पढ़ने का बहुत शौक है मुझे,,इसी के चलते कल एक सामाजिक कुरीति ने ध्यान आकर्षित किया मेरा,दिल दहल गया उसे पढ़कर और उस कुरीति से मुक्ति दिलाने वाली महिला नंगेली के प्रति श्रृद्धा से नतमस्तक हो गई।
मेरी नज़रों में नंगेली किसी वीरांगना से कम नहीं है बल्कि उसे पूजनीय कहना ही उचित होगा लेकिन अफसोस उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। चलिए आज मिलवाती हूँ आपको नंगेली से।
उसका जन्म त्रावनकोर में निचली जाति के परिवार में 1887 में हुआ ।यह ऐसा समय था जब निचली जाति की स्त्रियों को स्तन ढकने की इज़ाज़त नहीं थी यह अधिकार सिर्फ ऊँची जाति की स्त्रियों को ही प्राप्त था। यदि कोई निचली जाति की स्त्री ऐसा करने का दुस्साहस करती तो उसे टैक्स देना पड़ता था। टैक्स की रकम तय करने के मापदंड और भी ज्यादा शर्मनाक थे जो स्त्री के स्तन के आकार के अनुसार निश्चित किया जाता था।
सोचकर ही रोंगटे खड़े होने के साथ ही मन उन लंपट लोलुप पुरुषों की कुत्सित मनोवृत्ति के प्रति आक्रोश से भर जाता है जिन्होंने इस प्रथा को चलाया। क्या गुजरती होगी उन किशोरियों और युवतियों पर जो रात दिन हवस भरी नज़रों का सामना करती होंगी??
नंगेली ने जब किशोरावस्था में कदम रखा तो लोगों की घूरती नज़रों का ताप सहना उसके लिए मुश्किल होने लगा और वह साड़ी का पल्ला वक्ष पर लपेट कर स्कूल जाने लगी पर उच्च जाति के लोगों को यह सहन नहीं हुआ और उस पर टैक्स लगा दिया गया।
इस टैक्स की रकम इतनी अधिक होती थी कि चुका न पाने से त्रस्त होकर बहुत लोग श्रीलंका जाकर वहाँ के बागानों में मजदूरी करने लगते थे।
एक दिन ग्राम अधिकारी नंगेली के घर टैक्स वसूली के लिए आया और बोला,, पूरे दो हजार रुपए हो गये हैं अगर नहीं दिया तो तुम्हारे पिता की संपत्ति कुर्क कर ली जायेगी। नंगेली के पास न तो इतना पैसा था और न ही वह देना चाहती थी।
ग्राम अधिकारी किसी भी कीमत पर मानने को तैयार नहीं था तब उसने अधिकारी से कहा,, आप बैठिये, मैं अभी कुछ व्यवस्था करती हूँ। ऐसा कहकर वह घर के अंदर चली गई। शिवजी के सामने घी का दीपक जलाकर मन ही मन प्रार्थना की फिर हंसिया उठाकर बाहर आंगन में से एक केले का पत्ता काटा और अपने दोनों स्तन काटकर उस पत्ते पर रखकर लड़खड़ाते कदमों से उस अधिकारी के हाथों में रख दिये और निर्जीव होकर जमीन पर गिर पड़ी।
यह देखकर अधिकारी के होश उड़ गये और वह दुम दबाकर भाग खड़ा हुआ। इस घटना के बाद चारों ओर विरोध की चिंगारी भड़क उठी और हार कर शासन को यह कानून वापस लेना पड़ा।
सैल्यूट है उस वीरांगना को जिसने अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए न केवल प्राणों का बलिदान दे दिया,, साथ ही अनगिनत महिलाओं को प्रतिदिन की शर्मिंदगी से बचा लिया।
कमलेश राणा
ग्वालियर