस के उनको घेर लेते ! घंटों हो ज़ाते मैं उनका चेहरा भी नहीं देख पाती ! खाना भी मेरी सास लेकर जाती ! माँजी के पास ही लेट ज़ाते ,जब माँ जी खुद कहती ,जा बहुरिया इंतजार कर रही होगी ,अब तो चौका बासन भी हो गया होगा ! तब कहीं उनके दर्शन नसीब होते ! और आज कल के लड़का लड़की लिव इन में रह रहे हैँ सीना तानकर ,जब मन हुआ छोड़कर दूसरे के साथ रहने लगे ! माँ बाप की इज्जत क्या हैँ सोचते ही नहीं ! हमारे समय में घर में 15-16 लोग होते पर खाना 30-35 लोग हर दिन खाते ! कोई भी आता बिना खाना खाये नहीं जाता ! चमत्कार देखो कभी चून भी कम नहीं पड़ता ! इन मेहमानों की पहले से आने की कोई खबर नहीं होती ! साग तो मोहल्ले के दस घरों में जाता फिर भी कम ना पड़ता ! और आजकल की जनरेशन,, एक आदमी भी ज्यादा आ गया तो दुबारा आटा गूँथने में भी उन्हे नानी याद आ जाती हैँ ! ऊपर से बेचारे पति को और दस खरी खोटी सुननी पड़ती हैँ ! बेचारा मेहमान खाना कम खाता हैँ ,बददुआयें ज्यादा लेता हैँ ! ये आज के वक़्त का कड़वा सच है निम्मो ! अब कोई नहीं चाहता उनके घर मेहमान आयें ! नहीं तो उनका बजट बिगड़ जायेगा ! भले ही फाईव स्टार में बैठकर हजारों फूंक आये ! सब वक़्त वक़्त की बात है ! होली पर गुजिया ,पापड़ ,दही बड़े बनते,आठ दिन मिलन होता ! तरह तरह के पकवानों का सब आनन्द उठाते! आजकल 2 घंटे भी त्योहार नहीं मनाता आदमी ! तू मेरी अमेरिका वाली बहन की बात कर रही है आरती की ! तो बता दूँ तुझे ,वो सबसे ज्यादा सरल स्वभाव की हैँ ! उसके ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं थी ! फिर भी हमेशा जमीन से जुड़ी रही ! अमेरिका में रहकर भी अपने हाथ से अचार डालना ,खाना बनाना ,झाडू पोंछा खुद करती है ! उसके बच्चें भी उसी की तरह संस्कारी हैँ ,सुन्दरकांड का पाठ ,हनुमान चालिसा पढ़ना ,व्रत रखना ,सब तीज त्योहार पूरे विधि विधान से करते हैँ ! कहने को अमेरिका वाली हैँ पर वक़्त उसके लिए वही पुराना हैं ! उसे एसी वेसी की ज़रूरत नहीं ! तू देखना जब आयेगी तो तुझे लगेगा ही नहीं की ये अपने देश में नहीं रहती !
निम्मो – माँ जी कितनी सही बात कहीं हैँ आपने ,,मेरी चिंता थोड़ी कम हुई अब !
सरला जी – और मैं हूँ जब तक तुझे किसी बात की टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं निम्मो !
निम्मी -मम्मी जी आपका ही तो विश्वास हैँ मुझे ,तभी तो दिल खोलकर सब बात कर लेती हूँ आपसे ! ये बात तो हैँ माँ जी सब वक़्त की बात हैँ ,क्या आप इस तरह से अपनी सासू माँ से खुलकर बात कर लेती थी ! वो तो मेरी ही मम्मी जी ही हैँ लाखों मे एक !
दोनों सास बहू ठहाके मारकर हंसने लगी !
आरती जी , सरला जी की बहन निर्धारित समय पर परिवारसहित आ गयी ! निम्मी और मोहित (निम्मी के पति ) दोनों ने आरती जी और मौसा जी के पैर छूये ! आरती जी ने निम्मी को गले लगा लिया ! निम्मी को आरती जी का स्पर्श बिल्कुल सरला जी जैसा लगा ! पूरा परिवार जितने दिन रहा निम्मी को लगा ही नहीं कि ये मेहमान हैँ ! आरती जी निम्मी के साथ किचेन में काम करवाती ! बातें करते करते निम्मी को बहुत से व्यंजनों में पारंगत कर दिया !
सभी लोग चारपाई लगी होने क बाद भी जमीन पर गद्दे बिछाकर तूफानी पंखा लगाकर सोते ! निम्मी के उठने से पहले ही सरला जी सभी को चाय बनाकर दे देती ! निम्मी को और मोहित को मौसा जी ने बहुत सी धार्मिक बातें बतायी ज़िसकी उन्हे जानकारी भी नहीं थी ! आरती जी के बच्चें भी निम्मी के बच्चों के साथ बच्चें बन ज़ाते ! उन्हे पढ़ाते ! इन 15 दिनों में बच्चों के बहुत से बेसिक्स क्लीयर हो गए ! मोहित और रघू जी ( मोहित के पिता जी ) भी कहते – आज के समय में बच्चें फ़ोन पर ही लगे रहते हैँ ! आस पास की दुनिया से उन्हे कोई मतलब नहीं होता ! यहाँ तक कि बड़े भी ! कौन कहता हैँ वक़्त बदल गया हैँ ! वक़्त तो अपने अनुसार चलता हैँ ! भई संस्कार हो तो ऐसे !
आरती जी के वापस लौटने का समय हो गया ! निम्मी और उसका परिवार बहुत ही भावुक थे ! सबकी आँखों में नमी थी ! बच्चों को आरती जी ने पैसे दिये ! निम्मी को मुंह दिखायी का लिफाफा ज़िसमें 51000 रूपये थे ! मोहित को भी उपहार ! सरला जी ने ये सब ना देने का बहुत आग्रह किया ! पर आरती जी का कहना – क्या ये आपके ही बच्चें हैँ दीदी ,मेरे कुछ नहीं ! कुछ मत बोलिये ! दोनों बहनें एक दूसरे के गले लग गयी ! कोई नहीं कह सकता कि पैसों की सम्पन्नता में एक दूसरे से बिल्कुल अलग दो बहनें इस तरह प्रेम से बात कर सकती हैँ ! आज के गलाकाट युग में ऐसा प्रेम विरले ही देखने को मिलता हैँ ! निम्मी भी आज अपने मन में उत्पन्न भय से उबर चुकी थी !
#वक्त
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा