एक उसके बिन क्यों है सूनी तेरी दीवाली….. – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ माँ आओ ना देखो कितनी अच्छी रंगोली बनाई है… ।” बीस साल की अवन्ति माँ  सरला जी का हाथ पकड़ कर खींचते हुए ले जाने लगी 

 सुलोचना बेमन से बेटी के साथ रंगोली देखने गई और बिना चेहरे पर कोई भाव लाए बोली,“ अच्छी है।”

“ क्या माँ इतनी देर से मेहनत कर रही थी और आप बस ऐसे ही बोल कर चल दी।” अवन्ति को माँ का व्यवहार पिछले कुछ दिनों से बहुत अजीब लग रहा था 

“ क्या बात है माँ तुम त्योहार पर ऐसे कैसे उदास हो रखी हो…. घर में मैं और अनय भी तो है फिर भी तुम्हें परवाह है तो बस अमन भैया की…पापा भी बाज़ार जाते वक़्त तुमसे पूछते रहे दीवाली पूजा के लिए क्या-क्या लाना है तुम कुछ भी नहीं बोली… पापा को भी जो याद था वो लिख रहे थे और तुम बस हाँ हूँ कर रही थी…. क्या अमन भैया ही तुम्हारे लिए सब कुछ है हम तीनों कुछ भी नहीं…?” अवन्ति को माँ पर अब थोड़ा ग़ुस्सा आने लगा था 

सरला जी पर जैसे किसी बात का कोई असर ही नहीं हो रहा था…. वो यंत्रवंत्र सी दीवाली पूजा की तैयारी कर रही थी…

अवन्ति और अनय ने मिलकर पूरे घर को लाइट्स से सजा दिया था….

सरला जी लक्ष्मी गणेश की पूजा अर्चना करने की तैयारी करने लगी साथ में नवल जी भी पत्नी की मदद कर रहे थे…. 

” सरला घर में और भी दो बच्चे हैं ….तुम उनके लिए ही खुश हो जाओ…. अमन जब अपनी मर्ज़ी से ब्याह कर के हमें छोड़कर चला ही गया तो तुम बेकार उसको याद कर के दुःखी हो रही हो…. वो लोग अपनी दुनिया में मग्न होंगे  और तुम यहाँ उसके लिए खुद भी दुखी हो रही हो और बच्चों को भी दुखी कर के बैठी हो….।” नवल जी ने कहा 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खून के आँसू – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“आप भी ऐसे बोल रहे हैं…. वो तो बच्चे है… हम मान ही जाते उनकी ख़ुशी के लिए पर ऐसा भी क्या हुआ उसे एक लड़की के प्यार की ख़ातिर माता-पिता ,भाई बहन सब से नाता तोड़ चला गया…… पिछली दीवाली पर हम सब साथ में कितने खुश थे… जब मैंने कहा था तू हर वर्ष दीवाली पर घर आएगा ना तो कैसे बोला था कि जब तक आ सकूँगा …ज़रूर आऊँगा और देखो इस दीवाली ही मेरे घर की ख़ुशियाँ ग़ायब है ।” दुखी स्वर में सरला जी मंदिर में भगवान की मूर्ति सजाते हुए बोल रही थी पर मन मस्तिष्क अपने बेटे के पास रख छोड़ी थी 

तभी बाहर कुछ लोगों के जोर जोर से बातें करने की आवाज़ें सुनाई देने लगी ….ऐसा लग रहा था जैसे कुछ लोग झगड़ा कर रहे हैं…..नवल जी जल्दी से  बाहर निकल कर आए और देखते ही सरला जी को जोर से आवाज़ देने लगे…

“ सरला जल्दी बाहर आओ …..आकर देखो …।”

सरला जी को लगा लगता है कुछ हंगामा हो गया है वो जल्दी से अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई बाहर निकल कर आई

सामने देख कर दो बार आँखें मली …. सामने अमन और उसकी पत्नी खड़ी थी…. अवन्ति और अनय अपने भैया से लड़ाई कर रहे थे…. क्यों हम सबको छोड़कर चले गए थे….. आज दीवाली पर माँ बस आपको ही याद कर रही थी….

दोनों जल्दी से नवल जी और सरला जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिए….

“ क्यों रे तुझे कभी माँ की याद ना आई…. एक बार भी पलट कर ना देखा…. बहू तुम तो पहली बार हमारे घर आई हो…ऐसा लग रहा जैसे मेरी रूठी लक्ष्मी लौट आई है।”सरला जी बेटे बहू को आशीष देती हुई बोली 

“ मम्मी जी हमने एक दूसरे को पसंद कर के ब्याह किया …. दोनों परिवारों के लोग हमसे नाराज़ हो रखे थे…. हमें भी सबका आशीर्वाद चाहिए था … पर आप सब मान ही नहीं रहे थे ऐसे में हमें समझ नहीं आया क्या करें …सोचा शायद शादी के बाद आप सब हमें स्वीकार करके अपना आशीर्वाद दे देंगे…..

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हम सफर-सीमा बी.

इसलिए जैसे ही हमारी शादी के बाद ये दीवाली का त्योहार आया हम बस आपसब का आशीर्वाद लेने चले आए ….इससे अच्छा दिन और हमारे लिए क्या ही हो सकता था…..सुबह से अमन भी कह रहे थे…. आज माँ की बहुत याद आ रही ….. घर चले क्या पर डर रहे थे आप लोग हमें देख कर नाराज़ हो गए  तो….फिर भी हम दोनों हिम्मत कर के आ गए अब जो भी हो…. अकेले त्योहार पर क्यों रहना…।” बहू ने कहा

” बहू ये सही है कि हम शुरू  में समाज को लेकर  थोड़ा हिचक रहे थे पर ये नहीं जानते थे तुम लोग कोई ऐसा फ़ैसला कर लोगे…. अब हमारे मन में कोई बात नहीं है…. बेटा खुश है तो हम भी खुश है…. चलो जल्दी से तैयार हो जाओ सब मिलकर पूजा करते हैं ।” सरला जी के चेहरे पर दीपक से ज़्यादा लौ की चमक देखते ही बन रही थी 

दीवाली की वो रात सच में ख़ुशियों की रात थी जब सरला जी का बेटा खुद घर चलकर आ गया था….. उनके घर आज ख़ुशियों के दीप जल उठे थे…..पूरा परिवार  एक साथ मिलकर दीवाली का त्यौहार मना रहा था ।

दोस्तों मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#खुशियों का दीप

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!