एक समझौता – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“क्या ये दिन देखने के लिए  

 हमने तुझे इतना पढ़ाया-लिखाया—-?  और तेरी शादी करवाई —?

कृष्णकांत जी गुस्से से लाल- पीले हुए जा रहे थे।

 बेटा नितिन चुपचाप पिताजी की नाराजगी को सहन कर रहा था। 

सामने मंजू देवी बुखार से कराहते हुए पति कृष्णकांत से बोलीं बस –।

अब चुप भी करो जी—!

 मेरी तबीयत अच्छी नहीं लग रही और तुम हो कि— चिल्लाये जा रहे हो।

 पत्नी की करून आवाज को सुनकर कृष्णकांत जी मंजू देवी के सिर पर हाथ रखा तो सिर  ताप से जल रहा था।

 अरे —अभी तक पेरासिटामोल का असर क्यों नहीं हो रहा ? बुखार तो ज्यों  का त्यों जाने का नाम नहीं ले रहा है। 

पिताजी की बात सुनकर नितिन किचन से ठंडे पानी से भरी कटोरी तथा रूमाल लाकर मां के सिर पर पट्टी रखते हुए बोला–” आप सबसे मैं कितनी बार बोल चुका हूं “कि– आप दोनों अब गांव को छोड़कर हमारे साथ शहर रहने  चलिए पर आप लोग मेरी सुनते कहां हो–?

” मैं अब अपना जमाया हुआ क्लीनिक  छोड़कर आप लोग के साथ यहां तो नहीं रह सकता ना”??

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 और शिवांगी भी वहां शहर के जाने-माने स्कूल में पढ़ती है।

 यहां गांव में उसका करियर बर्बाद होगा ही, साथ में—” ससुराल का धन हाथ से निकल जाएगा सो अलग”!

 नितिन मां की पट्टी को बदलते हुए इनडायरेक्ट रूप से पिताजी को सुन रहा था।

 हां –हां–। अब तो तू यही कहेगा कि— हम तेरे ससुराल में जाकर बस जाए।

 शादी करके हमने बहू लाई है ना की वो(नितिन के ससुर) तुझे अपने घर लाए हैं ।

इतने साल हो गए शिवांगी कभी भी यहां चार दिन से ज्यादा नहीं रुकी ,क्या हमें शौंक नहीं कि हमारी बहू- बेटा हमारे साथ रहे–? 

ऐसा भी तुम लोग कोई सरकारी नौकरी नहीं करते हो कि— तुम सब का वहां रहना मजबूरी हो!

” अरे शादी के पहले तुम यही तो अपना क्लीनिक खोले थे जो अच्छा खासा चल रहा था ना। 

अब तक —तो और भी जम जाता!

 कृष्णकांत जी अपने आवाज में थोड़ी नरमी परोसते  हुए बोले ।

पर पापा आप सबको यह बात शादी के पहले सोचनी चाहिए थी।  मेरी पढ़ाई पर किये गये खर्च को आप दहेज से निकालना चाहते थे, सो आनन -फानन यह भी नहीं सोचा की लड़की मुझे पसंद भी है कि नहीं– । 

मोटी रकम और ऊंचा घराना जान मेरी शादी करवा दी– ।

आपको यदि याद हो तो ,उस समय भी मैंने आपको बहुत समझाया था कि– पापा होने वाले ससुराल में लड़की का भाई -वाई नहीं है  लड़की तीन बहने हैं

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  और उनकी पहली शर्त यही है की बेटी शादी के बाद भी उनके पास ही रहेगी इसलिए —वहां मुझे रिश्ता नहीं करना ।

तब आपने मेरी कहां सुनी आप बोले- कोई बात नहीं —बेटा! इतने ऊंचे घराने में तेरी शादी हो रही है पैसे की तो कोई कमी नहीं रहेगी ।

तेरा खुद का क्लीनिक भी खुल जाएगा और तेरे होने वाले ससुर  शहर के जाने-माने हस्ती हैं  सो तुझे पेशेंट भी मिलते रहेंगे।

 यहां क्या रखा है —एक- दो पेशेंट दिन भर में आते रहते हैं और कभी-कभी तो आते भी नहीं!

  देखो ना –! वो दहेज भी मेरी एक्सपेक्टेशन— से ज्यादा ही दे रहे हैं !

याद है ना— आपको अपने कथन पर- ।

नितिन कृष्णकांत जी को याद दिलाते हुए बोला।

 बेटे की बात सुनकर कृष्णकांत जी की आंखें शर्मिंदगी से नीचे झुक गईं ।

 अपने किए पर उन्हें पछतावा हो रहा था ।

उनका बेटा अब उनसे काफी दूर जा चुका था ।

क्योंकि वह भी अपने फर्ज के तले दब चुका था ।

नितिन से नाराज होने का हक भी  “एक समझौते”की वजह से  खुद ही छीन लिया ।अब ये नाराजगी क्यों —?अब ये शिकायत क्यों—?

 जब मैंने खुद ही अपना एकलौते बेटे को किसी के हाथ बेच दिया ।

 मंजू देवी का बुखार अब उतर चुका था।

 इतने में नितिन का मोबाइल बज उठा शायद शिवांगी का फोन था। वह फोन लेकर बाहर की तरफ निकल पड़ा ।

कृष्णकांत जी पछतावे का आंसू लिए मंजू देवी के लिए दलिया चढ़ाने किचन की तरफ चल पड़े।

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धन्यवाद।एक समझौता  #नाराज

#नाराज

मनीषा सिंह

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