“अपनी सास के सामने कैंची की तरह जुबान चलाए जा रही है, हिम्मत तो देखो इस लड़की की । दादी सास का भी लिहाज़ नहीं है।” कहते हुए कामिनी जी अपनी बहू रिया को सुना सुना कर कोसे जा रही हैं
“आने दो सुनील को। सब बातें बताउंगी उसे। उसे भी तो पता चले तुम्हारा असली रूप। उसके सामने तो बड़ा लाड़ प्यार का दिखावा किया जाता है और पीछे से ऐसा कर रही हों। शरम आनी चाहिए रिया अपनी छोटी सोच के लिए तुम्हें!” कामिनी जी लगातार बोले जा रही हैं
“लेकिन मम्मी जी मेरा कहने का वो मतलब नहीं है।” रिया दबी आवाज में बोली
“लो , अब ये हमें सिखायेंगी भी। अनपढ़ समझा है क्या हमें।’ कामिनी जी का गुस्सा फूट फूट कर बाहर आ रहा है
“मम्मी, भाभी तो हमें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं। अब ये मतलब समझाएंगी।” सीमा ने आग में घी डाला
दादी जी शोर सुनकर कुछ समय पहले ही अपने कमरे से उठकर आईं थीं। अभी तक चुप बैठी सास- बहू की बातें सुन रही हैं, जिसमें कामिनी जी की रिया को डाॅ॑टना ही सुनाई दे रहा है।
दादीजी बोली ,”कोई मुझे भी बताएगा कि बात क्या है? सुबह सुबह शोर मचा रखा है। घर में अशांति फैला रखी है, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है तुम दोनों रिया बहू को क्यों सुनाए जा रही हों? कामिनी बहू, शांति से बताओ आखिर बात क्या है जो घरभर को सिर पर उठा रखा है।”
कामिनी जी अपनी सास की ओर मुड़कर बोली,” माँजी, आपको तो पता है कल सीमा ससुराल जाने वाली है। बाकी सामान जो सीमा को देना है वो मैं और सीमा कल बाजार से ले आएं हैं।”
दादी जी ने कहा,’हाँ दिखाया था तुमने कामिनी बहू। खूब सारा और बढ़िया कपड़ें वगैरह लाई हों। परेशानी क्या है?”
“माँजी, सीमा की भाभी का भी फर्ज़ बनता है कुछ देने का। रिया ने उसको अपनी कोरी साड़ियां दिखाई। सीमा को दो साड़ियां पसंद आ गई तो ये महारानी कह रही है कि एक ले उनमें से लो और दूसरी कोई और पसंद कर लो क्योंकि वो वाली उसकी माँ ने दी है। एक साड़ी के लिए ननद का दिल दुख रही है।” कामिनी जी मुँह बनाती हुई बोली
सीमा भी नाक-भौं सिकोड़कर बोली, “दादी , एक साड़ी ही तो है! लगता है भाभी का दिल काफी छोटा है जो एक साड़ी देने में इतना रोना पीटना कर रही हैं। मेरा तो दिल दुखा दिया भाभी ने! “
दादी जी ने प्रश्नवाचक नज़रों से रिया को देखा।
रुआंसी होकर रिया बोली, ‘जी दादी जी, मम्मी जी सही कह रहीं हैं पर मेरे सीमा को दूसरी साड़ी पसंद करने के कहने के पीछे ये कारण है कि वो साड़ी मेरी मम्मी ने पिछले वर्ष होली पर दी थी और आप जानती हैं, होली के कुछ दिन बाद हार्ट अटैक होने से उनका देहांत हो गया। मम्मी की ये आखिरी निशानी है , इसलिये मैंने ऐसा कहा।”
अब बारी दादी जी की है। वो बोली,”कामिनी बहू, तुम ऐसी बात क्यों कर रही हों। रिया अपनी माँ की साड़ी रखेगी। सीमा तुम जानते हुए भी कि रिया की माँ की आखिरी निशानी है फिर भी जिद कर रही हो। अब तुम भी शादीशुदा हो, तुम्हारे साथ कोई ऐसा करे तो तुम्हें कितना बुरा लगेगा।”
फिर कामिनी जी से कहा,” बहू ये बात यहीं खत्म करो और मेरे कमरे में ले चलो।”
अपने कमरे में पहुँच कर दादी जी ने कहा,”रिया और सीमा के सामने मैं नहीं बोली वरना तुम शांता, मेरी बेटी और अपनी ननद, को क्या देती हो , मैं जानती हूँ। लेन-देन वाली साड़ियां और कपड़े या कहीं से मिले कपड़े जो तुम्हें अच्छे नहीं लगे वो देती आई हो हमेशा शांता को। तुम्हारी बहू दिल की साफ है।
अपनेआप ही अपनी ननद सीमा को देती रहती है। अगर बहू से अपने लिए इज्ज़त की इच्छा है तो पहले उसे घर का सदस्य मानो और उसकी भावनाओं का सम्मान करों। सुनील को बताने की धमकी से क्या होगा? कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी बहू सब लिहाज़ भूल जाए और उल्टा जबाब दे दे। दो साल हो गए रिया को बहू बनकर यहाँ आए। वो भी देख रही है तुम अपनी ननद यानि शांता के साथ कैसा व्यवहार करती हों। अपने को सुधार लो कामिनी बहू। “
कामिनी जी को आज अपनी सास की चेतावनी से अच्छी तरह समझ में आ गया कि बहू के ऊपर दादागिरी या हुक्म चलाने से काम नहीं चलेगा। उसकी भावनाओं को भी समझना पड़ेगा।
कामिनी जी ने अपनी सास से वादा किया कि वो शांता और रिया दोनों का ख्याल रखेंगी।
अब कामिनी जी रिया के पास जा रही हैं, अपनी गलतियों को सुधारने के लिए एवम् बहू को ये बताने के लिए कि ये घर उसका भी है। उसके सेंटीमेंट्स की भी कद्र है उनको, समझती हैं वो रिया की भावनाओं को भी।
लेखिका की कलम से
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प्रियंका सक्सेना
( मौलिक व स्वरचित)
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